सर्व साधकांवर कृपादृष्टी असणारे परात्पर गुरु डॉ. आठवले !
हे गुरुदेव, हमें हर क्षण सेवा करने का वरदान दो ।
सबको साधना का महत्त्व बता सकूं,
ऐसी शक्ति महान दो ।। १ ।।
साधनामय जीवन हो, ऐसा भाव सभी को प्रदान करें ।
गुरुदेव, हमारे मन मंदिर में, यह स्मरण नित्य रहे ।
हर एक का हृदय मंदिर है, ऐसा प्रयास हमसे करवा लें ।। २ ।।
गुरुदेव के चरण हृदय मंदिर में है,
उन चरणों का ध्यास रहे ।
गुरुदेव, हमारी भक्ति आपकी चरणों में,सदा स्थिर रहे ।। ३ ।।
गुरुदेव का नित्य स्मरण, गुरुध्यान हमारे श्वास में हो ।
गुरुदेव, गुरुस्मरण का, एक पल भी न हो विस्मरण ।। ४ ।।
हर कार्य हर विचार, हर श्वास में हो गुरुस्मरण ।
जीवन का हर एक पल, गुरुचरण में हो अर्पण ।
हम पर कृपावर्षा कर, हर क्षण हो श्री गुरु का कीर्तन ।। ५ ।।
हम न रहें हमारे, आपके चरणों में शरण आएं ।
आप ही हममें समाकर,
हमारा सब कुछ खोकर हम सभी के लिए ।। ६ ।।
गुरुदेव, हम आए आपके चरणों में, शरण शरण ।
हमारा मन रिक्त कर, उसमें भर दो नित्य गुरुस्मरण ।। ७ ।।
मन, बुद्धि, देह, अहं, सभी का कर दो समर्पण ।
केवल नित्य ध्यान गुरुस्मरण, चरण स्मरण ।। ८ ।।
गुरुदेव, बसें हर देह की पेशी पेशी में, हर कण में ।
हम सभी को चैतन्यमय बना कर,
चरणों में कर लो अर्पण ।। ९ ।।
मैं और आप में भेद न रहे एकरूप करके कर लो समर्पण ।
आए हैं आपके चरणों में याचक बनकर,
शरण शरण शरण ।। १० ।।
– श्रीमती मंदाकिनी डगवार, वर्धा (१८.७.२०२०)
या कवितेत प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या भाव तेथे देव या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |