
रण में दुर्गा बन दैत्यों का संहार करे ।
वो शक्ति मैं हूं जिससे राक्षस थर थर कांपे ।। धृ.।।
दुखों के पहाड़ को एक ठोकर से, जो गिरा दे अपने धर्म के लिए ।
मंदिरों का रक्षण करे वो अहिल्या मैं हूं, जो सभी से आदर पाए ।। १।।
धर्मांधों के अत्याचारों से जो ना डरे ना झुके धर्मद्रोहियों का निर्दालन करने ।
जो मन में दृढ़ प्रण करे वो जीजाबाई मै हूं, जो वीर शिवा को निर्माण करे ।। २ ।।
कैद ना रहेंगे, ना गुलामी सहेंगे स्त्री हैं तो क्या हुआ, चंडी बन दुष्टों का संहार करेंगे ।
वो झांसी की रानी लक्ष्मी बाई हूं मैं जिसकी तलवार से फिरंगी हो भाग खड़े ।। ३ ।।
काल के महाकाल को जो तपस्या से प्रसन्न करे वो मां पार्वती हूं मैं ।
जो शिव की शक्ति बने ।। ४ ।।
मेरे बिना अधुरा है धर्म का संग्राम सुनो शपथ ले लूं अगर मैं तो ।
तांडव निश्चित है आज सुनो ना मुझे छेड़ो, ना परेशान करो मिट्टी में मिल जाओगे अब ।। ५ ।।
जाग चुकी हूं आज सुनो, सुनो दुनिया के रावण, कंस, दुर्योधन, औरंगजेब सुनो…।
शक्ति मैं हूं, अग्नी हूं मिटा दूंगी अब आज सुनो ।। ६ ।।
– सौ. क्षिप्रा जुवेकर, जळगाव (८.३.२०२५)