नारायण स्वरूप गुरुदेव हमारे ।
साधकों को मोक्ष का मार्ग दिखाते ।।
उनकी कृपा दिलातीं, साधना में स्थिर करतीं ।
नारी नहीं, आप हैं साक्षात् मां नारायणी ।। १ ।।
मां नारायणी के ये हैं आठ रूप ।
जो गुरुचरणों से साधकों को करते एकरूप ।।
दूर करने साधकों के अंतर की दरिद्रता ।
आप महालक्ष्मी प्रदान करतीं साधना-संपदा ।। २ ।।
आद्यलक्ष्मी के रूप में करतीं सद्गुणों का वर्षाव ।
रोकतीं हमें, जब होता मन का दोषों की ओर झुकाव ।।
धैर्यलक्ष्मी आप अंतर्ज्ञान की ज्योति जगातीं ।
अहंकार के अंधकार से हमें सहज बाहर निकालतीं ।। ३ ।।
धान्यलक्ष्मी बन साधना-क्षुधा शमन करतीं ।
भावजागृति के प्रयास बताकर अंतःकरण तृप्त करतीं ।।
आप ही गजलक्ष्मी बन हमारे त्रिविध ताप दूर करतीं ।
नामजप साधना में हमें नित्य रममाण रखतीं ।। ४ ।।
संतानलक्ष्मी के रूप में आप ही लोकहितैषिणी ।
भक्तिसत्संग के माध्यम से गुरुलीला गायन करतीं ।।
साधना में साधक की विजय है, करना गुरुसेवा सच्ची ।
सद्गतिदायिनी सेवा करवातीं मां विजयलक्ष्मी ।। ५ ।।
शोकविनाशिनी नवनिधि दायिनी आप मां विद्यालक्ष्मी ।
त्याग की सीख देकर हम साधकों को प्रेरित करतीं ।।
सकल ब्रह्मांड की संपदा से श्रेष्ठ है ईश्वरीय प्रीति ।
साधकों पर इसे अखंड लुटातीं आप ही मां धनलक्ष्मी ।। ६ ।।
जन्मदिन पर आपके, हम अष्टलक्ष्मी स्वरूप को नमन करते ।
अल्पमति बालक हम आपके चरणों में यही याचना करते ।।
हे श्रीसत्शक्ति (टिप्पणी १), करने व्यष्टि-समष्टि साधना सच्ची ।
प्रदान करें हमें युक्ति (टिप्पणी २), शक्ति और भक्ति ।। ७ ।।
आपके चरणों में अर्पित करते अष्टदल कमल यह कवितारूपी ।
हे सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी की श्रीसत्शक्ति ।
आप ही विष्णुवक्षस्थल निवासिनी महालक्ष्मी ।
अखंड साधना का वर प्रदान करें हमें, हे आदिशक्ति ।। ८ ।।
टिप्पणी १ – श्रीसत्शक्ति (सौ.) बिंदा नीलेश सिंगबाळ
टिप्पणी २ – बुद्धि
अष्टलक्ष्मी के नाम मोटे अक्षरों में लिखे हैं और रेखांकित किए है । साथ ही अष्टांग पहलुओं से जोडै है ।’
– कु. निधि देशमुख, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.(११.१०.२०२३)
या कवितेत प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या ‘भाव तेथे देव’ या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |