परम पूज्य डॉक्टरजी साधकों को जन्म मरण से मुक्त करवाते हैं।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले

प्रथम विघ्नहर्ता श्री विनायक सभी विघ्न निवारण करते हैं।
परम पूज्य डॉक्टरजी को प्रथम प्रणाम करके सेवा करने से।
सभी विघ्न दूर हो जाते हैं।। १।।

श्री विष्णु की नाभि से ब्रह्मकमल से ब्रह्मा विष्णु महेश्वर निर्माण हुए हैं।
परम पूज्य डॉक्टरजी के अस्तित्व से।
सद्गुरु संत साधक निर्माण हुए हैं।। २।।

श्रीराम रामराज्य स्थापना के लिए कार्यरत हैं।
परम पूज्य डॉक्टर ईश्वरीय राज्य की स्थापना।
अखंड हिन्दू राष्ट्र स्थापना के लिए कार्यरत हैं।। ३।।

श्री. संतोष शेट्टी

श्रीकृष्ण द्वारा क्षण-क्षण में गोपियों को लीला दिखाई गई।
परम पूज्य डॉक्टरजी द्वारा साधकों को।
साधना में अनुभूति दी गई।। ४।।

श्री गणपति ने नाद भाषा प्रकाश भाषा में ग्रंथ लिखे थे।
परम पूज्य डॉक्टरजी ने बहुत भाषाओं में ग्रंथ लिखे तथा।
साधकों को ज्ञान की प्राप्ति हुई।। ५।।

श्री लक्ष्मीदेवी के तत्त्व से धनप्राप्ति ऐश्वर्य प्राप्ति।
परम पूज्य डॉक्टरजी के तत्त्व से।
साधकों को वैभव आश्रम की हुई प्राप्ति।। ६।।

श्री सरस्वतीमाता ज्ञान देवता।
परम पूज्य डॉक्टरजी की कृपा से साधकों को।
प्रवचन देने का अवसर प्राप्त हुआ।। ७।।

श्री मारुति के कारण अनिष्ट शक्तियों को दूर करने में सहायता हुई।
परम पूज्य डॉक्टरजी के कारण साधकों को।
हो रहे अनिष्ट शक्तियों के कष्ट का निवारण हुए।। ८।।

श्री धन्वन्तरि देवता आरोग्य की रक्षा करते हैं।
परम पूज्य डॉक्टरजी के कारण शारीरिक मानसिक और।
आध्यात्मिक जो भी कष्ट है, वे दूर होते हैं।। ९।।

शिवतत्त्व से मृत्युंजय मंत्र से मृत्यु दूर होती है।
परम पूज्य डॉक्टरजी साधकों को।
जन्म मरण से मुक्त करवाते हैं।। १०।।

श्री दत्तात्रेय ने २४ गुरु किए थे।
परम पूज्य डॉक्टरजी हर क्षण।
सीखने की स्थिति में रहते हैं।। ११।।

– श्री. संतोष शेट्टी, तेलंगाणा (नोव्हेंबर २०२३)

  • वाईट शक्ती : वातावरणात चांगल्या आणि वाईट शक्ती कार्यरत असतात. चांगल्या शक्ती चांगल्या कार्यासाठी मानवाला साहाय्य करतात, तर वाईट शक्ती त्याला त्रास देतात. पूर्वीच्या काळी ऋषिमुनींच्या यज्ञांत राक्षसांनी विघ्ने आणल्याच्या अनेक कथा वेद-पुराणांत आहेत. ‘अथर्ववेदात अनेक ठिकाणी वाईट शक्ती, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच तसेच करणी, भानामती यांचा प्रतिबंध करण्यासाठी मंत्र दिले आहेत. वाईट शक्तींच्या त्रासांच्या निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादी धर्मग्रंथांत सांगितले आहेत.
  • आध्यात्मिक त्रास : याचा अर्थ व्यक्तीमध्ये नकारात्मक स्पंदने असणे. व्यक्तीमध्ये नकारात्मक स्पंदने ५० टक्के किंवा त्यांहून अधिक प्रमाणात असणे, म्हणजे तीव्र त्रास, नकारात्मक स्पंदने ३० ते ४९ टक्के असणे, म्हणजे मध्यम त्रास, तर ३० टक्क्यांहून अल्प असणे, म्हणजे मंद आध्यात्मिक त्रास असणे होय. आध्यात्मिक त्रास हा प्रारब्ध, पूर्वजांचे त्रास आदी आध्यात्मिक स्तरावरील कारणांमुळे होतो. आध्यात्मिक त्रासाचे निदान संत किंवा सूक्ष्म स्पंदने जाणू शकणारे साधक करू शकतात.
  • सूक्ष्म : व्यक्तीचे स्थूल म्हणजे प्रत्यक्ष दिसणारे अवयव नाक, कान, डोळे, जीभ आणि त्वचा ही पंचज्ञानेंद्रिये आहेत. ही पंचज्ञानेंद्रिये, मन आणि बुद्धी यांच्या पलीकडील म्हणजे  ‘सूक्ष्म’. साधनेत प्रगती केलेल्या काही व्यक्तींना या ‘सूक्ष्म’ संवेदना जाणवतात. या ‘सूक्ष्मा’च्या ज्ञानाविषयी विविध धर्मग्रंथांत उल्लेख आहेत.
  • सूक्ष्मातील दिसणे, ऐकू येणे इत्यादी (पंच सूक्ष्मज्ञानेंद्रियांनी ज्ञानप्राप्ती होणे) : काही साधकांची अंतर्दृष्टी जागृत होते, म्हणजे त्यांना डोळ्यांना न दिसणारे दिसते, तर काही जणांना सूक्ष्मातील नाद किंवा शब्द ऐकू येतात.
  • येथे प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या ‘भाव तेथे देव’ या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक