हे परात्पर गुरुदेव,
आपने हम पर अत्यंत कृपा कर हमें अपनी चरणपादुकाएं प्रदान की हैं, उसके लिए हम आपके श्रीचरणों में कृतज्ञ हैं ।
हे गुरुश्रेष्ठ, हमारे हृदय का राग-द्वेष, दोष-अहं, सब आप ही नष्ट कीजिए ।
आप ही हमारे हृदय को निर्मल और पवित्र कीजिए ।
हे कृपालु हरि, आप ही हमारे हृदय को मंदिर बना दीजिए ।
उस मंदिर में अपनी चरणपादुकाओं को सजा दीजिए ।
हे विष्णु स्वरूप गुरुमाउली, हम अपने हृदयमंदिर में इन पादुकाओं का हर क्षण दर्शन कर पाएं ।
हमारे सब पाप मिटें और हम तर जाएं ।
हे दयानिधान, इन पादुकाओं का दर्शन पाकर, हमारा कष्ट मिटे ।
आनंद बढे और साधना का बल मिले ।
हे मोक्षगुरु, अब एक ही कामना, बनकर धूलकण इसी चरणपादुका में समा जाएं ।
चरणपादुका हो जाएं ॥
– डॉ. नन्द किशोर वेद, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
येथे प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या ‘भाव तेथे देव’ या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |