‘सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी का जन्मोत्सव (ब्रह्मोत्सव) ११.५.२०२३ को था । उनके जन्मोत्सव की सेवा चल रही थी । उस सेवा के अंतर्गत सभी जिलों के साधकों का, धर्म प्रेमियों का चयन (निवड) करते समय और उसके प्रति सभी साधकों का भाव उत्साह देखकर, मेरे मन में कुछ पंक्तियां आई ।
आओ भक्तों, भगवान आया ।
‘जयंत अवतार’ में स्वरूप दिखाया ॥ १ ॥
पूछ रहे थे साधक, कब होगा गुरुदेवजी का दर्शन ।
प्रतीक्षा थी वर्षों की, दर्शन से करना था ये जन्म पावन ॥ २ ॥
एक दिन साधकों को संदेश आया ।
गुरुदेवजी का प्रत्यक्ष दर्शन लेने आइए गोवा ॥ ३ ॥
संतों ने बताया, ये है सौभाग्य हमारा ।
नष्ट हो जाएगा अब प्रारब्ध तुम्हारा ॥ ४ ॥
संदेश सुनके हुई साधकों की भावजागृति ।
और भूल गए सब साधक अपना देहभान भी ॥ ५ ॥
प्रतीक्षा है अब जन्मोत्सव के दिन की ।
चल रही है तैयारी साधक बांधवों की ॥ ६ ॥
धन्य-धन्य हो गए हम मिली आपकी चरण सेवा ।
दिखाइए रास्ता गुरुदेव हमें मोक्ष प्राप्ति का ॥ ७ ॥
कृपा करें गुरुदेव सब साधकों पर ।
करवाइए सेवा तन-मन का त्याग कर ॥ ८ ॥
मधुराधिपति हैं आप, श्रीमन्नारायण भी आप ही ।
सत्यनारायण हैं आप और विष्णु स्वरूप भी आप ही ॥ ९ ॥
सच्चिदानंद हैं आप, युगपरिवर्तक भी आप ही ।
आप ही हैं सृष्टि के निर्माता और लयकर्ता भी आप ही ॥ १० ॥
चरणों में हैं आपके सप्त तीर्थ गुरुदेवजी ।
आप में ही समाए हैं सप्तलोक भी ॥ ११ ॥
हम सभी साधकों को साधक पुष्प बनाइए ।
अर्जुन बनाइए हमें धर्म संघर्ष के लिए ॥ १२ ॥
हिन्दू राष्ट्र हमारा ध्येय है और मोक्ष प्राप्ति अन्त ।
कृतज्ञता गुरुदेव, साधकों के ऊपर है आपका कृपाछत्र ॥ १३ ॥’
– श्री. गुरुप्रसाद गौड़ा (आयु ४१ वर्ष, आध्यात्मिक स्तर ६५ प्रतिशत) (७.५.२०२३)
येथे प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या ‘भाव तेथे देव’ या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |