फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वितीया (४.३.२०२२) या दिवशी वाराणसी सेवाकेंद्रातील श्री. संजय सिंह यांचा ४७ वा वाढदिवस आहे. त्यानिमित्त त्यांच्या पत्नी सौ. सानिका संजय सिंह यांनी केलेली कविता पुढे दिली आहे.
श्री. संजय सिंह यांना ४७ व्या वाढदिवसानिमित्त सनातन परिवाराच्या वतीने हार्दिक शुभेच्छा !
हे गुरुदेव, शब्द ही नहीं कि कृतज्ञता व्यक्त कर सके यह मन ।
बचपन से ही आपने हाथों में मुझे उठा रखा है, जैसे सुमन ।। १ ।।
कृतज्ञता का एक और कारण जिसके लिए शब्द हैं अपूरे ।
साधना पथ में श्री (टीप १) को जोडा है साथ मेरे ।। २ ।।
त्याग, निरपेक्षता, निर्मलता, सरलता हैं ये सद्गुण आपकी कृपा से ।
प्रसंगों में मुझे मिलते सदैव साधना के योग्य दृष्टिकोण इनसे ।। ३ ।।
स्वयं को ही बदलना है यह कहकर जोड देते हैं, आपके पावन चरणों से ।
हो जाती हूं अंतर्मुख आपकी कृपा से ।। ४ ।।
आपकी ही कृपा से इनसे मिलता साधना हेतु पूर्ण सहयोग ।
पाता है कोई बिरला ही ऐसा योगायोग ।। ५ ।।
गुरुदेव, आपने की है सदैव मेरी हरेक इच्छा पूरी ।
पुनः आपकी बिटिया करती है विनती हाथ जोरि ।। ६ ।।
बना लें श्री को आपके श्रीचरणों का दास शीघ्र हरि ।
करवा ले पूर्ण समर्पण आपके चरणों में हे त्रिपुरारि ।। ७ ।।
करती हूं प्रार्थना आपके चरणों में हे श्री मारुति ।
दे इन्हें स्वभाव दोष निर्मूलन प्रक्रिया करने हेतु शक्ति ।। ८ ।।
भाव के करवा लीजिए इनसे अखंड प्रयास ।
दोष और अहं पर ये कर सकें सदैव कठोराघात ।। ९ ।।
हे कुलदेवी मां, आपसे प्रार्थना करती हूं आज ।
सदैव रहे गुरुचरणों का इन्हें ध्यास ।। १० ।।
निर्विघ्न हो इनका साधना प्रवास ।
श्रीविष्णु के चरणों के बन जाएं ये शीघ्र दास ।। ११ ।।
इनके प्रारब्ध को तो आपने ही नष्ट किया है गुरुदेव ।
क्रियमाण पर भी हो जाए, आपका ही एकाधिकार गुरुदेव ।। १२ ।।
इनके श्वासों पर हो आपका शासन गुरुदेव ।
इनके मन पर हो आपका नियंत्रण गुरुदेव ।। १३ ।।
पूज्य दादा (टीप २) के मार्गदर्शन में बन जाएं ये सम चंदन ।
घिसते रहे आपके चरणों की अखंड सेवा में तन-मन-धन ।। १४ ।।
जीत सकें हे गुरुमाऊली आपका मन ।
करवा लें आप ही इनसे ऐसे प्रयत्न ।। १५ ।।
शीघ्र ही ये पाएं आपके श्रीचरण ।
यह प्रार्थना भी आपने ही करवाई,
इसके लिए कृतज्ञता व्यक्त करता है यह अश्रुपूरित मन ।। १६ ।।
टीप १ – पती श्री. संजय सिंह
टीप २ – पू. नीलेश सिंगबाळ
– सौ. सानिका संजय सिंह, वाराणसी सेवाकेंद्र, उत्तरप्रदेश. (फेब्रुवारी २०२२)
येथे प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या ‘भाव तेथे देव’ या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |