वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव का पांचवां दिन (२८ जून) : मंदिर संस्कृति की रक्षा के प्रयत्न
श्री तुलजाभवानी मंदिर की दानपेटी में अर्पण पैसे और आभूषणों में भ्रष्टाचार हुआ है । ठेकेदारों और विश्वस्तों ने मिलीभगत कर मंदिर की संपत्ति की लूटपाट की ।
श्री तुलजाभवानी मंदिर की दानपेटी में अर्पण पैसे और आभूषणों में भ्रष्टाचार हुआ है । ठेकेदारों और विश्वस्तों ने मिलीभगत कर मंदिर की संपत्ति की लूटपाट की ।
साधना एवं धर्मपालन करनेवाले, साथ ही राष्ट्र एवं धर्म के लिए क्रियाशील हिन्दुओं की आज आवश्यकता है । धर्म एवं अधर्म की लडाई में हम धर्म को जानकर आगे बढें, तो हमारी विजय निश्चित है ।
सनातन धर्मग्रंथों में राजधर्म बताया गया है । वहां धर्म की सीमा के बाहर राजनीति नहीं है । धर्म की सीमा से बाहर यदि राजनीति हो, तो उसका नाम ‘उन्माद’ है, जब तक भारत में धर्माधारित राजपद्धति अपनाई नहीं जाएगी, तबतक गायें, गंगा, सती, वेद, सत्यवादी, दानशूर आदि का संपूर्ण संरक्षण नहीं हो सकता ।
अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का व्यासपीठ सभी हिन्दुत्वनिष्ठों के लिए है । इस कारण हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के माध्यम से हिन्दुओं में नवशक्ति निर्माण हुई है । विविध राज्यों में और जिलों में इस प्रकार के अधिवेशन हो रहे हैं । अखंड हिन्दू राष्ट्र के लिए ये सम्मलेन हो रहे हैं ।
अगले २-३ वर्ष हिन्दू राष्ट्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । इसके लिए हमें निरंतर हिन्दू राष्ट्र की मांग करते रहना होगा । इस दृष्टि से ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ महत्त्वपूर्ण है । यह कार्य करते समय कालमहिमा के अनुसार वर्ष २०२५ में हिन्दू राष्ट्र आने ही वाला है, इसके प्रति आश्वस्त रहिए !
भगवान परशुराम ही गोवा के रक्षक हैं; इसलिए कथित संत फ्रान्सिस जेवियर को ‘गोंयचो सायब’ (गोवा का साहब) कहना अनुचित है । गोवा में क्रूरतापूर्ण तंत्र इन्क्विजिशन लाने के लिए फ्रान्सिस जेवियर ही पूर्ण रूप से उत्तरदायी था ।
‘‘जिस प्रकार अंगद ने रावण की राजसभा में स्वयं भूमि पर पैर जमाया, उसी प्रकार हिन्दुत्वनिष्ठों को धर्मकार्य करने के लिए पैर जमाकर खडे रहना चाहिए, तभी जाकर हम हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं’’, ऐसा प्रतिपादन अधिवक्ता भारत शर्मा ने किया ।
आज भी भारत में किसी भी विद्यालय में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती । भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किए बिना हिन्दुओं को धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती । इसलिए ‘सभी संस्थाओं को एकत्रित होकर आदर्श चरित्र का निर्माण हो सके’, इस प्रकार की धार्मिक शिक्षा देनी आवश्यक है ।
मंदिरों में दानपेटी होती है; परंतु ज्ञानपेटी नहीं होती । मंदिरों में धर्म का ज्ञान मिलना आवश्यक है । दुर्भाग्यवश मंदिरों की ओर से ज्ञान नहीं दिया जाता । इसलिए हमें मंदिरों में भी परिवर्तन लाना पडेगा । धर्म का ज्ञान लेकर मन में मंदिर तैयार नहीं हुआ, तो वह किसी उपयोग का नहीं है ।
मुगलों ने हिन्दुओं पर जो अत्याचार किए, उसका इतिहास विद्यालयीन पाठ्यक्रम में सिखाया जाना चाहिए । छत्रपति शिवाजी महाराज ने किस प्रकार से अफजल खान का वध किया और शाहिस्ते खान की उंगलियां काट दीं, यह हिन्दुओं के पराक्रम का इतिहास युवा पीढी को सिखाया जाना चाहिए ।