साधना प्रत्यक्ष सिखानेकी पद्धतियां
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी की सीख समझने में सरल, जीवन के छोटे-बडे उदाहरणों के माध्यम से अध्यात्म सिखानेवाली एवं कृति के स्तर पर साधना संबंधी मार्गदर्शन करती है ।
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी की सीख समझने में सरल, जीवन के छोटे-बडे उदाहरणों के माध्यम से अध्यात्म सिखानेवाली एवं कृति के स्तर पर साधना संबंधी मार्गदर्शन करती है ।
‘२३.२.२०२३ को सप्तर्षि नाडीपट्टिका के वाचक पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से हुए नाडीवाचन क्रमांक २२२ में ‘वर्ष २०२३ में गुरुदेवजी का जन्मोत्सव किस प्रकार मनाया जाए ?’, इस विषय में सप्तर्षियों द्वारा बताई गई महिमा आगे दे रहे हैं ।
नामजपका लाभ उपचार के लिए आए रोगियों को भी अपनेआप होगा । अस्पताल में अन्य रोगियों को भी नामजप का स्मरण करवाएं । नामस्मरण से मनोबल बढता है, मनःशांति मिलती है और जीवन आनंदी बनने में सहायता मिलती है ।
सनातन संस्था में नौकरी समान वेतन नहीं मिलता, तब भी ये साधक प्रतिदिन स्वयं ही नौकरी की तुलना में अधिक घंटे सेवा करते हैं ।
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के कृपाशीर्वाद से इस कार्यालय का चैतन्यमय एवं पवित्र वास्तु में रूपांतरण हुआ ।
‘तन, मन, धन एवं अहं का त्याग होने पर तथा ईश्वर के प्रति भाव एवं भक्ति बढने पर ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले
‘कहां स्वेच्छा से आचरण करने हेतु प्रोत्साहित कर मानव को अधोगति की ओर ले जानेवाले बुद्धिप्रमाणवादी और कहां मानव को स्वेच्छा का त्याग करना सिखाकर ईश्वरप्राप्ति करवानेवाले संत !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘हिन्दुओ, हिन्दू राष्ट्र में दासता दर्शानेवाली तथा रज-तम प्रधान अंग्रेजी भाषा भारत में नहीं रहेगी । राज्यों की भाषा प्रशासकीय भाषा होगी । इसलिए यदि आपको ऐसा लगता है कि आगे आपके बच्चे को नौकरी मिले, तो उसे अभी से भारतीय राज्यभाषा में शिक्षा दें ।’
‘स्वतंत्रता से पूर्व के काल में राष्ट्र एवं धर्म का विचार करनेवाले जनप्रतिनिधि हुआ करते थे । स्वतंत्रता के उपरांत अपने उत्तरदायित्व का नहीं, केवल स्वार्थ का विचार करने वाले जनप्रतिनिधियों की संख्या बढती गई । इस कारण राष्ट्र की स्थिति दयनीय हो गई है !’ व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थकों, मानव को मानव देहधारी प्राणी … Read more
‘कहां अर्थ और काम पर आधारित पश्चिमी संस्कृति, और कहां धर्म और मोक्ष पर आधारित हिन्दू संस्कृति ! हिन्दू पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं, इसलिए वे भी तीव्र गति से विनाश की ओर बढ रहे हैं !’