परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वेच्छाचार, प्राणियों की विशेषता हो सकती है, मानव की नहीं । ‘धर्मबंधन में रहना, धर्मशास्त्र का अनुकरण करना’, ऐसा करनेवाला ही ‘मानव’ कहला सकता है ।’
‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वेच्छाचार, प्राणियों की विशेषता हो सकती है, मानव की नहीं । ‘धर्मबंधन में रहना, धर्मशास्त्र का अनुकरण करना’, ऐसा करनेवाला ही ‘मानव’ कहला सकता है ।’
केंद्र सरकार को घोषित करना चाहिए कि हिन्दुओं के नरसंहार को जमीनदारों के विरुद्ध विद्रोह ठहराकर हिन्दुओं के घाव पर नमक छिडकनेवाले इतिहासकारों ने लिखा इतिहास झूठ है ।
मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश संबंधी निर्णय धर्माचार्य एवं वहां के पुजारियों को करना अपेक्षित है । गर्भगृह का अलग ही आध्यात्मिक महत्त्व है । वहां की पवित्रता संजोना आवश्यक है । देश के सभी बडे मंदिरों में इसका पालन किया जाता है ।
मुसलमानों को भीड द्वारा मारे जाने पर हिन्दुओं को असहिष्णु कहनेवाले धर्मनिरपेक्षतावादी और आधुनिकतावादी अब कहां हैं ? ऐसी घटनाओं का होना हिन्दू राष्ट्र के निर्माण को अपरिहार्य बना देता है !
हत्याकांड के कट्टरपंथियों को शरीयत कानून के अंतर्गत हाथ-पैर तोडने की या भरे चौक में बांधकर उनपर पत्थर फेंकने की सजा की कोई मांग करे, तो आश्चर्य न होगा !
गुरुकृपायोगानुसार साधना कर पू. नीलेश सिंगबाळजी ने सद्गुरु पद प्राप्त किया । इस समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी और सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी की पत्नी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने उनका सम्मान किया ।
जब हिन्दुओं और हिन्दुत्व के लिए प्रतिकूल समय था, तब अनेक राष्ट्रविरोधी शक्तियों ने उसमें अपने हाथ धो लिए । अब उसका दंड भुगतने का समय आ गया है; क्योंकि आज के समय में हिन्दुओं, हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्र के लिए अनुकूल समय बडी तीव्र गति से आ रहा है ।
‘राजस्थान के उदयपुर में कन्हैयालाल नामक हिन्दू युवक की जिहादियों ने निर्मम हत्या कर दी । यह कोई सामान्य घटना नहीं है, अपितु इस देश के सार्वभौमत्व के साथ ही यहां के सभ्य समाज, संविधान एवं लोकतंत्र पर किया गया आक्रमण ही है ।
नागपंचमी के दिन हलदी से अथवा रक्तचंदन से एक पीढे पर नवनागों की आकृतियां बनाते हैं एवं उनकी पूजा कर दूध एवं खीलों का नैवेद्य चढाते हैं । नवनाग पवित्रकों के नौ प्रमुख समूह हैं । पवित्रक अर्थात सूक्ष्मातिसूक्ष्म दैवी कण (चैतन्यक) ।
अगले २-३ वर्ष हिन्दू राष्ट्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । इसके लिए हमें निरंतर हिन्दू राष्ट्र की मांग करते रहना होगा । इस दृष्टि से ‘अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ महत्त्वपूर्ण है । यह कार्य करते समय कालमहिमा के अनुसार वर्ष २०२५ में हिन्दू राष्ट्र आने ही वाला है, इसके प्रति आश्वस्त रहिए !