कलियुग वर्ष ५१२७ (वर्ष २०२५) का विभिन्न परिप्रेक्ष्य में महत्त्व !

३०.३.२०२५ से हिन्दू कालगणना के अनुसार कलियुग वर्ष ५१२७ का आरंभ हो गया है । इस वर्ष का आध्यात्मिक महत्त्व क्या है ? इस काल में संधिकाल का क्या महत्त्व है ?, यह वर्ष हिन्दुत्व की दृष्टि से कैसे रहेगा ?

अक्षय तृतीया का महत्त्व

अक्षय तृतीया सत्कार्याें का अक्षय फल प्रदान करती है ! इस दिन किए सभी सत्कर्म अविनाशी होते हैं  !

विभिन्न युगों के धर्मयुद्ध में अलिप्त रहकर धर्म की रक्षा करनेवाले हनुमानजी !

त्रेतायुग के राम-रावण के धर्मयुद्ध में वानरसेना की रक्षा करने वाले , द्वापरयुग के कौरव-पांडव के मध्य हुए महाभारत युद्ध में पांडवों की रक्षा करने वाले और कलियुग के संतों के इष्टदेवता श्री हनुमान

निर्माण कार्य करते समय उसे ‘साधना’ के रूप में करने से उस निर्माण कार्य से बडे स्तर पर सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं !

निर्माण कार्य जैसी कृति (वास्तु का निर्माण) सेवाभाव से की, तो उस निर्माण कार्य में बहुत सात्त्विकता उत्पन्न होती है !

ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक आधारों से समृद्ध  हिन्दुओं का नववर्षारंभ !

इस वर्ष ३० मार्च २०२५ को नवसंवत्सर अर्थात गुडी पडवा है । इस मंगल दिवस के उपलक्ष्य में हम नववर्षारंभ के संबंध में अधिक जानकारी लेंगे । नवसंवत्सर के विषय में सामान्य प्रश्न तथा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे द्वारा उनके दिए उत्तर –

हिन्दुओ, धर्माचरण कर नवसंवत्सर का त्योहार सात्त्विक पद्धति से मनाकर स्वयं में धर्मतेज जागृत करेंगे !

‘साक्षात ईश्वर ने सनातन हिन्दू धर्म की निर्मिति की है । उसके कारण धर्म का प्रत्येक अंग शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से १०० प्रतिशत उचित, लाभकारी तथा परिपूर्ण है ।

होली (१३.३.२०२५)

तिथि : ‘प्रदेशानुसार फाल्गुनी पूर्णिमा से पंचमी तक पांच-छः दिनों में, कहीं दो दिन, तो कहीं पांचों दिन यह त्योहार मनाया जाता है । उत्सव मनाने की पद्धति १. स्थान एवं समय : किसी देवालय के सामने अथवा सुविधाजनक स्थान पर सायंकाल में होली जलानी होती है । अधिकतर किसी गांव के ग्रामदेवता के सामने … Read more

धूलिवंदन

इस दिन होली की राख अथवा धुलि की पूजा का विधान है । पूजा हो जाने पर आगे दिए मंत्र से उसकी प्रार्थना करते हैं ।

दत्तात्रेय अवतार

विवाह, वैवाहिक संबंध, गर्भधारण, वंशवृद्धि आदि में बाधा होना, मंदबुद्धि या विकलांग संतान होना, शारीरिक रोग, व्यसनादि समस्याएं हो सकती हैं । इन समस्याओं के समाधान हेतु कष्ट की तीव्रता के अनुसार ‘श्री गुरुदेव दत्त’ (दत्तात्रेय देवता का) जप प्रतिदिन करें । 

त्याग और चैतन्य की प्रतीक हाथ में कमंडलु लिए दत्त की त्रिमुखी मूर्ति  !

‘भगवान की निर्गुण तरंगों को स्वयं में समा लेनेवाला तथा अनिष्ट शक्तियों को दूर करने के लिए एक ही पल में पूरे त्रिलोक को एक ही मंडल में खींचने की क्षमता से युक्त जल जिस कुंड में है, वह कुंड है भगवान दत्तात्रेय के हाथ में पकडा कमंडलु ।