नवरात्रि का शास्त्र एवं इतिहास
श्रीरामचंद्रजी के हाथों रावण का वध हो, इस उद्देश्य से नारदमुनि ने श्रीराम को नवरात्रि का व्रत करने के लिए बताया । तत्पश्चात यह व्रत पूर्ण कर श्रीराम ने लंका पर चढाई कर, रावण का वध कर दिया ।
श्रीरामचंद्रजी के हाथों रावण का वध हो, इस उद्देश्य से नारदमुनि ने श्रीराम को नवरात्रि का व्रत करने के लिए बताया । तत्पश्चात यह व्रत पूर्ण कर श्रीराम ने लंका पर चढाई कर, रावण का वध कर दिया ।
भावसत्संगों के कारण अनेक साधकों को साधना में सहायता मिली है । ‘भावसत्संग लेना अथवा उसे सुनना, साधकों में व्याप्त सूक्ष्म ऊर्जा पर (‘ऑरा’ पर) इसके क्या परिणाम होते हैं ?, वैज्ञानिक दृष्टि से इसका अध्ययन करने हेतु एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ उपकरण का उपयोग किया गया ।
गणेश तृतीया, गणेश पंचमी अथवा गणेश सप्तमी के दिन क्यों नहीं मनाई जाती ? तत्त्ववेत्ता पुरुषों की भावना एवं मान्यता यह है कि मनुष्य में सत्त्व, रज एवं तम ये ३ गुण होते हैं । उन्हें सत्ता दिलानेवाला चैतन्य चौथा है ।
श्री गणपति में शक्ति, बुद्धि एवं संपत्ति, ये तीन सात्त्विक गुण हैं । वे भक्तों पर अनुकंपा करनेवाले हैं । श्री गणपति विद्या, बुद्धि एवं सिद्धि के देवता हैं । वे दुखहरण करनेवाले हैं; इसीलिए प्रत्येक मंगलकार्य के आरंभ में श्री गणेश की पूजा की जाती है । विद्यारंभ में तथा ग्रंथारंभ में भी श्री गणेश का स्तवन करते हैं ।
रक्षाबंधन के दिन बहन भाई के हाथ में राखी का धागा बांधती है । चित्त में यदि शुद्ध एवं अच्छी भावनाएं न हों, तो राखी केवल एक धागा बनकर रह जाती है । यदि अच्छी पवित्र, दृढ एवं सुंदर भावना हो, तो वही कोमल धागा बडा चमत्कार करता है ।
नागपंचमी के दिन कुछ न काटें, न तलें, चूल्हे पर तवा न रखें इत्यादि संकेतों का पालन बताया गया है । इस दिन भूमिखनन न करें ।
परमार्थ हेतु पोषक तथा ईश्वर के गुणों को स्वयं में अंतर्भूत करने हेतु नामजप, सत्संग, सत्सेवा, त्याग, प्रीति इत्यादि सभी कृत्य करना, साथ ही गृहस्थी एवं साधना के लिए मारक तत्त्वों का अर्थात षड्रिपुओं का निषेध करना, चातुर्मास के ये दो मुख्य उद्देश्य हैं ।
‘संतों के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक दृष्टि से क्या लाभ होता है ?’, इसके संदर्भ में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण तथा लोलक के द्वारा शोध किया गया ।
ब्रह्मोत्सव से पूर्व वस्त्राभूषणों में १.५ से ३.३ सहस्र मीटर तक सकारात्मक ऊर्जा थी । परात्पर गुरु डॉक्टरजी के द्वारा ब्रह्मोत्सव में इन वस्त्राभूषणों को धारण किए जाने के उपरांत उनमें विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा ४२ सहस्र से लेकर १ लख मीटर से भी अधिक हुई ।