दत्तात्रेय अवतार

विवाह, वैवाहिक संबंध, गर्भधारण, वंशवृद्धि आदि में बाधा होना, मंदबुद्धि या विकलांग संतान होना, शारीरिक रोग, व्यसनादि समस्याएं हो सकती हैं । इन समस्याओं के समाधान हेतु कष्ट की तीव्रता के अनुसार ‘श्री गुरुदेव दत्त’ (दत्तात्रेय देवता का) जप प्रतिदिन करें । 

त्याग और चैतन्य की प्रतीक हाथ में कमंडलु लिए दत्त की त्रिमुखी मूर्ति  !

‘भगवान की निर्गुण तरंगों को स्वयं में समा लेनेवाला तथा अनिष्ट शक्तियों को दूर करने के लिए एक ही पल में पूरे त्रिलोक को एक ही मंडल में खींचने की क्षमता से युक्त जल जिस कुंड में है, वह कुंड है भगवान दत्तात्रेय के हाथ में पकडा कमंडलु ।

देवतातत्त्व आकृष्ट करनेवाली सनातन-निर्मित सात्त्विक रंगोलियां तथा सात्त्विक चित्रों में देवताओं के यंत्र की भांति सकारात्मक ऊर्जा (चैतन्य) होना

रंगोली ६४ कलाओं में से एक कला है । यह कला आज घर-घर पहुंच गई है । त्योहारों-समारोहों में, देवालयों में तथा घर-घर में रंगोली बनाई जाती है । रंगोली के दो उद्देश्य हैं – सौंदर्य का साक्षात्कार तथा मांगलिक सिद्धि ।

छठ पूजा (७ नवंबर)

छठ पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाई जाती है । यह चार दिवसीय त्योहार होता है, जो चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है । इसे कार्तिक छठ पूजा कहा जाता है ।

देवदीपावली

कुलस्वामी, कुलस्वामिनी एवं इष्टदेवता के अतिरिक्त अन्य देवताओं की पूजा भी वर्ष में किसी एक दिन करना तथा उनको भोग प्रसाद अर्पण करना आवश्यक होता है । यह इस दिन किया जाता है ।

तुलसी विवाह

तुलसी विवाह यह विधि कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक किसी भी दिन करते हैं ।

करवा चौथ

हम उन महान ऋषि-मुनियों के श्रीचरणों में कृतज्ञतापूर्वक नमन करते हैं कि उन्होंने हमें व्रत, पर्व तथा उत्सव का महत्त्व बताकर मोक्षमार्ग की सुलभता दिखाई । हिन्दू नारियों के लिए ‘करवा चौथ’ का व्रत अखंड सुहाग देनेवाला माना जाता है ।

दीपावली : एक आनंदपर्व

दीपावली प्रकाश का त्योहार है । ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’, अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर ले जानेवाला त्योहार है; इसलिए उसे ‘ज्योतिपर्व’ भी कहते हैं ।

नरक चतुर्दशी

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को ‘नरक चतुर्दशी’ कहते हैं । नरकासुर नामक अधम तथा क्रूर राक्षस के अंतःपुर में १६ सहस्र स्त्रियां बंदीवास में थीं । पृथ्वीलोक के सभी राजा उसके अत्याचार से त्रस्त थे । तब श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करने का निश्चय किया । उसके शिरच्छेद का दायित्व सत्यभामा ने लिया ।

उबटन लगाने की उचित पद्धति क्या है ?

दूसरे व्यक्ति की पीठ पर उबटन लगाते समय पीठ की रीढ की रेखा के पास, दोनों हाथों की उंगलियों का अग्रभाग आए इस प्रकार रखकर ऊपर से नीचे की दिशा में दोनों हाथ एक साथ घुमाएं ।