निर्माण कार्य करते समय उसे ‘साधना’ के रूप में करने से उस निर्माण कार्य से बडे स्तर पर सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं !
निर्माण कार्य जैसी कृति (वास्तु का निर्माण) सेवाभाव से की, तो उस निर्माण कार्य में बहुत सात्त्विकता उत्पन्न होती है !
निर्माण कार्य जैसी कृति (वास्तु का निर्माण) सेवाभाव से की, तो उस निर्माण कार्य में बहुत सात्त्विकता उत्पन्न होती है !
इस वर्ष ३० मार्च २०२५ को नवसंवत्सर अर्थात गुडी पडवा है । इस मंगल दिवस के उपलक्ष्य में हम नववर्षारंभ के संबंध में अधिक जानकारी लेंगे । नवसंवत्सर के विषय में सामान्य प्रश्न तथा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे द्वारा उनके दिए उत्तर –
‘साक्षात ईश्वर ने सनातन हिन्दू धर्म की निर्मिति की है । उसके कारण धर्म का प्रत्येक अंग शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से १०० प्रतिशत उचित, लाभकारी तथा परिपूर्ण है ।
तिथि : ‘प्रदेशानुसार फाल्गुनी पूर्णिमा से पंचमी तक पांच-छः दिनों में, कहीं दो दिन, तो कहीं पांचों दिन यह त्योहार मनाया जाता है । उत्सव मनाने की पद्धति १. स्थान एवं समय : किसी देवालय के सामने अथवा सुविधाजनक स्थान पर सायंकाल में होली जलानी होती है । अधिकतर किसी गांव के ग्रामदेवता के सामने … Read more
इस दिन होली की राख अथवा धुलि की पूजा का विधान है । पूजा हो जाने पर आगे दिए मंत्र से उसकी प्रार्थना करते हैं ।
विवाह, वैवाहिक संबंध, गर्भधारण, वंशवृद्धि आदि में बाधा होना, मंदबुद्धि या विकलांग संतान होना, शारीरिक रोग, व्यसनादि समस्याएं हो सकती हैं । इन समस्याओं के समाधान हेतु कष्ट की तीव्रता के अनुसार ‘श्री गुरुदेव दत्त’ (दत्तात्रेय देवता का) जप प्रतिदिन करें ।
‘भगवान की निर्गुण तरंगों को स्वयं में समा लेनेवाला तथा अनिष्ट शक्तियों को दूर करने के लिए एक ही पल में पूरे त्रिलोक को एक ही मंडल में खींचने की क्षमता से युक्त जल जिस कुंड में है, वह कुंड है भगवान दत्तात्रेय के हाथ में पकडा कमंडलु ।
रंगोली ६४ कलाओं में से एक कला है । यह कला आज घर-घर पहुंच गई है । त्योहारों-समारोहों में, देवालयों में तथा घर-घर में रंगोली बनाई जाती है । रंगोली के दो उद्देश्य हैं – सौंदर्य का साक्षात्कार तथा मांगलिक सिद्धि ।
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाई जाती है । यह चार दिवसीय त्योहार होता है, जो चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है । इसे कार्तिक छठ पूजा कहा जाता है ।
कुलस्वामी, कुलस्वामिनी एवं इष्टदेवता के अतिरिक्त अन्य देवताओं की पूजा भी वर्ष में किसी एक दिन करना तथा उनको भोग प्रसाद अर्पण करना आवश्यक होता है । यह इस दिन किया जाता है ।