विद्यार्थी संगठनों में सक्रियता दर्शानेवाले पत्रक

‘प्रमुख संगठक’ के रूप में प.पू. डॉ. आठवलेजी का नाम दर्शाता शिवसेना की ‘भारतीय विद्यार्थी सेना’ का पत्रक

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का इंग्लैंड प्रस्थान, नौकरी एवं शोधकार्य

मुंबई के विविध चिकित्सालयों में ५ वर्ष नौकरी करने के उपरांत  डॉ. आठवलेजी ने ४.७.१९७१ को मनोविकारों के लिए सम्मोहन उपचार-पद्धतियों के विषय में अधिक शोध करने हेतु इंग्लैंड प्रस्थान किया । उन्होंने वर्ष १९७१ से वर्ष १९७८ की कालावधि में ब्रिटेन में वास्तव्य किया ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का पू. (अधिवक्ता) हरि शंकर जैनजी को अलिंगन देते हुए छायाचित्र देखकर भगवान श्रीराम एवं श्री हनुमान की भावभेंट का स्मरण होना

पू. हरि शंकर जैनजी के मन में परात्पर गुरु डॉक्टरजी के प्रति हनुमानजी की भांति उच्च कोटि का भक्तिभाव होना

समष्टि साधना का महत्त्व एवं उसके संदर्भ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का मार्गदर्शन

ईश्‍वर स्वयं एक ही समय सूक्ष्मातिसूक्ष्म एवं सर्वव्यापी भी होने के कारण, साधक की व्यष्टि अथवा समष्टि साधना मार्गाें के अनुसार वे उसे वैसी अनुभूति प्रदान करते हैं । ईश्‍वर से एकरूप होने के इच्छुक साधक को भी यदि ये दोनों अनुभूतियां हों, तो वह ईश्‍वर से शीघ्र एकरूप होता है ।

गोवा, फोंडा की श्रीमती ज्योति ढवळीकर सनातन के १३२ वें (समष्टि) संतपद पर विराजमान

रामनाथी स्थित सनातन आश्रम में आयोजित एक अनौपचारिक समारोह में यह घोषणा की गई । इस अवसर पर पू. (श्रीमती) ज्योति ढवळीकर के परिवार के कुछ सदस्य और साधक उपस्थित थे । इस अवसर पर सभी का भाव जागृत हुआ ।

साधना के विषय में साधकों का मार्गदर्शन कर उन्हें साधना के अगले स्तर पर ले जानेवाला परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का चैतन्यदायी सत्संग !

जब हमारे द्वारा की जा रही साधना से हमें आनंद मिलने लगता है, तभी हमारे साधना के प्रयास आरंभ होते हैं। साधना के आरंभ में आनंद नहीं मिलता। १०-१५ वर्ष के उपरांत आनंद की अनुभूति होनी लगती है। उसके उपरांत कोई साधना नहीं छोडता।

साधना करने के कारण मृत्यु के उपरांत साधक को दैवी गति प्राप्त होना तथा जीवन में साधना का महत्त्व !

साधक की मृत्यु होने पर उसे साधना का पुनः एक बार अवसर मिले; इसके लिए ईश्वर उसे अच्छे वंश में जन्म दिलाते हैं; परंतु जीव साधना करनेवाला न हो, तो उसे मनुष्यजन्म लेने में अनेक वर्षाें का काल लग सकता है 

दैनिक की सेवा से साधकों में गुणवृद्धि करनेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी !

‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों के पूर्व समूह संपादक डॉ. दुर्गेश सामंत को सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी से सीखने के लिए मिले सूत्र

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में चल रहे आध्यात्मिक शोध कार्य को समाज से मिलनेवाला अभूतपूर्व प्रत्युत्तर !

विगत ५ वर्षों से दैनिक ‘सनातन प्रभात’ से प्रत्येक रविवार को ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में किए जानेवाले विभिन्न शोधकार्यजन्य लेख प्रकाशित किए जा रहे हैं । ये लेख लिखते समय ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के साधकों को सीखने के लिए मिले सूत्र, साथ ही पाठकों, जिज्ञासुओं तथा हितचिंतकों से इन लेखों को मिला प्रत्युत्तर इत्यादि सूत्र देखेंगे ।

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु ‘आपातकाल से पूर्व ग्रंथों के माध्यम से अधिकाधिक धर्मप्रसार’ होने के उद्देश्य से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का संकल्प कार्यरत हो गया है । अतः उनकी अपार कृपा प्राप्त करने के लिए इस कार्य में पूर्ण लगन से सम्मिलित हों !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी जैसी महान विभूति के संकल्प के अनुसार साधक भी यदि ग्रंथ कार्य गति से होने के लिए लगन से प्रयास करें, तो साधकों को इस संकल्प का फल मिलेगा; अर्थात ही साधकों की आध्यात्मिक उन्नति गति से होगी ।