सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘अनिष्ट से संसार की रक्षा करनेवाले, तथा मानव की ऐहिक और पारलौकिक उन्नति सहित मोक्ष प्रदान करनेवाला तत्त्व है धर्म ! अधिकांश विदेशी भाषाओं में ‘धर्म’ शब्द का समानार्थी शब्द भी नहीं ! इस कारण उनके लिए धर्माचरण करना कठिन होता है ।’

सावधान ! २०४७ में ‘दार-उल-इस्लाम’ !

हिन्दुत्वनिष्ठों द्वारा ‘हम संवैधानिक पद्धति से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करेंगे’, यह घोषणा दिए जाने पर आक्रोश कर चिल्लानेवाले धर्मनिरपेक्षतावादी अब कहां हैं ? अथवा क्या उन्हें इस्लामी राष्ट्र चलेगा ? यह प्रवृत्ति तो पाखंडी धर्मनिरपेक्षता और हिन्दूविघातक दोहरी नीति का उदाहरण है !

हिन्दू होना क्या लज्जाजनक (शर्म की) बात है ?

एक प्रसिद्ध हिन्दू शास्त्रज्ञ को ऐसा प्रश्न करना पड रहा है, इससे धर्मनिरपेक्ष भारत में हिन्दुओं की भयावह स्थिति ध्यान में आती है !

धर्मांध दंगाइयों की याचिका एवं देहली उच्च न्यायालय की भूमिका !

पहले दंगे में सम्मिलित होना, तत्पश्चात मूलभूत अधिकार का हनन हो रहा है कहना, यह उचित नहीं । ऐसा कहते हुए न्यायालय ने धर्मांध की देहली पुलिस के विरुद्ध की याचिका अस्वीकार की ।

‘वन्दे मातरम्’ के सम्मान के लिए देश में कानून बनाया जाए ! – अधिवक्ता उमेश शर्मा, सर्वाेच्च न्यायालय

‘वन्दे मातरम्’ भारत की सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे देश के प्रत्येक नागरिक को मान्य करना चाहिए । अन्यथा हमें देश का नागरिक कहलवाने का कोई अधिकार नहीं है । ‘वन्दे मातरम्’ गीत में भारतमाता का सम्मान है ।

हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए तन, मन, धन, बुद्धि और कौशल का योगदान करना, यही काल के अनुसार गुरुदक्षिणा !

आज प्रत्येक व्यक्ति धर्माचरण करने लगा, उपासना करने लगा, तो ही वह धर्मनिष्ठ होगा । ऐसे धर्मनिष्ठ व्यक्तियों के समूह से धर्मनिष्ठ समाज की निर्मिति हो सकती है । धर्मनिष्ठ होने के लिए धर्म के अनुसार बताई उपासना अर्थात साधना करना अनिवार्य है ।

हिन्दू राष्ट्र स्थापना का कार्य स्वयं का है; इसलिए उसमें आगे बढकर कार्य करना चाहिए !

सनातन धर्मग्रंथों में राजधर्म बताया गया है । वहां धर्म की सीमा के बाहर राजनीति नहीं है । धर्म की सीमा से बाहर यदि राजनीति हो, तो उसका नाम ‘उन्माद’ है, जब तक भारत में धर्माधारित राजपद्धति अपनाई नहीं जाएगी, तबतक गायें, गंगा, सती, वेद, सत्यवादी, दानशूर आदि का संपूर्ण संरक्षण नहीं हो सकता ।

राखीपूर्णिमा के दिन बहन को चिरंतन ज्ञानामृत से युक्त सनातन के ग्रंथ भेंट कर, साथ ही राष्ट्र-धर्म के प्रति अभिमान बढानेवाले सनातन प्रभात की पाठिका बनाकर अनोखा उपहार दीजिए !

बहन के मन पर साधना का महत्त्व अंकित कर उसे उसके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लानेवाले ‘सनातन प्रभात’ की पाठक बनाना और उसे उसमें दी जानेवाली अमूल्य जानकारी पढने के लिए प्रेरित करना, उसके लिए इससे अधिक श्रेष्ठ उपहार अन्य क्या हो सकता है ?

रक्षाबंधन (११.८.२०२२)

बहन भाई के कल्याण हेतु एवं भाई बहन की रक्षा हेतु प्रार्थना करें । साथ ही वे ईश्वर से यह भी प्रार्थना करें कि ‘राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु हमसे प्रयास होने दीजिए ।’

‘सुखी जीवन एवं उत्तम साधना हेतु स्वभावदोष-निर्मूलन एवं गुणसंवर्धन’ प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण !

जीवन के किसी भी कठिन प्रसंग में मानसिक संतुलन खोए बिना, प्रसंग का धैर्यपूर्वक सामना कर पाने तथा सदैव आदर्श कृति होने हेतु व्यक्ति का मनोबल उत्तम एवं व्यक्तित्व आदर्श होना आवश्यक है । स्वभावदोष व्यक्ति का मन दुर्बल करते हैं, जबकि गुण आदर्श व्यक्तित्व विकसित करने में सहायक होते हैं ।