दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में मंदिर रक्षा हेतु कार्यरत होने का हिन्दुओं से आवाहन !
रामनाथी (गोवा) – ‘‘जिस प्रकार अंगद ने रावण की राजसभा में स्वयं भूमि पर पैर जमाया, उसी प्रकार हिन्दुत्वनिष्ठों को धर्मकार्य करने के लिए पैर जमाकर खडे रहना चाहिए, तभी जाकर हम हिन्दू राष्ट्र की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं’’, ऐसा प्रतिपादन राजस्थान की ‘धरोहर बचाओ समिति’ के संरक्षक अधिवक्ता भारत शर्मा ने किया । दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के ‘मंदिर रक्षा के लिए कार्यरत हिन्दुत्वनिष्ठों का अनुभवकथन’ के सत्र में वे ऐसा बोल रहे थे । इस अवसर पर व्यासपीठ पर अखिल भारतीय विज्ञान दल के संस्थापक डॉ. मृदुल शुक्ला, बेंगळूरु (कर्नाटक) के ‘शबरीमला अयप्पा सेवा समाजम्’ के उपाध्यक्ष श्री. जयराम एन., कर्नाटक के भाजपा के ‘बिजनेस एंड ट्रेडिंग टूरिस्ट प्रकोष्ठ’ के उपनिदेशक दिनेश कुमार जैन और सोलापुर (महाराष्ट्र) के ‘वारकरी संप्रदाय पाईक संघ’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता ह.भ.प. रामकृष्ण हनुमंत महाराज वीर उपस्थित थे ।
धर्मपालन के कृत्य सिखाकर समाज में सनातन धर्म को पुनः स्थापित करेंगे – डॉ. मृदुल शुक्ला, संस्थापक, अखिल भारतीय विज्ञान दल
सनातन धर्म वैज्ञानिक कैसा है, यह समाज के सामने लाने के लिए हमने ‘अखिल भारतीय विज्ञान दल’ की स्थापना की । इस माध्यम से हमने अनेक लोगों को सनातन धर्म के अध्ययन के लिए प्रेरित किया । जन्मदिवस के दिन केक न काटकर आरती उतारना, यज्ञ संस्कृति का पालन करना आदि छोटे-छोटे कृत्यों से हम समाज में सनातन धर्म की पुनः स्थापना करेंगे ।
शबरीमला मंदिर की व्यवस्था में अन्य पंथियों द्वारा बडे स्तर पर भ्रष्टाचार – जयराम एन., उपाध्यक्ष, शबरीमला अय्यप्पा सेवा समाजम्, कर्नाटक
केरल में साम्यवादी सरकार की धर्मनिरपेक्ष नीतियों के कारण एवं अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के कारण श्री अय्यप्पा मंदिर का व्यवस्थापन मुस्लिम और ईसाईयों के हाथ में है । उसके कारण वहां अनेक अनुचित कृत्य होते हैं । मंदिर का प्रसाद बनाने के लिए आवश्यक चावल, घी इत्यादि सामग्री अन्य पंथियों से खरीदी जाती है । वे इस माध्यम से ४ से १० करोड रुपए का व्यवसाय करते हैं । हमने इसके विरुद्ध आंदोलन किया । शबरीमला मंदिर में भगवान को अर्पण करने के लिए ‘इरुमुंडी कट्ट’ (विशिष्ट प्रकार की पूजासामग्री) ले जाई जाती है । उसमें आधे से एक किलो चावल होते हैं । इकट्ठा हुए चावल की नीलामी की जाती है । अन्य पंथीय इस चावल को खरीदते हैं और उसके उपरांत ६ रुपए प्रति किलो से वे इस चावल को पुनः सरकार को ही बेचते हैं । सरकार लोगों को जो निःशुल्क चावल का वितरण करती है, उसमें यह चावल मिलाए जाते हैं । इस प्रकार मंदिर के प्रसाद के संदर्भ में अन्य पंथीय बडे स्तर पर भ्रष्टाचार कर रहे हैं । मंदिर सरकारीकरण के दुष्परिणाम रोकने के लिए हिन्दुओं का संगठित होना आवश्यक है ।