सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘आध्यात्मिक उन्नति हेतु साधना करने में ‘त्याग’ एक महत्त्वपूर्ण चरण होता है । इसमें तन, मन एवं धन गुरु अथवा ईश्वर को अर्पित करना आवश्यक होता है । अनेक संप्रदाय अपने भक्तों को नाम, सत्संग जैसे सैद्धांतिक विषय सिखाते हैं; परंतु त्याग के विषय में कोई नहीं सिखाता ।

सनातन संस्था आनंदमय जीवन का मार्ग !

सनातन संस्था २२ मार्च २०२४ को उसकी स्थापना के २५ वर्ष पूर्ण कर रही है । सनातन संस्था की रजत जयंती (२५ वीं) महोत्सव के उपलक्ष्य में ‘सनातन संस्था के व्यापक कार्य का केवल प्राथमिक परिचय’ कही जाए, ऐसी जानकारी ‘सनातन संस्था का रजत जयंती महोत्सव’ विशेषांक में दी गई है ।

संपादकीय : सामर्थ्य… सनातन का !

‘केवल साधना ही करनी है’, ऐसा नहीं; अपितु ‘आध्यात्मिक प्रगति कर आनंदप्राप्ति करनी होती है’, यह समाज को बतानेवाली सनातन संस्था आध्यात्मिक संस्थाओं में से एक ‘आदर्श’ संस्था सिद्ध हुई है ।

सनातन धर्म का अस्तित्व बनाए रहने हेतु प्रयासरत सनातन संस्था !

वैदिक काल के ऋषि-मुनियों ने भौतिक एवं आध्यात्मिक, इन दोनों जीवनों का अच्छा मेल कर स्व-अनुशासित मानवीय समाज का निर्माण किया । ऐसे मानवीय समाज के निर्माण हेतु स्थल-काल का बंधन नहीं है, यह धर्म का मूलभूत सिद्धांत है ।

दिव्य, अलौकिक एवं एकमेवाद्वितीय सनातन संस्था !

‘आनंद (ईश्वर) प्राप्ति हेतु साधना सिखाना’ अध्यात्म का ज्ञान अगाध एवं अनंत है । सामान्य लोगों को वह कठिन लग सकता है अथवा उसमें दी गई उपासनाओं में से निश्चित रूप से कौनसी उपासना करनी चाहिए ?, यह प्रश्न उठता है ।

साधक की व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ही सनातन संस्था का उद्देश्य है ! – (पू.) अधिवक्ता हरि शंकर जैन, सर्वाेच्च न्यायालय

‘भारतीय गणराज्य के क्षितिज पर वर्ष १९९० में जब अंधकार छाया हुआ था, उस समय सूरज की किरणें दिखने का आभास युगद्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ने देश के कलुषित धर्मनिरपेक्षतावाद के विरोध में जनता को हिन्दू राष्ट्रवाद दिखलाने का कार्य किया ।

सनातन संस्था धर्म की रक्षा हेतु निरंतर संघर्ष करने का जो कार्य कर रही है, वह केवल अद्भुत एवं अद्वितीय !

भारत की आध्यात्मिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं की रक्षा करते हुए भारतीयों को सदैव कार्यरत अथवा जागृत बनाए रखने के लिए संघर्ष करनेवाली ‘सनातन संस्था’ रजत-महोत्सव मना रही है । हम सभी के लिए यह अत्यंत आनंद एवं सम्मान का क्षण है ।

सनातन संस्था है साधक को उसके ध्येय की ओर ले जानेवाली संस्था तथा सनातन के साधक हैं विभिन्न गुणों का संगम !

प.पू. भक्तराज महाराजजी के भक्तों द्वारा रामनाथी के आश्रम में कुछ दिन निवास करने के उपरांत उनके न्यास के अध्यक्ष श्री. शरद बापट द्वारा प.पू. डॉ. आठवलेजी को भेजा गया पत्र !

मैं एक ‘उद्यमी से साधक उद्यमी’ !

‘पितांबरी उद्योग समूह’ का नाम आज महाराष्ट्र के उद्योग जगत में एक सुप्रतिष्ठित हो चुका है । विगत ३५ वर्षाें से अत्यंत स्थिरतापूर्वक प्रगति करते हुए आज ‘पितांबरी उद्योग समूह’ ने वार्षिक ३०० करोड के कारोबार का चरण पार किया है ।

सनातन के आश्रम : रामराज्य की (हिन्दू राष्ट्र की) प्रतिकृति !

हिन्दू राष्ट्र के प्रेरणास्रोत सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में तैयार सनातन के आश्रमों में अनेक साधकों को चैतन्य, आनंद एवं शांति की अनुभूतियां होती हैं ।