डॉ. नरेंद्र दाभोलकर हत्या प्रकरण के निर्णय पर सनातन संस्था की मुंबई में पत्रकार वार्ता !
मुंबई – १० मई को न्यायालय ने डॉ. नरेंद्र दाभोलकर हत्या प्रकरण में सनातन संस्था के साधक श्री. विक्रम भावे को निर्दाेष मुक्त किया । न्यायालय के इस निर्णय का हम स्वागत करते हैं । हिन्दू आतंकवाद को स्थापित करने के लिए ही इस प्रकरण में सनातन संस्था को अकारण फंसाया गया था, यह न्यायालय के इस निर्णय से स्पष्ट हुआ है तथा दाभोलकर परिवार एवं महाराष्ट्र के तत्कालिन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इस प्रकरण में हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों का हाथ होने का वक्तव्य देकर जांच को भटकाने का काम किया था, जिससे सीबीआई की जांच पूर्ण होने के उपरांत भी न्याय मिलने में ११ वर्षाें का समय लगा, ऐसा प्रतिपादन सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने मुंबई में आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए किया ।
मुंबई के मुंबई मराठी पत्रकार संघ में संपन्न पत्रकार वार्ता में श्री. राजहंस के साथ हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे, उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय तथा हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. सतीश कोचरेकर व्यासपीठ पर उपस्थित थे । पत्रकार वार्ता के उपरांत पत्रकारों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का सर्वश्री चेतन राजहंस, रमेश शिंदे एवं अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय ने उत्तर दिए ।
डॉ. दाभोलकर हत्या प्रकरण का यह अभियोग संपूर्ण भारत में ऐसा पहला अभियोग है, जिसमें आपराधिक अन्वेषण विभाग के द्वारा जांच पूर्ण करने के उपरांत भी निर्णय आने में ८ वर्ष का समय लगा । इस निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए हत्या का प्रमुख सूत्रधार अभी पकडा नहीं गया है, यह एक ही सूत्र दाभोलकर परिवार ने रखा । डॉ. तावडे, विक्रम भावे एवं अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर को इसमें जानबूझकर फंसाया गया तथा आज निर्णय भी उसी प्रकार से आया । तत्कालिन सरकार एवं जांच अधिकारियों ने सनातन को इस प्रकरण में फंसाकर हिन्दुत्वनिष्ठों का बदनाम करने का षड्यंत्र रचा था, जो विफल सिद्ध हुआ । इस प्रकरण में जिन्हें दंडित किया गया है, उस निर्णय को हम वरिष्ठ न्यायालय में चुनौती देंगे । हमें यह विश्वास है कि भविष्य में वे भी निर्दाेष मुक्त हो जाएंगे । – अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय, उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय |
भगवा आतंकवाद को स्थापित करने हेतु ही जांच की दिशा भटकाई गई ! – चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था
श्री. राजहंस ने आगे कहा कि वर्ष २००८ से २०१४ तक इस राज्य में कांग्रेस के कार्यकाल में भगवान आतंकवाद का षड्यंत्र रचा गया । वर्ष २०१४ के चुनाव में सत्तापरिवर्तन होने न देना हो, तो लोगों के मन पर भगवा आतंकवाद अंकित करना होगा, इस दिशा में उनका प्रयास चल रहा था । उसके कारण ही इस प्रकरण की दिशा भटकाई गई । जिस दिन डॉ. दाभोलकर की हत्या हुई, उसी दिन फिरौती के प्रकरण में मुंब्रा एवं कोपरखैरणे से खंडेलवाल एवं नागौरी इन ३ कुख्यात गुंडों को गिरफ्तार किया गया । उनसे जब्त की गई बंदूक से ही दाभोलकर पर गोलियां चलाई गईं, यह बात फौरेंसिक लैब के ब्योरे से सिद्ध हुई थी । उनकी और जांच करने के उपरांत गोवा से मंगेश चौधरी एवं रुसूल अंसारी इन दोनों को गिरफ्तार किया गया । रसूल अंसारी को गिरफ्तार किए जाने के उपरांत तत्कालिन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण द्वारा रखा गया हिन्दू आतंकवाद का षड्यंत्र उजागर हुआ । सीबीआई ने इन सभी को ‘क्लीन चिट’ देकर खंडेलवाल एवं नागौरी को छोडा । उसके उपरांत इस प्रकरण में सनातन संस्था को फंसाने के प्रयास आरंभ हुए ।
श्री. राजहंस ने आगे किहा कि सनातन के १६०० साधकों के परिजनों से तथा हितचिंतकों से पूछताछ की गई । सनातन के आश्रमों पर छापामारी की गई । सनातन के आर्थिक लेनदेनों की जांच की गई । इस प्रकरण में सनातन के साधक श्री. विक्रम भावे पर झूठा आरोप लगाकर उन्हें अकारण ही २ वर्ष कारागृह में बंद किया गया । डॉ. तावडे को गिरफ्तार किए जाने के उपरांत दाभोलकर परिवार ने ‘डॉ. तावडे ही दाभोलकर हत्या के प्रमुख सूत्रधार हैं’, ऐसा बताना आरंभ किया । उन्होंने सनातन के साधक सारंग अकोलकर एवं विनय पवार ने दाभोलकर की हत्या की, इसका ढिंढोरा पीटा । अंनिस के कार्यकर्ताओं ने हत्यारों के रूप में सनातन संस्था के अकोलकर एवं पवार के पोस्टर लगाकर सनातन संस्था की बदनामी की । आरंभ में खंडेलवाल एवं नागौरी तथा उसके उपरांत सनातन के विभिन्न साधकों को इसमें फंसाने का प्रयास किया गया, साथ ही दाभोलकर हत्या के प्रकरण में ‘सनातन का समूह’ कार्यरत है तथा यह समूह राज्य में आतंकी गतिविधियां चलाने के प्रयास में है, ऐसा वातावरण तैयार कर युएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां प्रतिबंधक कानून) लगाया गया; परंतु न्यायालय ने यह कानून रद्द किया ।
सूत्रधार मुक्त; तो डॉ. तावड़े को इस मामले में क्यों फंसाया गया ? – रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिंदू जनजागृति समिति
हिन्दू जनजागृति समिति के डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे अंधविश्वास निर्मूलन कानून के आने से पूर्व उसके मसौदे का अध्ययन कर उसमें समाहित कष्टदायक धाराओं को किस प्रकार न्यून किया जा सकेगा, इसका अध्ययन कर रहे थे । डॉ. दाभोलकर हत्या प्रकरण में उन्हें गिरफ्तार करने के उपरांत दाभोलकर परिवार ने डॉ. तावडे ही दाभोलकर हत्या के प्रमुख सूत्रधार हैं, ऐसा सभी को बताया । आज ११ वर्ष उपरांत इस प्रकरण में निर्णय आने के उपरांत यही दाभोलकर परिवार हत्या के सूत्रधार अभी भी खुले घूम रहे हैं, ऐसा बता रहे हैं । उसके लिए ये लोग सर्वोच्च न्यायालय तक गए हैं । सर्वोच्च न्यायालय ने जब इस विषय में आपराधिक अन्वेषण विभाग से पूछा, तब उन्होंने भी जांच पूर्ण होने की बात कही है । दाभोलकर परिवार के कहे अनुसार प्रमुख सूत्रधार यदि अभी बाहर ही हैं, तो इस प्रकरण में डॉ. तावडे को क्यों फंसाया गया ? डॉ. तावडे को जब इस प्रकरण में फंसाया गया, उस समय वर्ष २०१६ में न्यायालय में जिस प्रत्यक्षदर्शी काे प्रस्तुत किया गया था, उस संजय साडविलकर पर कोल्हापुर के श्री महालक्ष्मी मंदिर के काम में ६०० किलो चांदी का घोटाला करने का आरोप है । वर्ष २०१५ में हिन्दू जनजागृति समिति ने यह घोटाला उजागर किया था, उसके कारण यहां संदेह किया जा सकता है ।
रमेश शिंदे ने आगे कहा कि अधिवक्ता पुनाळेकर पर हथियार नष्ट करने का आदेश देने का अपराध पंजीकृत किया गया । इस हथियार को ढूंढने हेतु नॉर्वे के जिस प्रतिष्ठान को ठेका दिया गया था, उस प्रतिष्ठान ने खोज कर समुद्रतल से एक ‘एयरगन’ बाहर निकाली । आगे जाकर डॉ. दाभोलकर पर चलाई गई गोली इस ‘एयरगन’ से चलाई नहीं गई थी, यह भी सिद्ध हुआ । इसके कारण इस पर किया गया सभी खर्च व्यर्थ हुआ । उसके कारण हिन्दुत्वनिष्ठों की कानूनी सहायता करनेवाले अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर को बिना किसी कारण इसमें फंसाया गया, यही इससे सिद्ध होता है । विक्रम भावे ने एक पुस्तक के माध्यम से मालेगांव बमविस्फोट प्रकरण की सच्चाई सामने लाई थी, साथ ही वे अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर के काम में उनकी सहायता कर रहे थे । उन पर दाभोलकर हत्या से पूर्व उस स्थान की रेकी करने का अपराध पंजीकृत किया गया । उन्होंने जिस समय रेकी की, उस समय उनके चलित भ्रमणभाष का ‘लोकेशन’ (स्थान) वहां का होना आवश्यक था; परंतु वैसा नहीं था ।
… इसकी अपेक्षा पुलिस का कुत्ता प्रामाणिक !कांग्रेस के तत्कालिन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने डॉ. दाभोलकर की हत्या का समाचार मिलने के कुछ ही मिनट उपरांत ‘इस हत्या में गोडसे प्रवृत्ति का हाथ’, ऐसा वक्तव्य दिया तथा वहीं से झूठ का आरंभ हुआ । ‘मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को इस हत्या में किसका हाथ है, यह कैसे ज्ञात हुआ ? क्या पुलिस ने उनसे पूछताछ की ?’ जैसे प्रश्न उठते हैं तथा पहले हत्या का षड्यंत्र रचा गया तथा ‘हत्या के उपरांत क्या बोलना है ?’क्या यह पहले ही सुनिश्चित किया गया था ?, यह संदेह वर्ष २०१३ में होता था; परंतु वह संदेह नहीं था, अपितु सच्चाई थी; ऐसा लग रहा है । हत्या के दिन पुलिस के श्वानदल के श्वान ने डॉ. दाभोलकर की चप्पल की गंध ली, तब वह डॉ. दाभोलकर जिस घर में रहते थे, उस दिशा में जाने के स्थान पर ‘बालगंधर्व नाट्यगृह’ की दिशा में चला गया । इसका क्या अर्थ है ? तो क्या डॉ. दाभोलकर घर से पैदल न चलकर ‘बालगंधर्व नाट्यगृह’ से आए थे ? अथवा अन्य कोई कारण था ?, इस दिशा में जांच हुई ही नहीं । यह बात बहुत कुछ बता देती है । अंनिस अथवा तत्कालिन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की भांति पुलिस का श्वान पूर्वाग्रही नहीं था, अपितु प्रामाणिक था । – एक धर्मप्रेमी |
साधक अंनिस का केवल वैचारिक विरोध करते थे । उन्होंने उनके घोटाले सामने लाए थे । उसके कारण उन्हें अकारण कारावास भोगना पडा । आधुनिकतावादी एवं वामपंथी व्यवस्था स्थापित करने हेतु तथा भगवा आतंकवाद सिद्ध करने हेतु जांच विभागों द्वारा रचा गया यह षड्यंत्र न्यायालय के इस निर्णय से ध्वस्त हुआ, यह इस निर्णय से ध्यान में आता है । !
सबूतों के अभाव में बरी हो जायेंगे यह निश्चित था ! – विक्रम भावे, सनातन संस्था
आज अदालत ने मुझे बरी कर दिया है। मेरी दृष्टि से, यही परिणाम अपेक्षित था। मुझे गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया। मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं था इसीलिए अदालत के सामने कोई सबूत नहीं आया। यह निश्चित था कि दोषमुक्ति होगी। आज यह सच्चाई बन गई है, मेरे लिए यह खुशी की बात है।
मुझे गिरफ्तार करते समय, सीबीआई अधिकारी ने मुझसे कहा कि वह मुझे तभी रिहा करेंगे जब मैं वकील संजीव पुनालेकर के खिलाफ गवाही देने को तैयार हो जाऊँगा। अन्यथा वे मुझे गिरफ्तार करने वाले थे; लेकिन चूँकि मैंने झूठी गवाही देने से इनकार कर दिया, इसलिए उन्होंने मुझे इस मामले में गिरफ्तार कर लिया और मुझ पर रेकी का आरोप लगाया; लेकिन वे आज तक उस संबंध में कोई साक्ष्य नहीं ला सके हैं। कई बार वे शपथ लेकर झूठ बोलते रहे, कहते रहे कि मेरे खिलाफ सबूत हैं और मेरी जमानत का विरोध करते रहे। जो वास्तव में असत्य है।
मेरे पिता का निधन हो गया था, लेकिन अधिकारियों ने उनका अंतिम संस्कार करने की अनुमति भी नहीं दी। उच्च न्यायालय ने मुझे जमानत देते समय यह शर्त रखी थी कि मैं इस मामले के अंत तक पुणे जिले से बाहर नहीं जाऊँगा। मेरे पिता जब गांव में थे तभी उनका निधन हो गया. हालाँकि मैं इकलौता बच्चा था, फिर भी मैं उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सका। मैंने इसके लिए अदालत में आवेदन किया; लेकिन इजाजत मिलने में तीन हफ्ते लग गए। उसके बाद मैं अन्य दिनों के अनुष्ठान करने में सक्षम हो गया।’ यह नहीं कहा जा सकता कि पुलिस ने जानबूझकर इसमें देरी की।
दाभोलकर हत्या प्रकरण में जो आरोपी हैं, उन्हें दंड मिला है । मैं न्यायालय के निर्णय का स्वागत करता हूं । इसके आगे दाभोलकर परिवार को जो कुछ भी सहायता लगेगी, वह सरकार देगी; यह हमारा वचन है ।
– एकनाथ शिंदे, मुख्यमंत्री
‘धर्मो रक्षति रक्षितः ।’, इस उक्ति के अनुसार दानों का निर्दोषत्व उच्च न्यायालय में प्रमाणित होगा ही ! – अधिवक्ता कृष्णमूर्ती, मडिकेरी, कर्नाटकदाभोलकर हत्या प्रकरण में आए निर्णय को देखकर लगता है कि न्यायालय पर कुछ तो दबाव है । ३ आरोपियों को मुक्त करने का मैं स्वागत करता हूं; क्योंकि इस प्रकरण का आरोपपत्र मैंने देखा है । ५ आरोपी इस प्रकरण में उलझे हैं, इसका कोई प्रमाण नहीं है । इस प्रकरण में कुछ भी हो जाए, न्यायालय में विजय निश्चित है । ‘धर्मो रक्षति रक्षितः ।’, इस उक्ति के अनुसार इसपर विश्वास करने से ही इन दोनों का निर्दोषत्व उच्च न्यायालय में प्रमाणित होगा ही, ऐसी आशा मैं कर रहा हूं । न्याय, सत्य और धर्म की सदैव विजय होती है । न्यायालय का निर्णय सीबीआई के मुंहपर तमाचा है । |
दाभोलकर की हत्या के समय का रहस्य !डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या कब हुई, यह एक बडा रहस्य है । प्रथमदर्शी ब्योरे में उनकी मृत्यु का समय भिन्न ही है, साथ ही अभियोजन पक्ष ने डॉ. दाभोलकर के हत्या का निश्चित समय दर्शानेवाला एक भी चिकित्सकीय ब्योरा प्रस्तुत नहीं किया है । कुछ साक्षी ‘मैंने डॉ. दाभोलकर को घायल अवस्था में देखा’, ऐसा बोलते हैं, तो कुछ ‘उन्हें गोली लगी थी’, ऐसा बोलते हैं, तो पुलिस ‘हमने उन्हें मृतक अवस्था में देखा’, ऐसा बोलते हैं ! तो डॉ. दाभोलकर उसके पहले दिन की रात को कहां थे ? तथा वे हत्या के स्थान पर कैसे आए ?, यह भी अभियोजन पक्ष ने सिद्ध नहीं किया है । इसलिए ‘डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या तथा उनकी हत्या का निश्चित समय क्या था ?’, यह एक बडा रहस्य बन गया है । (आरोपियों के अधिवक्ताओं द्वारा किए गए वादविवाद पर आधारित) |
संदिग्धों के पक्ष मेंअभियोग चलानेवाले अधिवक्ता !
मुंबई उच्च न्यायालय के उमदा अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर, अधिवक्ता प्रकाश साळसिंगीकर एवं अधिवक्त्री सुवर्णा वत्स-आव्हाड ने संदिग्धों के पक्ष में न्यायालय में पक्ष रखा । अन्वेषण विभागों ने झूठे प्रमाण एवं साक्षी खडे कर आरोपियों का जीवन ध्वस्त करने का मानो षड्यंत्र ही रचा था; परंतु इन सभी रणबांकुरे अधिवक्ताओं ने अध्ययनपूर्ण एवं स्पष्टतापूर्ण प्रतिवाद कर लडाई लडी ।