श्री दत्त परिवार एवं मूर्तिविज्ञान

दत्त अर्थात निर्गुण की अनुभूति दिया हुआ । दत्त वे हैं जिन्हें ‘वह स्वयं ब्रह्म ही है, मुक्त है, आत्मा है’, यह अनुभूति है । जन्म से ही दत्त को निर्गुण की अनुभूति थी, जबकि साधकों को ऐसी अनुभूति होने के लिए अनेक जन्म साधना करनी पडती है ।

विजयादशमी के दिन करने योग्य कृत्य एवं उसका अध्यात्मशास्त्र !

दशहरे को सरस्वती तत्त्व के क्रियात्मक पूजन से जीव के व्यक्त भाव का अव्यक्त भाव में रूपांतर होकर जीवको स्थिरता में प्रवेश होने में सहायता मिलती है ।

शक्तिदेवता !

इस वर्ष की नवरात्रि के उपलक्ष्य में हम देवी के इन ९ रूपों की महिमा समझ लेते हैं । यह व्रत आदिशक्ति की उपासना ही है !

श्री गणेश चतुर्थी

सभी भाई यदि एक साथ रहते हों, अर्थात सभी का एकत्रित द्रव्यकोष (खजाना) एवं चूल्हा हो, तो मिलकर एक ही मूर्ति का पूजन करना उचित है । यदि सबके द्रव्यकोष और चूल्हे किसी कारणवश भिन्न-भिन्न हों, तो उन्हें अपने-अपने घरों में स्वतंत्र रूप से गणेशव्रत रखना चाहिए ।

काल की आवश्यकता समझकर राष्ट्र तथा धर्मरक्षा की शिक्षा देना, यह गुरु का वर्तमान कर्तव्य !

राष्ट्र तथा धर्मरक्षा की शिक्षा देनेवाले गुरुओं के कार्य का स्मरण कीजिए !

विवाहोत्तर कुछ विधियां

बारात के घर आते ही वर-वधू के ऊपर दही-चावल फेरकर फेंके जाते हैं । घर में प्रवेश करते समय वधू प्रवेशद्वार पर रखे चावल से भरे पात्र को दाएं पैर के अंगूठे से लुढकाकर घर में प्रवेश करती है । तत्पश्चात लक्ष्मीपूजन कर वधू को ससुराल का नया नाम दिया जाता है ।

विवाहसंस्कार शास्त्र एवं वर्तमान अनुचित प्रथाएं

वधू को पिता के घर से अपने घर ले जाना अर्थात ‘विवाह’ अथवा ‘उद्वाह’ है । विवाह अर्थात पाणिग्रहण, अर्थात वर द्वारा स्त्री को अपनी पत्नी बनाने के लिए उसका हाथ पकडना । पुरुष स्त्री का हाथ पकडता है; इसलिए विवाह उपरांत स्त्री पुरुष के घर जाए । पुरुष का स्त्री के घर जाना अनुचित है ।

विवाह समारोह में क्या नहीं करना चाहिए एवं विवाह समारोह कैसा होना चाहिए ?

पूर्वकाल में हिन्दुओं के विवाह समारोह धार्मिक रूप से संपन्न होते थे । वर-वधू को देवालय के चैतन्य का लाभ प्राप्त होने की दृष्टि से विवाहसंस्कार देवालय में करने की भी परंपरा थी । वर्तमान में हिन्दुओं को लगता है कि विवाह समारोह एक मौजमस्ती का कार्यक्रम है ।

विवाहपत्रिका

समाज पर भोगवाद के प्रभाव के कारण विवाह विधि अनेकों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गई है । इस कारण धन पानी की भांति बहाया जाता है । इस अपव्यय का प्रारंभ विवाह की निमंत्रण पत्रिका से होता है ।