धूप के उपचार करने से (शरीर पर धूप लेने से) व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ होना !

‘आज के समय में अधिकतर लोगों को अल्पाधिक स्तर पर आध्यात्मिक कष्ट (टिप्पणी) होता है, साथ ही वातावरण में रज-तम का स्तर बहुत बढ जाने से व्यक्ति की देह, मन एवं बुद्धि पर कष्टदायक स्पंदनों का आवरण बतनता है ।

‘बिजली के दीप से युक्त प्लास्टिक का दीप’ तथा ‘मोम की ज्योति’ लगाने से वातावरण में नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होना; परंतु इसके विपरीत ‘तिल का तेल तथा रुई की बाती डालकर प्रज्वलित किए गए मिट्टी के पारंपरिक दीप’ के प्रभाव से वातावरण में सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होना

बिजली के दीप से युक्त दीप तथा मोम के दीप का उपयोग टालकर तिल के तेल तथा हाथ से बनाई गई रुई की बाती डालकर मिट्टी के दीप प्रज्वलित करना आध्यात्मिक दृष्टि से लाभकारी है ।

आज का काल रज-तमप्रधान होने के कारण प्रसाद स्वरूप प्राप्त वस्तुओं की शुद्धि करने के उपरांत ही उनका उपयोग करना उचित !

देवालय में श्रद्धालु भगवान का भक्तिभाव से दर्शन करते हैं । देवालय के पुजारी कभी-कभी प्रसाद के रूप में कुछ वस्तुएं देते हैं, उदा. भगवान को अर्पण की गई मालाएं, वस्त्र इत्यादि । भगवान को अर्पित वस्तुओं में चैतन्य होता है ।

देवालय में परिक्रमा करने से व्यक्ति को होनेवाले आध्यात्मिक स्तर के लाभ !

देवालय के गर्भगृह में विद्यमान चैतन्य गर्भगृह में एवं गर्भगृह के आसपास वर्तुलाकार घूमता रहता है । परिक्रमा करने से परिक्रमा करनेवाले को इस चैतन्य का लाभ मिलता है ।

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के अंतर्गत ‘वास्तुओं की सात्त्विकता का अध्ययन’, इससे संबंधित शोधकार्य में सम्मिलित हों !

वर्तमान काल में समाज में वास्तुशास्त्र बहुत ही प्रचलित है । प्रत्येक व्यक्ति को लगता है कि अपना घर वास्तुशास्त्र के अनुसार होना चाहिए । घर में वास्तुदोष हों, तो वहां निवास करनेवालों पर उसके विपरीत परिणाम होते हैं ।

पूजाविधि में समाहित घटकों पर भूमिपूजन अनुष्ठान का सकारात्मक परिणाम होना !

भूमि खरीदने के उपरांत ‘भूमि की शुद्धि होकर स्थानदेवता का आशीर्वाद मिले’, इस उद्देश्य से सर्वप्रथम भूमि का विधिवत पूजन किया जाता है ।

व्यक्ति के चेहरे के परिवर्तित हावभाव के अनुसार उसके द्वारा प्रक्षेपित स्पंदनों में भी परिवर्तन आना

व्यक्ति का चेहरा, विशेषतः उसकी आंखों के भाव मानो उसके मन के दर्पण होते हैं । उसके मन के विचारों का प्रतिबिंब उसके चेहरे पर दिखनेवाले हावभाव के रूप में स्पष्टता से दिखाई देता है ।

‘संगीत को पशु किस प्रकार प्रतिसाद देते हैं ?’ इस विषय पर महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा किए शोध के समय किन्नीगोळी (कर्नाटक) के प.पू. देवबाबा के आश्रम के गाय एवं बैल ने दिया प्रतिसाद !

‘जब गायन हो रहा था, उस समय चिटणीसजी के पीछे की सभी गाएं उठकर खडी हुईं तथा उनकी ओर देखने लगी । स्वर विस्तार सुनते समय ‘गौरी’ नामक गाय उनकी ओर मुडी एवं उनकी ओर जाने का प्रयास करने लगी । उसे बांधकर रखा था, इसलिए वह आगे नहीं जा पाई । गायन सुनते समय ‘गौरी’ की आंखों में आंसू निकल आएं ।

हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार (धार्मिक पद्धति से) विवाह संस्कार करने के कारण आध्यात्मिक पीडा से ग्रस्त तथा आध्यात्मिक पीडारहित वधू-वरों को मिले हुए आध्यात्मिक स्तर के लाभ

विवाह का वास्तविक उद्देश्य है – ‘दो जीवों का भावी जीवन एक-दूसरे के लिए पूरक एवं सुखी बनने के लिए ईश्वर के आशीर्वाद प्राप्त कर लेना !’ इसके लिए धर्मशास्त्र में बताए अनुसार विवाह संस्कार करना आवश्यक होता है ।

भगवान को नमस्कार करने की उचित पद्धति तथा उससे संबंधित शोध

‘देवालय में देवता के दर्शन करते समय हम दोनों हाथ जोडकर भगवान को नमस्कार करते हैं । दोनों हाथों के तलुओं को एक-दूसरे पर रखने से (अर्थात एक-दूसरे को चिपकाकर) जो मुद्रा बनती है, उसे ‘नमस्कार’ कहते हैं ।