शासनकर्ताओं द्वारा साधना न सिखाकर सर्वधर्म समभाव सिखाने का दुष्परिणाम !

जनता को साधना सिखाकर उसे सात्त्विक बनाना, शासनकर्ताओं का कर्तव्य है । इसका पालन करने के स्थान पर नेताओं ने जनता को सर्वधर्म समभाव सिखाया । इस कारण सामान्य व्यक्ति अपना धर्म भूल गया और धर्म द्वारा सिखाए नैतिक मूल्य भी भूल गया ।

गाय को माता माननेवाले हिन्दुओं के लिए यह लज्जाजनक

‘कहां एक गाय की रक्षा के लिए प्राण त्यागनेवाले हिन्दुओं के पूर्वज, और कहां लाखों गायों को पशुवधगृह में भेजनेवाले आज के हिन्दू !’

कलियुग में समष्टि साधना करने का महत्त्व !

‘कलियुग के पूर्व के युगों में राजा जनता का रक्षण करते थे, इसलिए प्रजा व्यष्टि साधना करती थी । वर्तमान में विशेषतः स्वतंत्रता के उपरांत शासनकर्ता जनता का रक्षण नहीं करते । इस कारण सभी का समष्टि साधना करना आवश्यक है ।’

हिन्दुओ, ‘हिन्दू राष्ट्र मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे प्राप्त करके रहूंगा’, ऐसा निश्चय प्रत्येक हिन्दू को करना आवश्यक है !

‘हिन्दू राष्ट्र मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे पाकर रहूंगा’, ऐसा निश्चय कर, प्रत्येक हिन्दू को उसके लिए संघर्ष करने की वृत्ति के साथ संवैधानिक मार्ग से प्रयास करने चाहिए !

हिन्दुओं को साधना सिखाना अपरिहार्य !

‘संसार का सर्वश्रेष्ठ हिन्दू धर्म में जन्म प्राप्त करके भी धर्म के लिए कुछ भी न करनेवाले हिन्दू मरने योग्य हैं अथवा जीने योग्य नहीं’, ऐसा कुछ लोगों को लगता है; परंतु यह उचित नहीं ।’ उन्हें साधना सिखाना हिन्दुओं का कर्तव्य है ।’

ईश्वरप्राप्ति के संदर्भ में मनुष्य की लज्जाजनक उदासीनता !

‘धनप्राप्ति, विवाह, रोग-व्याधि इत्यादि अनेक कारणों के लिए अनेक लोग उपाय पूछते हैं; परंतु ईश्वर प्राप्ति के लिए उपाय पूछने का कोई विचार भी नहीं करता !’

स्वार्थी मानव !

मानव एकमात्र प्राणी है, जो केवल स्वयं के लिए जीता है । वह प्रकृति पशु-पक्षी एवं वनस्पति से निरंतर कुछ ना कुछ लेता रहता है । मानव के स्वार्थ के कारण ही वह अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक दुखी रहता है ।

जिसे ईश्वर ज्ञात नहीं उस विज्ञान की सीमाएं !

‘आजकल हम जिसे ‘विज्ञान’ अर्थात ‘विशेष ज्ञान’ कहते हैं वह ‘विगतं ज्ञानं यस्मात् ।’ अर्थात ‘जिससे ज्ञान निकल गया है, वह’ बन गया है । विज्ञान को ‘ईश्वर है, ईश्वर निर्गुण निराकार है तथा उसकी व्याप्ति अनंत कोटि ब्रह्मांड के बराबर है’, यह भी ज्ञात नहीं है।’

अध्यात्म की परिपूर्णता तथा विज्ञान की शैशव अवस्था !

‘अध्यात्म में अनंत कोटि ब्रह्मांड का, साथ ही विश्व की उत्पत्ति से लेकर प्रलय तक का ज्ञान है । इसकी तुलना में विज्ञान को पृथ्वी तो क्या, मनुष्य की देह का कार्य भी पूर्णतया ज्ञात नहीं हुआ है !’

मोक्ष देने का सामर्थ्य केवल हिन्दू धर्म में ही है !

‘अनेक हिन्दू यह कहते हुए धर्मांतरण करते हैं कि ‘हिन्दू धर्म ने हमें क्या दिया ?, अन्य धर्म में अनेक चीजें देते हैं !’ केवल हिन्दू धर्म ही मोक्ष देता है, अन्य धर्म नहीं’, हिन्दू धर्म का यह महत्त्व हिन्दुओं पर अंकित करना, यही धर्मांतरण रोकने का सटीक उपाय है ।’