सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘आध्यात्मिक उन्नति हेतु साधना करने में ‘त्याग’ एक महत्त्वपूर्ण चरण होता है । इसमें तन, मन एवं धन गुरु अथवा ईश्वर को अर्पित करना आवश्यक होता है । अनेक संप्रदाय अपने भक्तों को नाम, सत्संग जैसे सैद्धांतिक विषय सिखाते हैं; परंतु त्याग के विषय में कोई नहीं सिखाता ।

इस संसार में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं, जिसका कोई उपयोग नहीं !

‘अंधकार के कारण प्रकाश का, दुर्गंध के कारण सुगंध का, और मूर्ख के कारण बुद्धिमान का महत्त्व समझ में आता है !’

ईश्वरीय राज्य में शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य !

‘संसार के किसी भी देश के शासनकर्ता ‘जनता सात्त्विक बने’, इस उद्देश्य से उसे साधना नहीं सिखाते । ईश्वरीय राज्य में शिक्षा का यही प्रमुख उद्देश्य होगा ।’

अध्यात्म का अध्ययन करने की अपेक्षा साधना करें !

‘अध्यात्म शास्त्र अनंत है । अनंत ग्रंथों में इसे अनंत प्रकार से प्रस्तुत किया गया है । इस कारण बुद्धि से उसका अध्ययन करने की अपेक्षा साधना करें और स्वयं अनंत की (परमेश्वर की) अनुभूति लें ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘संसार के अन्य सभी विषयों का ज्ञान अहंकार बढाता है, जबकि अध्यात्म एकमात्र ऐसा विषय है, जो अहंकार अल्प करने में सहायता करता है ।’

बुद्धिप्रमाणवादियों एवं विज्ञान निष्ठों का ज्ञान अति सीमित होने के कारण

‘बुद्धिप्रमाणवादियों एवं विज्ञान निष्ठों में यह अहंकार होता है कि ‘मुझे जो पता है, वही सत्य है’ और नया कुछ समझने की उनमें जिज्ञासा नहीं होती । इसके विपरीत ऋषियों में अहंकार न होने के कारण तथा जिज्ञासा होने के कारण उनके ज्ञान की श्रेणी बढती जाती है और वे अनंत कोटि ब्रह्मांड के असीमित ज्ञान की भी जानकारी दे सकते हैं !’

वर्तमान पीढी की कृतघ्नता !

‘धर्मशिक्षा एवं साधना के अभाववश कृतघ्न बनी वर्तमान पीढी को माता-पिता की सम्पत्ति चाहिए; परन्तु वृद्ध माता-पिता की सेवा नहीं करनी ।’

वैश्विक जनसंख्या का परिणाम !

किसी थाली में कीटक अत्यधिक बढ जाने पर उन्हें थाली में रखा भोजन पर्याप्त नहीं होता । इस कारण वे मर जाते हैं । यही अब पृथ्वी की स्थिति हो गई है । – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

राष्ट्रप्रेमी हिन्दुओ, ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में हम श्रीराम की वानरसेवा के वानरों की भांति सम्मिलित हैं, ऐसा भाव रखें !

‘ऐसा भाव रखने पर रामराज्य की अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने के साथ ही आपका भी उद्धार होगा; अन्यथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने पर भी अहंभाव जागृत होने के कारण आपका उद्धार नहीं होगा ।’

शीघ्र ही होगी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना !

‘कलियुगांतर्गत कलियुग अब वृद्ध हो चुका है । शीघ्र ही वह समाप्त होगा और कलियुगांतर्गत सत्ययुग आएगा, अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी ।’