संसार की सभी भाषाओं में केवल संस्कृत में ही उच्चारण सर्वत्र एक समान होना
‘लिखते समय अक्षर का रूप महत्वपूर्ण होता है, उसी प्रकार उच्चारण करते समय वह महत्त्वपूर्ण होता है ।
‘लिखते समय अक्षर का रूप महत्वपूर्ण होता है, उसी प्रकार उच्चारण करते समय वह महत्त्वपूर्ण होता है ।
‘जिस प्रकार अनपढ व्यक्ति का यह कहना कि ‘सभी भाषाओं के अक्षर समान होते हैं’, उसका अज्ञान दर्शाता है । उसी प्रकार ‘सर्वधर्म समभाव’ कहनेवाले अपना अज्ञान दर्शाते हैं । ‘सभी औषधियां, सभी कानून समान ही हैं’, ऐसा ही कहने के समान है, ‘सर्वधर्म समभाव’ कहना !’
‘नागरिकों की आध्यात्मिक उन्नति से राष्ट्र के विकास का मूल्यांकन किया जाना चाहिए; क्योंकि भौतिक विकास कितना भी हो जाए, यदि आत्मिक (अथवा नैतिक) विकास न हो, तो उस भौतिक विकास का क्या अर्थ है ?’
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य करते समय ‘मैं करता हूं’, ऐसा अहम् रखने की आवश्यकता नहीं; क्योंकि काल महिमा के अनुसार वह कार्य निश्चित रूप से होगा;
‘पश्चिमी देश माया में आगे बढना सिखाते हैं, जबकि भारत ईश्वरप्राप्ति के मार्ग पर आगे बढना सिखाता है ! –
‘भारत विगत ९०० वर्षों से परतंत्र था । इस कारण हिन्दुओं की अनेक पीढ़ियां दासता (गुलामी) में बीती हैं । मन से दासता का यह विष नष्ट करने के लिए हिन्दू राष्ट्र की (ईश्वरीय राज्य की) स्थापना करने के लिए दिन रात प्रयास करना आवश्यक है ।
‘अन्य देशों का इतिहास अधिकतम दो-तीन सहस्र वर्षों का है, जबकि भारत का लाखों वर्षों का, युगों-युगों का है । यह पाठशाला में नहीं सिखाया जाता ।
‘माता-पिता भी अपने सभी बच्चों से समान प्रेम नहीं करते । ऐसे में ‘साम्यवाद’ शब्द का भला क्या अर्थ ?’
‘जहां पृथ्वी के सभी मनुष्य ही नहीं, अपितु वृक्ष, पर्वत, नदियां इत्यादि भी एक समान दिखाई नहीं देते, वहां ‘साम्यवाद’ यह शब्द ही हास्यास्पद नहीं है क्या ?’
‘अध्यात्म के ‘प्रारब्ध’ शब्द की तथा ईश्वर की पूर्ण अवहेलना करने के कारण साम्यवाद १०० वर्षों में ही समाप्त होने को है !’ –