सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘वृद्धावस्था में संतान ध्यान नहीं देती, ऐसा कहनेवाले वृद्धजनों, आपने संतान पर साधना के संस्कार नहीं किए, इसका यह फल है । इसलिए संतान के साथ आप भी उत्तरदायी हैं !’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘हिन्दू’ शब्द की व्युत्पत्ति है, ‘हीनान् गुणान् दूषयति इति हिंदुः ।’ अर्थात ‘हीन, कनिष्ठ, रज एवं तम गुणों का नाश करनेवाला ।’ कितने हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन अपने कार्यकर्ताओं को यह सिखाते हैं ?’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार 

विश्व को जानने की विज्ञान और अध्यात्म की क्षमता: आधुनिक विज्ञान केवल दृश्य स्वरूप ग्रह-तारों के विषय में ही थोडी बहुत जानकारी दे सकता है । इसके विपरीत अध्यात्मशास्त्र सप्तलोक और सप्तपाताल के सूक्ष्म जगत की जानकारी देता है ।

हिन्दुओ, शत्रु सीमा लांघ रहा है; इसलिए अपनी रक्षा की तैयारी करो !

‘देवताओं द्वारा आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने का दिन है विजयादशमी !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘एक एटम बम में लाखों बंदूकों का सामर्थ्य होता है, उसी प्रकार आध्यात्मिक बल में भौतिक, शारीरिक एवं मानसिक बल से अनंत गुना अधिक सामर्थ्य होता हैे । इसी कारण धर्मप्रेमी ‘संख्याबल अल्प होने पर भी हिन्दू राष्ट्र कैसे साकार होगा ?’, इसकी चिंता न करें ।’

विश्व के विषय में जानने संबंधी विज्ञान और अध्यात्म की क्षमता

विश्व के विषय में जानने संबंधी विज्ञान और अध्यात्म की क्षमता: आधुनिक विज्ञान केवल दृश्य स्वरूप के ग्रह-तारों के विषय में ही थोडी बहुत जानकारी दे सकता है । इसके विपरीत अध्यात्मशास्त्र सप्तलोक और सप्तपाताल के सूक्ष्म जगत की जानकारी देता है ।

जातिवाद के कारण हिन्दुओं की अधोगति हो रही है !

संत ज्ञानेश्वर महाराज ने भी कहा है, ‘हे विश्वचि माझे घर ।’ इसके विपरीत आज के कलियुग में हिन्दुओं को, पूरे विश्व के छोडो, अत्याचार से पीडित भारत के हिन्दू अपने नहीं लगते ।

बुद्धिवादियों के कारण अध्यात्म के विविध अंगों से वंचित रहनेवाले हिन्दू !

अब अधिवक्ता परामर्श देते हैं कि ‘बुद्धि से परे का कुछ न छापें !‘ इसलिए मानव को बडी घटनाओं और उनके शास्त्र से वंचित रहना पड रहा है । हिन्दू राष्ट्र में बुद्धि से परे का बतानेवालों को गौरवान्वित किया जाएगा ।’

हिन्दुओं द्वारा धर्म भुलाने का यह है परिणाम !

‘धर्मांध लोगों को उनके धर्म से शक्ति मिलती है; इसलिए वे धर्म के लिए आत्मसमर्पण भी करते हैं । इसके विपरीत हिन्दुओं ने धर्म भुला दिया है, इसलिए उनकी तिनके बराबर भी कीमत (शक्ति) नहीं ।’

महाराष्ट्र के महान संत ज्ञानेश्वर की महिमा !

‘कहां जाति, धर्म, प्रांत इत्यादि देखनेवाले संकीर्ण वृत्ति के आजकल के राजनीतिक दलों के नेता; और कहां ‘विश्व ही मेरा घर ।’ कहनेवाले संत ज्ञानेश्वर !’