माहेश नवमी का त्योहार एवं आध्यात्मिक महत्व
माहेश नवमी को माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति के दिन के रूप में माना जाता है । इस दिन माहेश्वरी समाज के लोग शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं । मां पार्वती एवं शिव के लिए व्रत रखते हैं ।
माहेश नवमी को माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति के दिन के रूप में माना जाता है । इस दिन माहेश्वरी समाज के लोग शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं । मां पार्वती एवं शिव के लिए व्रत रखते हैं ।
हिन्दू धर्म के साढे तीन शुभमुहूर्ताें में से वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया एक है । इसीलिए इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहते हैं । इस तिथि पर कोई भी समय शुभमुहूर्त ही होता है । इस वर्ष २२ अप्रैल २०२३ को अक्षय तृतीया है ।
‘३०.३.२०२३ को श्रीरामनवमी संपन्न हुई । युगों से जिनके दैवी अवतारत्व का चिन्ह जनमानस में अंकित है, वे अयोध्या के राजा प्रभु श्रीरामचंद्र इस घोर कलियुग में भी श्रीरामनवमी के निमित्त पुनः एक बार प्रत्येक के मन में अंतस्थ विराजमान हो गए हैं ।
कुछ पंचांगों के अनुसार हनुमान जन्मतिथि कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी है, तो कुछ चैत्र पूर्णिमा बताते हैं । महाराष्ट्र में हनुमानजयंती चैत्र पूर्णिमापर मनाई जाती है ।
हनुमानजी की पूजा से पूर्व, तथा हनुमान जयंती के दिन घर अथवा देवायल में हनुमान तत्त्व आकर्षित एवं प्रक्षेपित करनेवाली सात्त्विक रंगोलियां बनाएं । ऐसी कुछ रंगोलियां आगे दी हैं ।
पूजा में विशिष्ट देवता को जो विशिष्ट सामग्री अर्पित की जाती है, ‘वह सामग्री उस देवता को प्रिय है’, उदा. गणपति को लाल फूल, शंकरजी को बिल्वपत्र एवं विष्णुजी को तुलसी ।
देवताओं एवं अवतारों की जन्मतिथि पर उनका तत्त्व भूतल पर अधिक मात्रा में सक्रिय रहता है । श्रीराम नवमी के दिन रामतत्त्व सदा की तुलना में १ सहस्र गुना सक्रिय रहता है । इसका लाभ लेने हेतु श्रीराम नवमी के दिन ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ नामजप अधिकाधिक करें ।
३१ दिसंबर को रात १२ बजे आरंभ होनेवाले नववर्ष की तुलना, सूर्यास्त के पश्चात आरंभ होनेवाली तमोगुणी रात्रि से कर सकते हैं । प्राकृतिक नियमों के अनुसार आचरण मनुष्य के लिए पूरक है, जबकि विरुद्ध आचरण हानिकारक । अतः, पश्चिमी संस्कृति अनुसार १ जनवरी को नहीं; चैत्र शु. प्रतिपदा पर ही नववर्षारंभ मनाने में हमारा वास्तविक हित है ।’
होलिकोत्सव दुष्प्रवृत्ति व अमंगल विचारों को समाप्त कर, सन्मार्ग दर्शानेवाला उत्सव है । इस उत्सव का महान उद्देश्य है, अग्नि में वृक्षरूपी समिधा अर्पित कर वातावरण को शुद्ध करना ।
फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी पर एकभुक्त रहें । चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल व्रत का संकल्प करें । सायंकाल नदी पर अथवा तालाब पर जाकर शास्त्रोक्त स्नान करें ।