प्राकट्य भये द्वादश तिथि, पौष शुक्ल अवतार ।
कच्छप बन धारण किया, था पृथ्वी का भार ।। १ ।।
नत मस्तक हैं सभी जन, अवध लला के धाम ।
आज प्रतिष्ठित हो रहे, मंदिर में श्रीराम ।। २ ।।
प्रतीक्षा लंबे समय की, पूरण कीन्ही आप ।
विधि विधान से हो रही, सभी क्रिया अरु जाप ।। ३ ।।
तिमिर कटा अज्ञान का, होवे भक्ति प्रकाश ।
रामराज्य फिर से मिले, यह जन-जन की आश ।। ४ ।।
षड् ऋतुएं फलदायी हों, सुखी होहिं नर-नार ।
कीर्ति फैले विश्व में, हीं उत्तम आचार ।। ५ ।।
ठाकुर जी घट-घट वसे, हैं सबके वह एक ।
उनके गुण अपनायकर, बन जाओ सब नेक ।। ६ ।।
मनसा वाचा कर्मणा, करो राष्ट्र हित काम ।
सेवा हनुमत सम करो, रमैं रोम सिया राम ।। ७ ।।
होत कृपा जब राम की, शक्ति मिले अपार ।
कारज होते सफल तब, मिट जाता अंधकार ।। ८ ।।
त्याग तपस्या कार्य शुभ, होते हैं बलवान ।
ईश्वर भी करता मदद, बढे यदि इंसान ।। ९ ।।
सत्य सनातन शाश्वत, अजर अमर प्रभु नाम ।
जिसका आदि न अंत है, वे ही हैं श्रीराम ।। १० ।।
वरण करो सत् न्याय की, सत्यमेव जयगान ।
आधारित इस मंत्र पर, भारत देश महान ।। ११ ।।
– वैद्य फूलचन्द्र शर्मा, श्रद्धा आयुर्वेद केंद्र, बरेली, उत्तरप्रदेश. (२२.१.२०२४)