‘४.७.२०१९ या दिवशी रात्री भावसत्संग भावपूर्ण वातावरणात चालू होता. त्या वेळी माझी गुरुदेवांच्या चरणी पुष्कळ कृतज्ञता व्यक्त होत होती. ‘माझ्या जीवनात गुरुच सर्वस्व आहेत. गुरुविना जीवनच नाही’, असे वाटून मला गुरुदेवांविषयी स्फुरलेले काव्य पुढे दिले आहे.
कैसे करूं गुरुलीला का वर्णन ।
करते हैं सभी साधकों में परिवर्तन ।। धृ ।।
कितने भी स्वभावदोष, अहं हों ।
गुरुचरण में भस्म हो सकते हैं ।
सभी साधकों में आपका ही अस्तित्व हैं ।
व्यक्त होती हैं उनकी बातें कृतियों से ।। १ ।।
धन्यता लगती है गुरुचरण की सेवा में ।
कृतज्ञता लगती है गुरुचरण के पूजन में ।
प्रकट होते हैं गुरुदेव संत, सद्गुरु के रूप में ।
संत, सद्गुरु हैं गुरुदेवजी के रूप में ।
एकरूप हुए हैं दोनों साधकों के सामने ।। २ ।।
गुरुसेवा, गुरुज्ञान ही जीवन का मूलमंत्र है ।
कैसे रह सकते हैं साधक गुरु के विस्मरण में ।
हर कोशिका में बसी है गुरुकृपा की शक्ति ।
अंतिम साँस तक रखनी है गुरुसेवा की भक्ति ।। ३ ।।
रामनाथी तो केवल आश्रम नहीं, भूवैकुंठ है ।
साधक तो साधक नहीं, देवी-देवता हैं ।
सम्मिलित हुए हैं सभी गोवर्धन के नीचे ।
रखे हैं साधक अपने तन-मन त्याग की लाठी ।। ४ ।।
घोषवाक्य एक ही है हिन्दू राष्ट्र का ।
ध्येय एक ही है ईश्वरप्राप्ति का ।
एकमेव योग है गुरुकृपाका ।
मार्ग तो एक ही है मोक्ष की ओर ।
धन्य हो गए हम इस जीवन में ।
धन्य हो गए हम इस जीवन में ।। ५ ।।
– श्री. गुरुप्रसाद गौडा (वर्ष २०२२ मधील आध्यात्मिक पातळी ६५ टक्के, वय ४१ वर्षे), मंगळुरू, कर्नाटक (६.७.२०१९)
• इथे प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या भाव तेथे देव या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |