सर्व साधकांचा आधार असलेले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले !
हे गुरुदेव कैसी वर्णित करूं
आपकी महिमा ।
कभी बने बंसीधर
कभी बने प्रभु श्रीराम ।। १ ।।
कभी बुलाएं ‘हे गुरुदेव’
कभी बुलाएं ‘गुरुमाऊली’ ।
आखिर (टीप १) आप ही तो हैं
हमारी परछाई ।। २ ।।
मन बोले आनंदी हैं हम गुरु के धाम ।
आखिर है तो मन को हरनेवाला जयवंत (टीप २) नाम ।। ३ ।।
कभी आएं बनकर साधक, कभी संत-सद्गुरु ।
तारे हमरे दुःख-प्रारब्ध, लेकर विविध रूप ।। ४ ।।
एक दृष्टि पडे साधक जन पर ।
वह भूल जाए नियंत्रण स्वयं पर ।। ५ ।।
ऐसे हैं हमारे गुरुदेव की कृपा।
देखकर दंग रह जाएं सर्व देवतागण ।। ६ ।।
भर देते हैं आपातकाल में ।
सभी साधकों का आनंद से मन ।। ७ ।।
मिला सत्संग आज उनके सुपुत्र का (टीप ३) ।
मानो स्वयं गुरुदेव पात्र बना रहे हैं हम जैसे अपात्र को ।। ८ ।।
कैसे आए ये शब्दसुमन ।
न जाने कहां बैठे थे छुपकर ।। ९ ।।
अरे भक्तगण, यह तो हम सभी की ।
मन की स्थिति हुई आज साकार ।। १० ।।
एक ही विनती है गुरुदेव आपके चरणों में ।
न लगे डर स्वभावदोष-अहं के मरण में (टीप ४) ।। ११ ।।
आओ आओ स्तुतिगान करें गुरुदेवजी का ।
लेके सहस्र गुना गुरुतत्त्व इस गुरुपूर्णिमा का ।। १२ ।।
हुआ पुष्प भी अलंकृत पुष्पमाला बनकर ।
होंगे धन्य हम स्वयं पुष्प चढाकर श्री गुरु के चरणों पर ।। १३ ।।
टीप १ – अंततः
टीप २ – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले
टीप ३ – सनातन के संत पू. रमानंद गौडा अण्णा का सत्संग
टीप ४ – प्रक्रिया
– श्री. प्रशांत हरिहर, मंगळूरु (१२.७.२०२१)
या कवितेत प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या भाव तेथे देव या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |