
हे प्रभु, चलो आज खेलें होली ।
हे प्रभु, चलो आज खेलें होली ।। धृ. ।।

होली की अग्नि में ।
जला दो मेरे सब अहं और स्वभावदोष ।
हे प्रभु, चलो खेलें होली ।। १ ।।
आप हमें रंग दो भाव के नीले रंग में ।
सदा रहे हम आपके आंतरिक सान्निध्य में ।
हे प्रभु, चलो खेलें होली ।। २ ।।
आप हमें रंग दो चैतन्य के पीले रंग में ।
सदा रहे हम सकारात्मक विचारों के कवच में ।
हे प्रभु, चलो खेलें होली ।। ३ ।।
आप हमें रंग दो प्रीति के गुलाल में ।
सदा करें प्रेम हम साधकों तथा निर्जीव वस्तुओं पर ।
हे प्रभु, चलो खेलें होली ।। ४ ।।
आप हमें भिगों दें निर्मल गंगाजल से ।
सदा रहे मन गंगाजल जैसा शुद्ध और निर्मल ।
हे प्रभु, चलो खेलें होली ।। ५ ।।
हे प्रभु, संपूर्ण समर्पण भाव से ।
आई मैं शरण आपकी ।
हे प्रभु, चलो खेलें होली ।
चलो खेलें होली ।। ६ ।।
– सुश्री स्मिता ढगे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२७.३.२०२४)
येथे प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या ‘भाव तेथे देव’ या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |