जय जयकार करें श्रीजयंत की ।

सनातन संस्‍थेचे संस्‍थापक सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले यांच्‍या ८१ व्‍या जन्‍मोत्‍सवाच्‍या निमित्ताने…

जय जयकार करें श्रीजयंत की ।
जय जयकार करें श्रीजयंत की ॥

श्री. गुरुप्रसाद गौडा

त्रेतायुग में श्रीराम के रूप में ।
द्वापरयुग में श्रीकृष्‍ण के रूप में ।
कलियुग के बीच में
श्री जयंत के रूप में ।
साक्षात् श्रीमन्‍नारायण
श्रीविष्‍णु के अवतार हैं ॥ १ ॥

जय जयकार करें श्रीजयंत की ।
जय जयकार करें श्रीजयंत की ॥
आनंदी हो गए अयोध्‍यावासी श्रीराम के आगमन से ।
सब कुछ भूल गईं गोपियां कृष्‍ण की भक्‍ति में ।
धन्‍य हो गए साधक श्री जयंतके चरणों में ।
निवास स्‍थान है द्वारका श्रीकृष्‍ण का, अयोध्‍या है श्रीराम का ।
वैसे ही रामनाथी श्रीजयंत का ॥ २ ॥

जय जयकार करें श्रीजयंत की ।
जय जयकार करें श्रीजयंत की ॥
अंतर नहीं है ध्‍येय में ।
भेद नहीं है रूप में ।
त्रेतायुग में ध्‍येय रामराज्‍य का ।
कलियुग में ध्‍येय हिन्‍दू राष्‍ट्र का ।
इतना ही भेद रामकृष्‍ण जयंत का ॥ ३ ॥

जय जयकार करें श्रीजयंत की ।
जय जयकार करें श्रीजयंत की ॥
श्रीराम के बिना अयोध्‍या की प्रजा नहीं ।
श्रीकृष्‍ण के बिना गोप-गोपियां नहीं ।
वैसे ही श्रीजयंत के बिना साधक नहीं ॥ ४ ॥

जय जयकार करें श्रीजयंत की ।
जय जयकार करें श्रीजयंत की ॥
वानर सेना थी श्रीराम के पीछे ।
पांडव थे श्रीकृष्‍ण के पीछे ।
वैसे ही साधक हैं श्रीजयंत के पीछे ॥ ५ ॥

जय जयकार करें श्रीजयंत की ।
जय जयकार करें श्रीजयंत की ॥
कृतज्ञ थी वानर सेना श्रीराम के चरणों में ।
समर्पित थे पांडव श्रीकृष्‍ण के चरणों में ।
वैसे ही धन्‍य-धन्‍य हैं सभी साधक श्रीजयंत के चरणों में ॥ ६ ॥

जय जयकार करें श्रीजयंत की ।
जय जयकार करें श्रीजयंत की ॥
आपातकाल हो या संपतकाल ।
हो गुरुचरण ही अंतिम धाम ।
है यही सीख गुरु जयंत की ।
प्रतीक्षा है रामराज्‍य हिन्‍दू राष्‍ट्र की ।
यही लक्ष्य है अवतारी श्री गुरु जयंत का ॥ ७ ॥

जय जयकार करें श्रीजयंत की ।
जय जयकार करें श्रीजयंत की ॥
आज है जन्‍मोत्‍सव श्रीजयंत का ।
सभी साधकों का आनंदोत्‍सव समर्पित हैं ।
सभी साधक श्रीगुरुचरणों की धूल में ।
श्रीगुरुचरणों की धूल में ॥ ८ ॥

जय जयकार करें श्रीजयंत की ।
जय जयकार करें श्रीजयंत की ॥

– श्री. गुरुप्रसाद गौडा (आध्‍यात्मिक पातळी ६५ टक्‍के), कर्नाटक (२०.४.२०२१)

या लेखात प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या भाव तेथे देव या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक