प्रक्रिया (टीप १)….। मन को जानने का है उत्तम साधन ।।
इस माध्यम से स्वभावदोष अहं पर मात कर (टीप २)। स्वच्छ मन में होता है आनंद की मधुर तान का वादन ।। १ ।।
प्रक्रिया…। इस माध्यम से गुरुदेवजी दर्पण हमें दिखाते ।।
प्रत्येक दिवस मन को । और स्पष्ट हैं वे करते ।। २ ।।
प्रक्रिया….। इसने भान कराया मुझे ।।
ढूंढती थी जो कमियां मैं अन्यों में । मिली सभी मेरे ही मैले मन में मुझे ।। ३ ।।
इस सुंदर प्रक्रिया की । सुंदर माध्यम हैं सुप्रियाताई (टीप ३) ।।
जिनमें मुझे अनुभव हुई । मेरी आध्यात्मिक आई (टीप ४) ।। ४ ।।
मेरे इस मन को । बहुत सुंदरता से पाती हैं वे ।।
मन के प्रत्येक विचार को । उत्तमोत्तम दिशा देती हैं वे ।। ५ ।।
स्पष्टता से हर अनुचित विचार की । जड तक लेकर जाती हैं मन को ।।
व्याप्ति के माध्यम से प्रत्येक विचार को । भाव की जोड देना सिखाती हैं मन को ।। ६ ।।
इन्होंने यही सिखाया सदैव । योग्य कृति और विचार ही करना है हमें ।।
न माने मन तो प्रायश्चित । और दंड देकर मनाना है इसे ।। ७ ।।
धन्य हैं हम जिन्हें मिला । प्रक्रिया रूपी यह वरदान ।।
धन्य धन्य हैं हम गुरुदेवजी । जो आपने हमें कराया इसका भान ।। ८ ।।
कृतज्ञता ! कृतज्ञता !! कृतज्ञता !!!
टीप १ – स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन प्रक्रिया
टीप २ – विजय प्राप्त कर
टीप ३ – सौ. सुप्रिया माथूर
टीप ४ – मां
– कु. राशी खत्री, देहली सेवाकेंद्र, देहली. (जानेवारी २०१९)