श्रावण पूर्णिमा अर्थात इस वर्ष ११ अगस्त को रक्षाबंधन है । रक्षाबंधन त्योहार के दिन बहन अपने भाई की आरती कर प्रेम के प्रतीक के रूप में उसे राखी बांधती है । भाई अपनी बहन को भेंटवस्तु देकर उसे आशीर्वाद देता है । सहस्रों वर्षाें से चले आ रहे इस रक्षाबंधन त्योहार का इतिहास, शास्त्र, राखी तैयार करने की पद्धति और इस त्योहार का महत्त्व इस लेख में बताया गया है ।
१. रक्षाबंधन : इतिहास
अ. ‘पाताल के बलि राजा के हाथ पर राखी बांधकर, लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बनाया एवं नारायण को मुक्त करवाया । वह दिन था श्रावण पूर्णिमा ।’
आ. ‘बारह वर्ष इंद्र और दैत्यों में युद्ध चला । अपने १२ वर्ष अर्थात उनके १२ दिन । इंद्र थक गए थे और दैत्य भारी पड रहे थे । इंद्र इस युद्ध में स्वयं के प्राण बचाकर भाग जाने की तैयारी में थे । इंद्र की यह व्यथा सुनकर इंद्राणी गुरु की शरण में पहुंची । गुरु बृहस्पति ध्यान लगाकर इंद्राणी से बोले, ‘‘यदि तुम अपने पातिव्रत्य बल का उपयोग कर यह संकल्प करो कि मेरे पतिदेव सुरक्षित रहें और इंद्र की दाहिनी कलाई पर एक धागा बांधो, तो इंद्र युद्ध में विजयी होंगे ।’’ इंद्र विजयी हुए और इंद्राणी का संकल्प साकार हो गया ।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
अर्थ : ‘जो बारीक रक्षासूत्र महाशक्तिशाली असुरराज बलि को बांधा था, वही मैं आपको बांध रही हूं । आपकी रक्षा हो । यह धागा न टूटे और सदैव आपकी रक्षा हो ।’
इ. भविष्यपुराण में बताए अनुसार रक्षाबंधन मूलतः राजाओं के लिए था । राखी की एक नई पद्धति इतिहास काल से प्रारंभ हुई ।
२. भावनिक महत्त्व
रक्षाबंधन के दिन बहन भाई के हाथ पर राखी बांधती है । उसका उद्देश्य होता है, ‘भाई का उत्कर्ष हो और भाई बहन की रक्षा करे ।’ भाई को राखी बांधे, इससे अधिक महत्त्वपूर्ण है कोई युवती/स्त्री किसी युवक/पुरुष को राखी बांधे । इस कारण विशेषतः युवकों एवं पुरुषों के युवती अथवा स्त्री की ओर देखने के दृष्टिकोण में परिवर्तन होता है ।
प्रार्थना करना : बहन भाई के कल्याण हेतु एवं भाई बहन की रक्षा हेतु प्रार्थना करें । साथ ही वे ईश्वर से यह भी प्रार्थना करें कि ‘राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु हमसे प्रयास होने दीजिए ।’
(संदर्भ – सनातन का ग्रंथ ‘त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र’)