सावधान ! २०४७ में ‘दार-उल-इस्लाम’ !

मोहम्मद जलालुद्दीन और अथर परवेज

मूलरूप से पाकिस्तानी और वर्तमान में कैनडा के निवासी प्रसिद्ध पत्रकार तथा लेखक तारेक फतेह हो अथवा ‘राजनीतिक इस्लाम’ का अध्ययन करनेवाले अन्य विशेषज्ञ लोगों द्वारा बार-बार बोले जानेवाले ‘गजवा-ए-हिन्द’ ये हमारे सुनने में आते हैं । ‘गैरमुसलमानों का वंशविच्छेद कर संपूर्ण हिन्दुस्थान को हम इस्लाममय बना देंगे’, इस इस्लामी संकल्पना का यही सीधा अर्थ है ! इसका उल्लेख करने का कारण यह है कि बिहार में १४ जुलाई को मोहम्मद जलालुद्दीन और अथर परवेज, इन धर्मांधों द्वारा ‘वर्ष २०४७ में भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाएंगे’, यह लक्ष्य रखे जाने की बात सामने आई और केवल इतना ही नहीं, अपितु उनसे इस षड्यंत्र का लक्ष्य साध्य करने के लिए ८ पृष्ठों की क्रियान्वयन योजना भी पुलिस के हाथ लगी है । इसमें ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ ने (‘पी.एफ.आई.’ ने) ‘केवल १० प्रतिशत मुसलमान भी यदि इस योजना के साथ खडे रहे, तब भी हम भयग्रस्त बहुसंख्यक समाज को अपने अधीन कर (इस्लाम का) पुनर्वैभव प्राप्त कर सकेंगे’, ऐसा कहने की भी बात सामने आई । जलालुद्दीन बिहार पुलिस बल का पूर्व अधिकारी, तो परवेज प्रतिबंधित आतंकी संगठन ‘सिमी’ का सदस्य ! ये दोनों ‘पी.एफ.आई.’ और ‘एस.डी.पी.आई.’, इन आतंकी संगठनों के सदस्य भी हैं । ये दोनों ‘मार्शल आर्ट्स’ का प्रशिक्षण देने के नाम पर विभिन्न राज्यों के मुसलमानों को तलवारें और चाकू चलाने का प्रशिक्षण भी दे रहे थे । ‘हिन्दुओं के देश में उनके प्राणों के लिए संकट बना यह जिहाद अब कहां तक आ पहुंचा है’, यह बताने के लिए क्या यह उदाहरण पर्याप्त नहीं है अन्य समय पर बजरंग दल के द्वारा हिन्दू युवक-युवतियों को स्वरक्षा के लिए भी तलवारें आदि शस्त्रों का प्रशिक्षण दिए जाने पर उदरशूल से ग्रस्त आधुनिकतावादी अब किस बिल में छिपे बैठे हैं ? हिन्दुत्वनिष्ठों द्वारा ‘हम संवैधानिक पद्धति से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करेंगे’, यह घोषणा दिए जाने पर आक्रोश कर चिल्लानेवाले धर्मनिरपेक्षतावादी अब कहां हैं ? अथवा क्या उन्हें इस्लामी राष्ट्र चलेगा ? यह प्रवृत्ति तो पाखंडी धर्मनिरपेक्षता और हिन्दूविघातक दोहरी नीति का उदाहरण है !

हिमनग का सिरा !

उदयपुर के कन्हैयालाल की हत्या का अन्वेषण करनेवाले राष्ट्रीय अन्वेषण विभाग को चौंकानीवाली जानकारी मिली है तथा ये दोनों हत्यारे पाकिस्तान के आतंकी संगठन ‘दावत-ए-इस्लामी’ के १८ आतंकियों के साथ निरंतर संपर्क में होने की बात भी सामने आई थी । इन १८ लोगों के साथ भारत के २५ राज्यों के ३०० लोग भी संपर्क में हैं’, यह जानकारी भी गुप्तचर विभाग के हाथ लगी । इस माध्यम से नूपुर शर्मा का समर्थन करनेवालों पर कुदृष्टि रखी गई है तथा उनके भी सिर काटे जाएंगे, ऐसी योजना है । ‘दावत-ए-इस्लामी’ की ओर से इन सभी को ‘ऑनलाइन’ पद्धति से प्रशिक्षण देते समय सिर काटने से लेकर ‘उदयपुर स्टाइल’ में उसका वीडियो बनाना सिखाया गया है । इसलिए इन २५ राज्यों को सतर्कता की चेतावनी दी गई है । अन्य समय पर भारत में होनेवाली आतंकी गतिविधियों के माध्यम से संपूर्ण देश में असंख्य ‘स्लिपर सेल्स’ कार्यरत हैं तथा उनके द्वारा आतंकियों की सहायता करने की बात सामने आती रहती है । इससे आतंकियों को संरक्षण देनेवाले धर्मांध मुसलमानों की संख्या भी अल्प नहीं है, यही ध्यान में आता है । कुल मिलाकर देखा जाए, तो हिन्दुओं की ‘पुण्य’ और ‘पितृ’ भूमि अब वास्तव में ‘गजवा-ए-हिन्द’ की दिशा में अग्रसर है । ये सभी उदाहरण तो हिमनग का केवल एक सिरा हैं ।

क्या भारत का ‘लेबनान’ बनेगा ?

लेबनान एक समय पर मध्य-पूर्व का एकमात्र ईसाई गणतंत्र था । चारों ओर से इस्लामी राष्ट्रों से घिरा हुआ, ईसाई बहुसंख्यक और मध्य-पूर्व का ‘स्विट्जर्लेंड’ माना जानेवाला लेबनान आज एक मुसलमान राष्ट्र बन गया है । इस उदाहरण से भारतीय हिन्दुओं को सीखने योग्य बहुत कुछ है । १९५० के दशक में स्वर्णिम युग का अनुभव करनेवाले लेबनान का अचानक स्वरूप ही बदल गया । १९६०-७० के दशक में वहां घटित गृहयुद्ध के कारण यह ईसाई बहुल राष्ट्र मुसलमान अर्थात शरीयत के आधार पर चलनेवाला राष्ट्र बना । अरब मूल्यों का समर्थन करनेवाले फिलिस्तीनी समुदाय और सीरिया से आए हुए लाखों शरणार्थियों के कारण वहां के ईसाई लोगों का जीवन त्रस्त हो गया । वर्ष १९२० में लगभग ७५ प्रतिशत संख्यावाले ईसाई गृहयुद्ध के समय न्यून हो गए और उस समय मुसलमानों ने वहां अपना वर्चस्व स्थापित किया । लेबनीज ईसाई समुदाय में से कुछ लोग भले ही आज स्वदेश लौटे हों; परंतु आज लेबनान का चेहरा ही परिवर्तित हो चुका है ।

भारत में इससे अलग क्या परिस्थिति है ? आज भारत करोडों बांग्लादेशी मुसलमानों को सहन कर रहा है । उनमें से अनेक लोगों को मतदान के भी अधिकार प्राप्त हो चुके हैं । भारत में आतंकी गतिविधियां चलाने में उनका बडा योगदान है । विगत कुछ वर्षाें का काल देखा जाए, तो भविष्य के उदर में भारत अर्थात हिन्दुओं के लिए क्या परोसकर रखा गया है, इसकी केवल कल्पना की जा सकती है । हिन्दुओं के हित में कुछ भी किया जाए, तो संपूर्ण देश में हिंसा की घटनाएं होती हैं । नागरिकता संशोधन कानून उसका ताजा उदाहरण है । तो समान नागरिकता कानून आने पर क्या होगा, सपने में भी इसका अनुभव करना कल्पना से परे है । नूपुर शर्मा प्रकरण से हुए दंगे और उसके उपरांत हुई हत्याओं के कारण संपूर्ण देश कांप उठा है । ऐसे में ही लोकतंत्र के स्तंभों द्वारा आक्रमणकारियों को भी संरक्षण दिए जाने से इस देश का हिन्दू उसके ही देश में अनाथ हो गया है । उसमें वर्ष १९४७ में भारत को इस्लाममय करनेवाले कृत्य होते समय भी भारत में उसके विरुद्ध कुछ नहीं किया गया, तो ‘दार-उल-हरब’ (जहां इस्लाम का राज्य नहीं है, वह) हिन्दुस्थान को ‘दार-उल-इस्लाम’ (इस्लाम के राज्यवाली भूमि) होने में समय नहीं लगेगा ! इसलिए हिन्दुओं जाग जाइए, अन्यथा ‘दूसरा लेबनान’ देखने के लिए तैयार रहिए !