मंदिर व्यवस्थापन पाठ्यक्रम सिखाने की आवश्यकता है ! – अशोक जैन, न्यासी, पद्मालय देवस्थान, जळगांव

हिन्दू जनजागृति समिति एवं श्री गणपति मंदिर देवस्थान न्यास (पद्मालय, जळगांव) द्वारा मंदिरों एवं धर्मपरंपराओं की रक्षा हेतु जळगांव में २ दिवसीय ऐतिहासिक ‘महाराष्ट्र मंदिर-न्यास परिषद’ का आयोजन किया गया ।

हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए तन, मन, धन, बुद्धि और कौशल का योगदान करना, यही काल के अनुसार गुरुदक्षिणा !

आज प्रत्येक व्यक्ति धर्माचरण करने लगा, उपासना करने लगा, तो ही वह धर्मनिष्ठ होगा । ऐसे धर्मनिष्ठ व्यक्तियों के समूह से धर्मनिष्ठ समाज की निर्मिति हो सकती है । धर्मनिष्ठ होने के लिए धर्म के अनुसार बताई उपासना अर्थात साधना करना अनिवार्य है ।

विकास के नाम पर तीर्थस्थलों को पर्यटनस्थल मत बनाइए !

प्राचीन काल में अंकोर वाट, हम्पी, आदि भव्य मंदिरों का निर्माण करनेवाले राजा-महाराजाओं ने उनका उत्तम व्यवस्थापन किया था । इन मंदिरों के माध्यम से गोशालाओं, अन्नछत्रों, धर्मशालाओं, शिक्षाकेंद्रों आदि चलाकर समाज की अमूल्य सहायता की जाती थी ।