हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित ‘…आखिर ‘वन्दे मातरम्’ का विरोध कब तक ?’ विषय पर ‘ऑनलाइन’ विशेष संवाद !
मुंबई – वर्ष १९०९ में मुस्लिम लीग ने प्रथम ‘वन्दे मातरम्’ का विरोध किया और ‘वन्दे मातरम्’ का विरोध करनेवाले १९४७ में भारत का विभाजन कर दूसरे देश अर्थात पाकिस्तान चले गए । ‘वन्दे मातरम्’ भारत की सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे देश के प्रत्येक नागरिक को मान्य करना चाहिए । अन्यथा हमें देश का नागरिक कहलवाने का कोई अधिकार नहीं है । ‘वन्दे मातरम्’ गीत में भारतमाता का सम्मान है । इसका अर्थ हुआ विरोध करनेवालों को भारतमाता का सम्मान नहीं करना है । अत: ‘वन्दे मातरम्’ का विरोध राष्ट्रविरोध है । ‘वन्दे मातरम्’ के सम्मान के लिए देश में कानून बनाना चाहिए । ऐसी मांग सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता उमेश शर्मा ने की । हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा ‘…आखिर ‘वन्दे मातरम्’ का विरोध कब तक ?’ विषय पर आयोजित ‘ऑनलाइन’ विशेष संवाद में वे बोल रहे थे ।
राष्ट्रगीत और राष्ट्र का सम्मान न करनेवालों की नागरिकता निरस्त करनेवाला कानून बनाया जाए ! – अधिवक्ता राकेश दत्त मिश्रा, महासचिव, भारतीय जनक्रांति दल
‘वन्दे मातरम्’ ऐसा गीत है, जिसके कारण देश के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न होती है । जिन्हें देश के प्रति आस्था नहीं है, वे ही इसका विरोध कर सकते हैं । जो राष्ट्रगीत और राष्ट्र का सम्मान नहीं करते, उनकी नागरिकता तत्काल निरस्त कर उन पर कार्यवाही करने का कानून इस देश में लागू करना चाहिए । उसी प्रकार `वन्दे मातरम्’ का विरोध करनेवाले विधायक, सांसद अथवा उनका जो भी राजनीतिक पद हो, वह भी निरस्त कर देना चाहिए ।’
‘वन्दे मातरम्’ का विरोध करनेवाले अंग्रेजों की भाषा बोल रहे हैं ! – अभय वर्तक, धर्मप्रचारक, सनातन संस्था
‘वन्दे मातरम्’ पर उस समय अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगाया था, तब `वन्दे मातरम्’ कहते हुए देश के अनेक क्रांतिकारियों ने देश के लिए बलिदान दिया, फांसी पर चढे । ‘वन्दे मातरम्’ का विरोध करनेवाले अंग्रेजों की भाषा बोल रहे हैं । ‘वन्दे मातरम्’ को संविधान में राष्ट्रगीत का दर्जा देकर उसका ऐसा स्थान निर्माण करना चाहिए कि उसका विरोध करने का किसी का साहस नहीं हो ।