धर्मांध दंगाइयों की याचिका एवं देहली उच्च न्यायालय की भूमिका !
पहले दंगे में सम्मिलित होना, तत्पश्चात मूलभूत अधिकार का हनन हो रहा है कहना, यह उचित नहीं । ऐसा कहते हुए न्यायालय ने धर्मांध की देहली पुलिस के विरुद्ध की याचिका अस्वीकार की ।
पहले दंगे में सम्मिलित होना, तत्पश्चात मूलभूत अधिकार का हनन हो रहा है कहना, यह उचित नहीं । ऐसा कहते हुए न्यायालय ने धर्मांध की देहली पुलिस के विरुद्ध की याचिका अस्वीकार की ।
‘वन्दे मातरम्’ भारत की सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे देश के प्रत्येक नागरिक को मान्य करना चाहिए । अन्यथा हमें देश का नागरिक कहलवाने का कोई अधिकार नहीं है । ‘वन्दे मातरम्’ गीत में भारतमाता का सम्मान है ।
आज प्रत्येक व्यक्ति धर्माचरण करने लगा, उपासना करने लगा, तो ही वह धर्मनिष्ठ होगा । ऐसे धर्मनिष्ठ व्यक्तियों के समूह से धर्मनिष्ठ समाज की निर्मिति हो सकती है । धर्मनिष्ठ होने के लिए धर्म के अनुसार बताई उपासना अर्थात साधना करना अनिवार्य है ।
सनातन धर्मग्रंथों में राजधर्म बताया गया है । वहां धर्म की सीमा के बाहर राजनीति नहीं है । धर्म की सीमा से बाहर यदि राजनीति हो, तो उसका नाम ‘उन्माद’ है, जब तक भारत में धर्माधारित राजपद्धति अपनाई नहीं जाएगी, तबतक गायें, गंगा, सती, वेद, सत्यवादी, दानशूर आदि का संपूर्ण संरक्षण नहीं हो सकता ।
बहन के मन पर साधना का महत्त्व अंकित कर उसे उसके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लानेवाले ‘सनातन प्रभात’ की पाठक बनाना और उसे उसमें दी जानेवाली अमूल्य जानकारी पढने के लिए प्रेरित करना, उसके लिए इससे अधिक श्रेष्ठ उपहार अन्य क्या हो सकता है ?
बहन भाई के कल्याण हेतु एवं भाई बहन की रक्षा हेतु प्रार्थना करें । साथ ही वे ईश्वर से यह भी प्रार्थना करें कि ‘राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु हमसे प्रयास होने दीजिए ।’
जीवन के किसी भी कठिन प्रसंग में मानसिक संतुलन खोए बिना, प्रसंग का धैर्यपूर्वक सामना कर पाने तथा सदैव आदर्श कृति होने हेतु व्यक्ति का मनोबल उत्तम एवं व्यक्तित्व आदर्श होना आवश्यक है । स्वभावदोष व्यक्ति का मन दुर्बल करते हैं, जबकि गुण आदर्श व्यक्तित्व विकसित करने में सहायक होते हैं ।
स्वभावदोषों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक दुष्परिणामों को दूर कर, सफल तथा सुखी जीवन जीने हेतु, स्वभावदोषों को दूर कर चित्त पर गुणों का संस्कार निर्माण करने की प्रक्रिया को ‘स्वभावदोष (षड्रिपु)-निर्मूलन प्रक्रिया’ कहते हैं ।
स्वभावदोषों पर उपचारी सूचना, स्वसूचना बनाते समय ध्यान रखने योग्य सूत्र, स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया अशिक्षित एवं अल्पशिक्षित व्यक्ति भी कर पाएं, इस हेतु उपयुक्त सूचना आदि के विषय में इस ग्रंथ में पढें ।
नामजप के माध्यम से श्री दत्तगुरु को पुकारने के उपरांत सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ने साधकों को श्री दत्तगुरु के रूप में दर्शन देकर कृतकृत्य किया । साधकों ने गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में प्राप्त गुरुदर्शन और उनके पाद्यपूजन को अपने मनमंदिर पर अंकित कर लिया !