साधक में विद्यमान भाव कैसे कार्य करता है ?
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा बताए अमृत वचन
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा बताए अमृत वचन
‘प्रत्येक युग में ‘धर्मसंस्थापना’ करना’ श्रीविष्णु का कार्य है । सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ आठवलेजी कलियुग के श्रीविष्णु के अवतार हैं ! उचित समय एवं उचित स्थिति आते ही श्रीविष्णु के अवतार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी पृथ्वी पर ‘धर्मसंस्थापना’ करेंगे’, इसमें कोई संदेह नहीं है ।’ – सप्तर्षि
सभी ज्योतिषी एकत्रित हुए, तो हमें एक-दूसरे से सीखने को मिलेगा तथा उससे संगठित भाव उत्पन्न होगा । ‘भगवान ने मनुष्य को ज्योतिषशास्त्र क्यों प्रदान किया होगा ?’, यह प्रश्न पूछकर हमें मूल विषय तक पहुंचना चाहिए’’
इस अवसर पर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने ‘सर्वत्र के साधकों को हो रहे विभिन्न कष्ट दूर हों तथा हिन्दू राष्ट्र की शीघ्रातिशीघ्र स्थापना हो’, इसके लिए भावपूर्ण प्रार्थना की ।
रामनाथी के सनातन संस्था के आश्रम में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी तथा ब्रह्मसरोवर, कुरुक्षेत्र में स्थित श्री कात्यायनी देवी के मंदिर में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी की वंदनीय उपस्थिति में ‘चामुंडा होम’ संपन्न हुआ ।
गुरु को व्यापक धर्मकार्य प्रिय है । वह लगन से करना सच्ची ‘गुरुभक्ति’ है । यह कार्य करते समय कोई भी संदेह न रखना सच्ची गुरुनिष्ठा है एवं ‘यह धर्मकार्य परिपूर्ण करने से मेरी आत्मोन्नति निश्चित ही होगी’, यही ‘गुरु के प्रति’ श्रद्धा है ! इसीलिए गुरुपूर्णिमा से श्री गुरु के प्रति निष्ठा, श्रद्धा एवं भक्ति बढाएं ।
इस घटना के माध्यम से मानो साक्षात भगवान ही यह बता रहे हैं, ‘सनातन संस्था के साधकों को प्राप्त मोक्षगुरु सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी प्रत्यक्ष श्रीमन्नारायणस्वरूप ही हैं । वे ही श्रीविष्णु के अवतार हैं ।
‘शब्दों का अस्तित्व जहां समाप्त होता है, वही ‘कृतज्ञता है !’ हम ‘भाव’ को शब्दों में बांध सकते हैं । उसे व्यक्त भी किया जा सकता है; परंतु कृतज्ञता शब्दों के परे है, इसलिए वह भाव से भी उच्च है
फ्रान्स की संसद में भव्य समारोह !
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी और श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने स्वीकार किया पुरस्कार
महर्षिजी का परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी संकलित सनातन के ग्रंथों को ‘ॐकार वेद’ संबोधित करना