प.पू. भक्तराज महाराजजी एवं परात्पर गुरुदेवजी के चित्र बनाते समय साधक को हुई अनुभूतियां
प.पू. भक्तराज महाराजजी एवं परात्पर गुरुदेवजी के चित्र बनाते समय श्री. प्रसाद हळदणकर को हुई अनुभूतियां यहां दे रहे हैं
प.पू. भक्तराज महाराजजी एवं परात्पर गुरुदेवजी के चित्र बनाते समय श्री. प्रसाद हळदणकर को हुई अनुभूतियां यहां दे रहे हैं
यहां दिए हुए लेख में देहली के सनातन के सेवाकेंद्र में रहकर साधना करनेवाले कुछ साधकों को वर्ष २०२२ में दिवाली की अवधि में सेवाकेंद्र में दीप लगाने पर हुई अनुभूतियां प्रस्तुत हैं ।
साधकों को श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी में विद्यमान दिव्यता की हुई प्रतीति !
‘एक बार मैं एक सूत्र के संदर्भ में बात करने के लिए श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के पास गई थी । हमारी बात समाप्त होने पर उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘अब तुम चिंता न करो, अच्छी सेवा करो; परमेश्वर की आरती !’’ उस समय मुझे आश्चर्य होकर आनंद हुआ ।
सप्तर्षियों द्वारा जीवनाडी-पट्टिका में बताए अनुसार श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी १४.११.२०२२ को आंध्र प्रदेश में स्थित पिठापुरम् गई थीं । उस समय पिठापुरम् में हुई दैवीय लीला आगे दी है ।
‘देवद आश्रम में प.पू. भक्तराज महाराज (प.पू. बाबा) द्वारा उपयोग में लाया ‘रथ’ (गाडी) है । प.पू. बाबा का रथ, देवद आश्रम के साधकों के लिए चैतन्य का वर्षाव ही है । प.पू. बाबा भले ही अब स्थूल से नहीं हैं, तब भी ‘वे रथ के माध्यम से स्थूल से भी हैं’, ऐसी अनुभूति अनेक साधकों को हो रही है ।
मुझे सदैव ही अपना नाम ‘परमेश्वर की आरती’, ऐसा लिखने की आदत है । मुझे मन से भी ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी परमेश्वर हैं तथा मैं उस परमेश्वर की हूं’, ऐसा ही लगता रहता है
परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने साधकों को ‘गुरुकृपायोग’ का साधनामार्ग बताकर ‘ईश्वरप्राप्ति’ का ध्येय दिया, जिससे साधक उनमें नहीं अटकते
‘तुलसी के पौधे अनेक स्थानों पर पाए जाते हैं । इन पौधों की ओर देखने के पश्चात हम प्रसन्न होते है; किंतु तुलसी के पौधे से निरंतर प्राणवायु तथा विष्णुतत्त्वमय चैतन्य की लहरें प्रक्षेपित होती हैं । इस प्रकार रामनाथी सनातन आश्रम में रहनेवाले संत पू. भगवंत कुमार मेनराय के निवास कक्ष में एक गमले में यह पौधा अच्छी तरह से फला फूला दिखाई दिया ।
हनुमानजी ने व्यष्टि साधना के अर्थात रामभक्ति के बल पर रामराज्य की स्थापना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । यह ध्यान में रखकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु प्रयास करनेवालों को व्यष्टि साधना भी मन लगाकर करनी चाहिए ।’