सनातन की ग्रंथमाला : अलंकारशास्त्र
बिन्दी की अपेक्षा कुमकुम लगाना क्यों योग्य है, नथ सदैव मोती की ही क्यों होती है, कान में एक से अधिक कर्णाभूषण क्यों न पहनें इत्यादि की सूक्ष्म स्तरीय अध्यात्मशास्त्रीय कारणमीमांसा स्पष्ट करनेवाला ग्रन्थ !
बिन्दी की अपेक्षा कुमकुम लगाना क्यों योग्य है, नथ सदैव मोती की ही क्यों होती है, कान में एक से अधिक कर्णाभूषण क्यों न पहनें इत्यादि की सूक्ष्म स्तरीय अध्यात्मशास्त्रीय कारणमीमांसा स्पष्ट करनेवाला ग्रन्थ !
श्राद्धकर्म विधि करने से होनेवाले लाभ जानने हेतु पढें सनातन का ग्रंथ !
‘आध्यात्मिक कष्ट होना’ भले ही हमारे हाथ में न हो, तब भी ‘आध्यात्मिक उपचारों से कष्टों को नियंत्रण में रखना तथा धीरे-धीरे उन्हें मिटाना’ हमारे हाथ में होता है । ‘आध्यात्मिक उपचारों से हम कष्टों पर निश्चित ही विजय प्राप्त कर सकते हैं’, स्वयं में यह विश्वास उत्पन्न करना पडता है । प्रस्तुत लेखमाला में दिए गए अधिकतर दृष्टिकोण सभी के लिए उपयुक्त हैं ।
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी ज्ञान के मेरु पर्वत एवं गुणों के महासागर हैं ! उनका सहज आचरण भी साधना को विविधांगी दृष्टिकोण प्रदान करता है और उससे यह समझ में आता है कि ‘उचित एवं परिपूर्ण कृति कैसे करें ?’, वे सूक्ष्म आयाम से भी साधकों को सिखाते हैं ।
परमेश्वर एवं ईश्वर की महिमा बताते हुए इस ग्रन्थ में उनकी विविध गुण-विशेषताएं, कार्य, मानव से उनका सम्बन्ध आदि के विषय में विवेचन किया गया है । उनके सन्दर्भ में साधकों को हुई अनुभूतियां पढकर उनके प्रति श्रद्धा दृढ होने में सहायता मिलेगी ।
प्रस्तुत ग्रंथ में हिन्दू राष्ट्र की मूलभूत संकल्पना, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा, हिन्दू-संगठन हेतु उपक्रम, धर्मरक्षा हेतु आवश्यक मार्गदर्शन एवं साधना के संदर्भ में दृष्टिकोण दिए हैं ।
प्रस्तुत खंड में परात्पर गुरु डॉक्टरजी की अभ्यासवर्गाें में सिखाने की अलौकिक पद्धति, अभ्यासवर्गाें में आनेवाले जिज्ञासुओं का सत्सेवा हेतु प्रेरित होना इत्यादि के विषय में साधकों द्वारा कृतज्ञभाव से लिखकर दिए अनेक सूत्र समाविष्ट हैं ।
शीघ्र ईश्वरप्राप्ति हेतु ‘गुरुकृपायोग’ साधनामार्ग की निर्मिति; साधना, राष्ट्र-धर्म आदि के विषय में ग्रन्थसम्पदा; आध्यात्मिक शोध; हिन्दू-संगठन; महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय इत्यादि विविधांगी कार्याें की संक्षिप्त जानकारी देनेवाला ग्रन्थ !
भाव का अर्थ एवं विशेषताएं कौनसी हैं ?, शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति के लिए लगन तथा भाव में क्यों आवश्यक है ? इस विषय मे और जानने के लिए अवश्य पढिए ग्रंथ ‘भाव के प्रकार एवं जागृति’
‘गुरुकृपायोग’ साधनामार्ग के जनक, हिन्दू राष्ट्र के विषय में आध्यात्मिक मार्गदर्शन करनेवाले, सूक्ष्म जगत के विषय में शोधकर्ता आदि विशेषताओं से विभूषित परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी की अलौकिक जीवनगाथा का परिचय करवा लें !