राष्ट्रपति विधवा और आदिवासी होने से उन्हें संसद भवन के उद्घाटन में न बुलाना, यह सनातन धर्म है क्या ? 

प्रत्येक बात को सनातन धर्म से जोडने का प्रयास करनेवाले उदयनिधि को सनातन धर्म द्वेष की चिंता हुई है, ऐसा ही इससे दिखाई देता है !

धर्म, धर्मनिरपेक्षता एवं संविधान !

भारत स्वयंभू हिन्दू राष्ट्र है ही; परंतु संविधान द्वारा यह घोषित होना आवश्यक है !

वेदरक्षण की परंपरा के विस्तार की आवश्यकता ! – प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत

आने वाला समय भारत और सनातन धर्म का है । वेद ज्ञान के भंडार हैं । वेदों में सभी कुछ है । नियमित होने वाले आक्रमणों के कारण सभी ओर विशेषत: उत्तर भारत में वैदिक ज्ञान की बडी हानि हुई । अग्निहोत्र के अनुयायियों ने युगों- युगों से इस ज्ञान की रक्षा की है ।

हिन्दुओ, प्रत्येक क्षेत्र में अपनी क्षमतानुसार धर्मसंस्थापना का कार्य गुरुसेवा के रूप में करें !

आधुनिक युग में धर्मसंस्थापना का यही कार्य गुरुतत्त्व को अधिक प्रिय है । धर्मसंस्थापना केवल धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना नहीं, धर्मग्लानि से ग्रस्त राष्ट्र और समाज के प्रत्येक घटक को धर्मयुक्त बनाना भी है ।

मंदिरों की भूमि की नीलामी करने का अधिकार जिलाधिकारियों को नहीं, अपितु पुजारियों को देंगे !

यदि मध्यप्रदेश सरकार ऐसा निर्णय ले सकती है, तो देश के अन्य राज्य सरकारें क्यों नहीं ले सकतीं ? मध्य प्रदेश सरकार को इससे भी आगे बढकर मंदिरों का सरकारीकरण रद्द कर सभी मंदिर भक्तों के नियंत्रण में देने चाहिए !

अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना विद्यापीठ ने सिख छात्रों को कृपाण (छोटा चाकू) ले जाने की अनुमति दी !

सिखों के १०वें गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों के लिए ५ वस्तुएं अनिवार्य की थीं ।  इसमें केश, कडा, कृपाण, कचेरा (अंतःवस्त्र) और कंघा होता है ।

राजस्थान में २५० दलित परिवारों ने हिन्दू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया !

राजस्थान में तृणमूल कांग्रेस की सरकार रहते हुए भी इस प्रकार की घटना होने पर संबंधित व्यक्तियों पर कोई कार्यवाही नहीं होती, कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे इसका संज्ञान लेंगे क्या ?

संविधान में स्थित हिन्दू विरोधी अनुच्छेद २८ और ३० रद्द कीजिए !

‘अनुच्छेद ३०’ के अनुसार मुसलमान और ईसाई शिक्षासंस्थानों को सरकारी सहायता लेकर धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार होना; परंतु हिन्दू धर्मियों पर ‘अनुच्छेद २८’ के अनुसार धार्मिक शिक्षा देने पर प्रतिबंध होना

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘अनिष्ट से संसार की रक्षा करनेवाले, तथा मानव की ऐहिक और पारलौकिक उन्नति सहित मोक्ष प्रदान करनेवाला तत्त्व है धर्म ! अधिकांश विदेशी भाषाओं में ‘धर्म’ शब्द का समानार्थी शब्द भी नहीं ! इस कारण उनके लिए धर्माचरण करना कठिन होता है ।’

हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए तन, मन, धन, बुद्धि और कौशल का योगदान करना, यही काल के अनुसार गुरुदक्षिणा !

आज प्रत्येक व्यक्ति धर्माचरण करने लगा, उपासना करने लगा, तो ही वह धर्मनिष्ठ होगा । ऐसे धर्मनिष्ठ व्यक्तियों के समूह से धर्मनिष्ठ समाज की निर्मिति हो सकती है । धर्मनिष्ठ होने के लिए धर्म के अनुसार बताई उपासना अर्थात साधना करना अनिवार्य है ।