आचारों का पालन करना ही अध्यात्म की नींव है ।

प्राचीन काल में तुलसी जी को जल चढाकर वंदन किया जाता था; परन्तु आज अनेक लोगों के घर तुलसीवृन्दावन भी नहीं होता । प्राचीन काल में सायंकाल दीपक जलाकर ईश्वर के समक्ष स्तोत्र पठन किया जाता था; परन्तु आज सायंकाल बच्चे दूरदर्शन पर कार्यक्रम देखने में मग्न रहते हैं ।

शुभसूचक कृत्य करना अथवा शुभ वस्तुओं की ओर देखना

‘बडों का अभिवादन करना, दर्पण या घी में अपना प्रतिबिम्ब देखना, केशभूषा करना, अलंकार धारण करना, नेत्रों में अंजन या काजल लगाना आदि कृत्य शुभसूचक होते हैं ।’

फेटे का महत्त्व और लाभ

‘उपरने से अथवा धूतवस्त्र से सिर को गोलाकार पद्धति से लपेटना, यह सबसे सरल, सहज एवं सात्त्विक उपचार है । इस लपेटे हुए भागके मध्यमें निर्मित रिक्ति में ब्रह्माण्ड के सात्त्विक स्पन्दन घनीभूत होते हैं ।

महाशिवरात्रि विशेष

शिव शब्द ‘वश्’ शब्द के व्यतिक्रम से अर्थात अक्षरों के क्रम परिवर्तित करने से बना है । ‘वश्’ अर्थात प्रकाशित होना, अर्थात शिव वह है जो प्रकाशित है । शिव स्वयंसिद्ध एवं स्वयंप्रकाशी हैं । वे स्वयं प्रकाशित रहकर संपूर्ण विश्व को भी प्रकाशित करते हैं ।

माघ मेला : गंगास्नान धर्माशास्त्रानुसार करें !

वर्ष २०२४ में माघ मेला १५ जनवरी से आरंभ हो गया है । प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के साथ इस मेले का आरंभ हो जाता है, जो महाशिवरात्रि के दिन स्नान करने के साथ समाप्त होता है ।

छठ पूजा (१९ नवंबर)

पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे सबसे बडा त्योहार मानते हैं । इसमें गंगा स्नान का महत्त्व सबसे अधिक है । यह व्रत स्त्री एवं पुरुष दोनों करते हैं । यह चार दिवसीय त्योहार है

तुलसी विवाह

कार्तिक शुक्ल द्वादशी पर तुलसी विवाह उपरान्त चातुर्मास में रखे गए सर्व व्रतों का उद्यापन करते हैं । जो पदार्थ वर्जित किए हों, वह ब्राह्मण को दान कर, फिर स्वयं सेवन करें ।

देवदीपावली

इस दिन अपने कुलदेवता तथा इष्टदेवतासहित, स्थान-देवता, वास्तुदेवता, ग्रामदेवता और गांव के अन्य मुख्य उपदेवता, महापुरुष, वेतोबा इत्यादि निम्नस्तरीय देवताओं की पूजा कर उनकी रुचि का प्रसाद पहुंचाने का कर्तव्य पूर्ण किया जाता है ।

करवा चौथ

विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घ आयु एवं स्वास्थ्य की मंगलकामना कर भगवान रजनीनाथ को (चंद्रमा) अर्घ्य अर्पित कर व्रत का समापन करती हैं ।

कंदील का आकार सात्त्विक क्यों होना चाहिए ?

लंबवृत्त आकार का कंदील निराकार होने के कारण तमोगुणी शक्तियों के लिए इस प्रकार के कंदील से तमोगुण का प्रक्षेपण करना संभव नहीं होता ।