गुरुपूर्णिमा निमित्त सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का संदेश
‘गुरुपूर्णिमा देहधारी गुरु अथवा गुरुतत्त्व के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है । हिन्दुओं की धर्मपरंपरा में गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुदर्शन, गुरु दक्षिणा, गुरुसेवा, गुरुकार्य करने का संकल्प करना आदि का विशेष महत्त्व होता है । ‘समाज में धर्म और साधना का प्रचार करना एवं धर्मग्लानि की अवस्था में धर्मसंस्थापना का कार्य करना’ भी गुरुतत्त्व का कार्य है । धर्मग्लानि आने पर आचार्य चाणक्य, श्री विद्यारण्यस्वामी, समर्थ रामदासस्वामी जैसे अनेक महापुरुषों के हाथों कार्य होना, आधुनिक युग के उदाहरण हैं । वर्तमान में भी समाज और राष्ट्र में सर्वत्र अधर्म बढ रहा है । वर्तमान ‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्ट्र में समाज को धर्म न सिखाए जाने के कारण, लोग धर्मविमुख होते जा रहे हैं । दूध-विक्रेताओं का मिलावटी दूध बेचना, डॉक्टरों का रोगियों को लूटना तथा न्यायधीशों का ‘सरकारी’ कर्मचारियों के समान भ्रष्टाचार करना जैसी घटनाएं प्रतिदिन हो रही हैं । इस अधर्म के विरुद्ध समाज को जगाना, अधर्म रोकने के लिए प्रत्यक्ष कार्य करना, पश्चात व्यवस्था को पुन: धर्म के अनुकूल बनाने हेतु प्रयत्न करना आदि आवश्यक कार्य हैं । आधुनिक युग में धर्मसंस्थापना का यही कार्य गुरुतत्त्व को अधिक प्रिय है । धर्मसंस्थापना केवल धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना नहीं, धर्मग्लानि से ग्रस्त राष्ट्र और समाज के प्रत्येक घटक को धर्मयुक्त बनाना भी है । इसलिए हिन्दुओ, इस गुरुपूर्णिमा से प्रत्येक क्षेत्र में गुरुसेवा स्वरूप धर्मसंस्थापना होने हेतु क्षमतानुसार कार्य करने का संकल्प करो !’
– (सच्चिदानंद परब्रह्म) डॉ. आठवले, हिन्दू जनजागृति समिति के प्रेरणास्रोत