कुछ दिन पूर्व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में बिना अनुमति के चल रहे मदरसों के सर्वेक्षण का आदेश दिया और ‘एम.आइ.एम.’ के प्रमुख तथा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने उस पर तुरंत आलोचना की झडी लगा दी । ओवैसी ने कहा, ‘सभी मदरसे संविधान की अनुच्छेद ३० के अंतर्गत होते हुए भी उत्तर प्रदेश सरकार उनका सर्वेक्षण कर रही है । यह सर्वेक्षण नहीं, अपितु एक छोटा सा ‘एन.आर.सी.’ ही (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर ही) है । अनुच्छेद ३० के अंतर्गत हमें प्राप्त अधिकारों में सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती । सरकार को इसके द्वारा केवल मुसलमानों को कष्ट पहुंचाना है ।’ उसके उपरांत देश में संविधान में स्थित अनुच्छेद ३० के संबंध में चर्चा आरंभ हुई । इससे ‘अनुच्छेद ३०’ निश्चितरूप से क्या है ?, यह प्रश्न उठा । इस लेख में इस विषय का विश्लेषण किया गया है ।
१. अनुच्छेद ३० के माध्यम से आधिकारिकरूप से हिन्दू संस्कृति को मिटाया जाना
भारत को ब्रिटिशों से स्वतंत्रता मिली । उसके उपरांत देश गणराज्य भी बन गया; परंतु हिन्दुओं को गुलाम बनाकर ! तत्कालीन कांग्रेस का नेतृत्व आरंभ से ही हिन्दूविरोधी था और सत्ता प्राप्त होने के उपरांत भी उन्होंने वही नीति अपनाई रखी । संविधान की अनुच्छेद ३० के माध्यम से उन्होंने आधिकारिकरूप से ही हिन्दू संस्कृति मिटाने का काम किया । उन्होंने संपूर्ण शिक्षाव्यवस्था मुसलमानों और ईसाईयों सहित अल्पसंख्यकों के हाथ में सौंप दी । विश्व में १८० से अधिक देश हैं; परंतु उनमें से किसी भी देश में इतने संकटकारी और बहुसंख्यकविरोधी कानून नहीं है, कांग्रेस ने देश में ऐसे कानून और हिन्दूविघातक धाराएं लागू कर दीं । अनुच्छेद ३० के अंतर्गत प्राप्त धार्मिक शिक्षा के कारण मुसलमान आज भी मुसलमान और ईसाई तो ईसाई हैं ही; परंतु यह शिक्षा लेकर अनेक हिन्दू ही हिन्दूद्वेषी बन गए ।
२. ‘अनुच्छेद ३०’ के अनुसार मुसलमान और ईसाई शिक्षासंस्थानों को सरकारी सहायता लेकर धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार होना; परंतु हिन्दू धर्मियों पर ‘अनुच्छेद २८’ के अनुसार धार्मिक शिक्षा देने पर प्रतिबंध होना
हिन्दूविरोधी व्यापक षड्यंत्र के भाग ‘अनुच्छेद ३०’ ने हिन्दू संस्कृति का हनन किया । ‘अनुच्छेद ३०’ के अनुसार सरकार को मदरसों पर व्यय (खर्च) करने का अधिकार प्रदान किया; परंतु गुरुकुल को एक पैसा भी देने से रोका; इसी कारण देश के अधिकांश विख्यात शिक्षासंस्थान मुसलमान और ईसाई चलाते हुए दिखाई देते हैं । उन विद्यालयों में कुरआन अथवा बाइबल सिखाई जाती है; परंतु वेद अथवा श्रीमद्भगवद्गीता नहीं ! विशेष बात यह कि प्रत्येक राज्य में उसका अपना मदरसा बोर्ड (विभाग) होता है और उसके लिए धन का प्रावधान भी होता है । मदरसों के कारण मुसलमान अधिकाधिक मुसलमान बनता जाता है, मूलतत्त्ववादी विचारों से जुडा हुआ रहता है; परंतु किसी भी राज्य में गुरुकुल शिक्षा बोर्ड नहीं होता । देश की कोई भी राज्य सरकार गुरुकुल शिक्षा के लिए प्रावधान नहीं करती, जिससे हिन्दू बच्चे अपने हिन्दू धर्म के विषय में जान सकें ! ऐसे गुरुकुलों को किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलती । उसका मूल संविधान में निहित ‘अनुच्छेद २८’ और ‘३०’ में दिखाई देता है; क्योंकि ‘अनुच्छेद २८’ के अनुसार किसी भी सरकारी अथवा सरकारी सहायताप्राप्त विद्यालय में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती । इसके अनुसार देश के लगभग ९९.९९ विद्यालय ‘अनुच्छेद २८’ के अंतर्गत आते हैं ।
३. अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकों के विद्यालय उनकी स्थापना करनेवाले व्यक्ति के धर्म के आधार पर निर्धारित होते हैं
‘अनुच्छेद ३०’ तो ‘अनुच्छेद २८’ के विरुद्ध है । उसके अनुसार मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, सिक्ख, जैन, पारसी इन सभी अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छा के अनुसार शिक्षासंस्थान चलाने का अधिकार मिलता है, साथ ही उन्हें सरकारी सहायता भी मिलती है । इसका स्पष्ट अर्थ यही है कि ‘अनुच्छेद २८’ अल्पसंख्यक समुदाय पर लागू नहीं है तथा .‘अनुच्छेद ३०’ का प्रावधान कर अल्पसंख्यकों को धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार भी प्रदान किया गया ! उसके अनुसार ‘अनुच्छेद ३०’ के अंतर्गत स्थापित अल्पसंख्यक विद्यालयों में सरकारी सहायता लेकर धार्मिक शिक्षा दी जा सकेगी; परंतु ‘अनुच्छेद २८’ के अंतर्गत स्थापित विद्यालयों में नहीं ! आश्चर्य की बात यह है कि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकों के विद्यालय किसे कहना है ?, यह बात विद्यालय की स्थापना करनेवाले के धर्म के आधार पर सुनिश्चित होता है; विद्यालय में शिक्षा लेनेवालों के धर्म पर नहीं !
४. हिन्दू संस्थाचालकों के लिए सभी सरकारी नियमों का पालन करना अनिवार्य; परंतु अल्पसंख्यक संस्थाचालकों के लिए उनका पालन करने की आवश्यकता न होना !
इसका अर्थ यह हुआ कि किसी मुसलमान अथवा ईसाई विद्यालय की स्थापना की गई, तो वह ‘अनुच्छेद ३०’ के अंतर्गत होगी और वहां शिक्षा लेनेवाले सभी विद्यार्थी १०० प्रतिशत हिन्दू भी हों, तो उन्हें कुरआन अथवा बाइबिल की शिक्षा दी जा सकेगी; परंतु किसी हिन्दू ने विद्यालय की स्थापना की, तो वह ‘अनुच्छेद २८’ के अंतर्गत होगी और वहां शिक्षा लेनेवाले सभी विद्यार्थी १०० प्रतिशत हिन्दू हों, तो भी उन्हें वेद अथवा भगवद्गीता नहीं पढाई जा सकेगी । इसके साथ ही हिन्दू संस्थाचालक को अपने विद्यालय में शिक्षा अधिकार के कानून के अनुसार २५ प्रतिशत स्थान आरक्षित रखने पडेंगे; परंतु यह नियम मुसलमान और ईसाई संस्थाचालकों पर लागू नहीं रहेगा । केवल इतना ही नहीं, अपितु हिन्दू संस्थाचालक को सरकार के सभी मार्गदर्शक तत्त्वों का पालन करना पडेगा; किंतु मुसलमानों अथवा ईसाईयों को इसका पालन करने की आवश्यकता नहीं होगी । इसके कारण ही भारत में किसी हिन्दू के लिए विद्यालय चलाना कठिन होता है और उसी के कारण अधिकांश संस्थाचालक मुसलमान अथवा ईसाई दिखाई देते हैं ।
५. तत्कालीन कांग्रेस की सरकार द्वारा बनाए गए हिन्दूविरोधी कानूनों के कारण हिन्दुओं की हानि
संविधान के ‘अनुच्छेद २८’ और ‘३०’ को रद्द किया गया, तो उससे बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक इन दोनों को ही अपनी-अपनी पद्धति से विद्यालय चलाना संभव होगा और अपनी संस्कृति को आगे बढाना संभव होगा । ये अनुच्छेद जारी रहे, तो उससे मुसलमानों अथवा ईसाईयों की हानि नहीं होगी; परंतु पीढी-दर-पीढी हिन्दुओं की हानि होती ही रहेगी । इससे जुडा हुआ और एक सूत्र हिन्दू मंदिरों के स्वामित्व का है । मुसलमानों की मस्जिदें और ईसाईयों के चर्च क्रमशः मदरसे अथवा विद्यालय चला सकते हैं; क्योंकि वहां के पैसों पर उन्हीं का नियंत्रण होता है; परंतु हिन्दुओं के मंदिर आज भी सरकार के नियंत्रण में होने से किसी सरकारी सहायता के बिना हिन्दुओं को स्वयं के विद्यालयों की स्थापना करना संभव नहीं होता । कांग्रेस का नेतृत्व और अभी तक की सरकारें ही उसके कारण हैं । तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हिन्दुओं के संबंध में कानून बनाते समय ही ‘मंदिर अधिनियम’ लागू कर उन पर भी नियंत्रण प्राप्त किया ।
६. हिन्दूविरोधी कानूनों और नियमों से हिन्दुओं को मुक्त कीजिए !
कांग्रेस द्वारा बनाए गए हिन्दूविरोधी कानूनों और नियमों से हिन्दुओं को मुक्त कराने का समय अब आ चुका है । महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आज देश में हिन्दुत्वनिष्ठ विचारों के नेता और दल की सरकार सत्ता में है । अभी तक इस सरकार ने हिन्दुओं की अनेक दशकों से चली आ रही अयोध्या के श्रीराम मंदिर, ‘सीएए (नागरिकता सुधार कानून)’, ‘अनुच्छेद ३७० (जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार प्रदान करनेवाला अनुच्छेद ३७०)’ रद्द करना जैसी मांगें पूर्ण की हैं । अब इसी केंद्र सरकार को शीघ्रातिशीघ्र ‘अनुच्छेद २८’ और ‘अनुच्छेद ३०’ रद्द कर देने चाहिए, ऐसा हिन्दुओं को लग रहा है ।
(साभार : दैनिक ‘मुंबई तरुण भारत’, ५.९.२०२२)