न्यायालय के कार्यक्रमों में पूजा करने की अपेक्षा संविधान के सामने नतमस्तक हों !
भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है, तथापि संविधान के प्रथम पन्ने पर प्रभु श्रीरामजी का चित्र है । उनका भी आदर बनाए रखें, ऐसा ही बहुसंख्यक भारतीयों को लगता है !
भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है, तथापि संविधान के प्रथम पन्ने पर प्रभु श्रीरामजी का चित्र है । उनका भी आदर बनाए रखें, ऐसा ही बहुसंख्यक भारतीयों को लगता है !
सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत
कांग्रेस ने ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘समाजवाद’ ये दो शब्द संविधान में घुसेडने पर हिन्दुओं पर अन्याय हुआ और इसी प्रावधान के कारण अल्पसंख्यक फले-फूले । राष्ट्रप्रेमियों और धर्मप्रेमियों को लगता है कि संविधान से ये शब्द निकाल फेंकने के लिए सरकार को प्रयत्न करना चाहिए ।
भारत स्वयंभू हिन्दू राष्ट्र है ही; परंतु संविधान द्वारा यह घोषित होना आवश्यक है !
वर्ष १९४७ में धर्म के आधार पर देश का विभाजन हुआ । मुसलमान बहुसंख्यक थे; इसलिए उन्हें पाकिस्तान दिया । तो फिर जो बचे वे क्या थे ?
हिन्दू राष्ट्र के द्वारा रामराज का ही निर्माण किया जाएगा, इसलिए सर्वप्रथम हिन्दू राष्ट्र लाना आवश्यक है !
धर्म के आधार पर सरकारी कर्मचारियों को छूट देना, यह धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में बैठता है क्या ? धर्मनिरपेक्षता वाले अब चुप क्यों, या उन्होंने भी सरकार के इस निर्णय को स्वीकार किया है ?
संस्कृत ईश्वर निर्मित भाषा है तथा उसे ‘देवभाषा’ कहा जाता है । सनातन हिन्दू लाखों वर्षों से इस भाषा का प्रयोग करते आ रहे हैं । एक भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश ( चीफ जस्टिस ) की इस मांग पर केंद्र सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए, संस्कृत प्रेमियों को ऐसा ही प्रतीत होता है !
‘‘धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों पर इतनी बडी मात्रा में निधि व्यय करना, इसमें कौनसी धर्मनिरपेक्षता है ? संविधान यदि धर्मनिरपेक्ष है, तो सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए’’, ऐसा प्रतिपादन सीबीआई के भूतपूर्व प्रभारी महासंचालक श्री. एम. नागेश्वर राव ने किया ।
भारत के अनेक राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक और मुसलमानों को बहुसंख्यक बनाकर आनेवाले समय में भारत के दूसरे विभाजन की योजना बनाई गई है । केंद्र सरकार संविधान से ‘धर्मनिरपेक्ष’ (सेक्यूलर) शब्द हटाए ।