भारत को हिन्दू राष्ट्र बनने से कोई भी नहीं रोक सकता ! – पू. श्रीरामज्ञानीदास महात्यागी, संस्थापक, तिरखेडी आश्रम, गोंदिया, महाराष्ट्र

जिनकी शारीरिक क्षमता है, वह देह से, बौद्धिक क्षमता है वह बुद्धि से, इस प्रकार सभी को स्वयं की क्षमता के अनुसार हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए योगदान देना आवश्यक है । केवल भाषण देकर नहीं, तो प्रत्यक्ष योगदान देकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी । समाज परिवर्तनशील है ।

सर्व संतों एवं महात्माओं को हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए कार्य करना आवश्यक ! – पू. परमात्माजी महाराज, धारवाड, कर्नाटक

कर्नाटक में धारवाड के पू. परमात्माजी महाराज जी ने आवाहन किया कि, जब धर्म पर अधर्म बढ गया, तब भगवान परशुराम ने परशु धारण किया । ऐसे परशुराम को हमें अपना आदर्श मानना चाहिए । यह तपस्या करने का नहीं, युद्ध करने का समय है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘ईश्वर पर तथा साधना पर विश्वास न हो, तब भी चिरंतन आनंद की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को होती है । वह केवल साधना से ही प्राप्त होता है । एक बार यह ध्यान में आ जाए, तो साधना का कोई पर्याय न होने के कारण, मानव साधना की ओर प्रवृत्त होता है ।’

‘हिन्दू राष्ट्र-जागृति अभियान’ में ७० सहस्र से भी अधिक हिन्दुओं का सहभाग ! – चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए भारतभर में पुजारी, संत एवं मान्यवरों ने १ सहस्र ११९ मंदिरों में भगवान से प्रार्थना की गई, जबकि महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक एवं तेलंगाना राज्यों में २३ स्थानों पर ‘हिन्दू एकता शोभायात्रा’ आयोजित की गईं । इसका लाभ ३४ सहस्र ६४६ जिज्ञासुओं ने लिया ।

प्रत्येक हिन्दू अखंड हिन्दू राष्ट्र का संकल्प कर रहा है, इसका संपूर्ण श्रेय प.पू. गुरुजी को है ! – टी. राजा सिंह, विधायक, तेलंगाना

हिन्दू जनजागृति समिति के तत्त्वावधान में जिस अखंड हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का संकल्प गुरुजी ने लिया है, वही संकल्प हम सभी लोग आगे ले जा रहे हैं । भारत का प्रत्येक हिन्दू अब अखंड हिन्दू राष्ट्र का संकल्प ले रहा है । उसका संपूर्ण श्रेय प.पू. गुरुजी को जाता है । प.पू. गुरुजी ही इसके प्रेरणास्रोत हैं ।

सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ आठवलेजी के ८० वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में संतों से मिली शुभकामनाएं !

महर्षि अध्यात्म विश्विद्यालय की स्थापना कर उन्होंने (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने) हिन्दू राष्ट्र की बात को केवल राजकीय रूप न देते हुए हमारी अध्यात्म विद्या को पुनः उजागर करने का और उसके भीतर अनेक प्रयोग कर, अनेक साधकों को तैयार करने का एक महनीय कार्य किया है ।

रथोत्सव पूर्ण होने के उपरांत सप्तर्षियों की प्रीतिमय वाणी से उजागर हुई परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अवतारी कार्य की महिमा !

श्रीमन्नारायण के अवतार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का (गुरुदेवजी का) रथ जिस क्षण आश्रम से बाहर निकला, उस क्षण पृथ्वी के सर्व जागृत मंदिर, तीर्थक्षेत्र, ५१ शक्तिपीठ एवं १२ ज्योतिर्लिंग के चैतन्य को नवजागृति मिली ।

साधकजीवों को भक्तिरस में सराबोर करनेवाले श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का दिव्य आनंददायी ‘रथोत्सव’ !

रथोत्सव में सम्मिलित साधकों के मुख पर भाव एवं आनंद, उन्होंने धारण की हुई सात्त्विक एवं पारंपरिक वेशभूषा, हाथ में लिया भगवा ध्वज, ध्यान आकर्षित करनेवाले फलक, श्रीराम शालीग्राम की पालकी एवं सभी के मुख में श्रीमन्नारायण का जयघोष, ऐसे भक्तिमय वातावरण में इस रथोत्सव का प्रारंभ हुआ । 

शोभायात्रा में साधक ध्वज फहराते । श्रीमन्नारायण की महिमा गाते ।।

क्या वर्णन करें उन क्षणों का ! जीवन कृतार्थ होने का भान करानेवाले श्रीमन्नारायण के दर्शन के वो क्षण ! एक ओर श्रीमन्नारायण भक्तों से मिलने हेतु आतुर होकर प्रतीक्षारत थे, तो दूसरी ओर श्रीमन्नारायण से मिलने के लिए उनके भक्त हाथ जोडकर खडे थे । यह जीव और शिव की भेंट थी !

‘प्रसंग प्रत्यक्ष हो रहा है’, इसकी अनुभूति देने हेतु सजीव हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रथोत्सव के चैतन्यमय छायाचित्र !

जो साक्षात ईश्वर से संबंधित होता है, वह माया से संलग्न न होकर शाश्वत होता है । वह चिरंतन टिकनेवाला और आत्मानंद देनेवाला होता है । इसलिए सात्त्विक घटकों में सजीवता दिखाई देती है ।