रथोत्सव में भगवान से मिलने के लिए आतुर साधकों को देखकर श्रीमन्नारायण की भी आंखें भर आईं !
‘क्या वर्णन करें उन क्षणों का ! जीवन कृतार्थ होने का भान करानेवाले श्रीमन्नारायण के दर्शन के वो क्षण ! एक ओर श्रीमन्नारायण भक्तों से मिलने हेतु आतुर होकर प्रतीक्षारत थे, तो दूसरी ओर श्रीमन्नारायण से मिलने के लिए उनके भक्त हाथ जोडकर खडे थे । यह जीव और शिव की भेंट थी ! आत्मा और परमात्मा की भेंट थी ! भक्तों और श्रीनारायण की भेंट थी ! साधकों ने रथोत्सव के आरंभ में इन दिव्य क्षणों का अनुभव किया । रामनाथी के सनातन आश्रम से इस रथोत्सव का आरंभ हुआ । उस समय साधक मार्ग के दोनों ओर श्रीविष्णु स्वरूप गुरुदेवजी के दर्शन करने के लिए, साथ ही रथोत्सव का अभिवादन (नमस्कार) करने के लिए खडे थे । श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी का दिव्य रथ जैसे-जैसे साधकों की दिशा में आगे बढने लगा, वैसे-वैसे साधकों का अपार भाव उमड आया । दिव्य रथ पर विराजमान श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरुदेवजी, श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के दर्शन से भाव जागृत होकर साधकों को सिसकियां अनियंत्रित हो गई थीं । भगवान को भाव प्रिय होता है । भाव की दृष्टि से देखनेवाले उन साधकों की ओर देखकर श्रीमन्नारायण के नेत्र भी भर आए । भावावस्था में स्थित साधकों को हाथ हिलाकर, नमस्कार कर और हंसकर उनका प्रत्युत्तर करते समय उनके नेत्रों से भावाश्रु छलक रहे थे । रथ के रामनाथी आश्रम परिसर से आगे जाने तक लगभग १० मिनट तक उनकी आंखों से भावाश्रु बह रहे थे । ये क्षण ऐसे थे कि मानो श्रीनारायण वैकुंठ से ही रथ पर विराजमान होकर अपने भक्तों को दर्शन से तृप्त करने के लिए ही आए हों !’
– श्री. विनायक शानभाग
सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ८० वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में रथोत्सव मनाया गया । उसकी विस्तृत जानकारी हेतु देखें Sanatan.org |