रामनाथी (गोवा) – मंजीरों की कर्णमधुर ताल, मुख में श्रीमन्नारायण का जयघोष, हाथ में भगवा ध्वज एवं रथ में विराजमान श्रीविष्णु रूप में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के दिव्य दर्शन, ऐसे अभूतपूर्व भक्तिमय वातावरण में सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ८० वें जन्मोत्सव के निमित्त दिव्य आनंददायी ‘रथोत्सव’ २२.५.२०२२ को मनाया गया । २२ मई के पहले २ दिन मूसलाधार वर्षा हो रही थी । रथोत्सव के दिन वर्षा ने विश्राम लेकर मानो साधकों की भीगने से रक्षा की; परंतु गुरुदेवजी के दर्शन से जागृत हुए भावाश्रुओं से वे सराबोर हो गए ।
दिव्य रथोत्सव के पूर्व साधकों की उत्कंठा चरमसीमा पर !
सप्तर्षियों की आज्ञा से गत कुछ वर्षों से सनातन के सभी साधकों के प्राणप्रिय गुरुदेव, अर्थात परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने अपने जन्मोत्सव के दिन श्रीविष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण आदि विविध रूपों में दर्शन दिए थे । इसलिए इस वर्ष भी साधकों के मन में उत्कंठा निर्माण हो गई थी कि ‘इस बार गुरु हमें किस रूप में दर्शन देंगे ?’ आखिर ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी अर्थात गुरुदेवजी के जन्मोत्सव का मंगलमय दिन आया ! साधकों के लिए भूवैकुंठ अर्थात रामनाथी स्थित सनातन के आश्रम के साधक भक्तिरस से सराबोर हो गए थे । श्रीगुरु की महिमा का वर्णन करनेवाले भावपूर्ण भजन बीच-बीच में आश्रम के ध्वनिक्षेपकों पर लगाए जाने से सभी साधक गुरुस्मरण द्वारा बैकुंठ की अनुभूति ले रहे थे ।
गुरुदेव के दर्शन से साधक हुए कृतार्थ !
आश्रम के साधकों को जब यह पता चला कि ‘जन्मोत्सव के दिन श्रीरामशिला की पालकी समारोह में सम्मिलित होगी’, वे आनंद के सागर में गोते लगाने लगे । वास्तव में साधक पालकी समारोह के लिए एकत्र हुए थे; परंतु श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी इस समारोह में दिव्य रथ में विराजमान हैं, यह ध्यान में आते ही साधकों का भाव जागृत हो गया । वे आनंद से भावविभोर हो गए । सप्तर्षि की आज्ञानुसार श्री गुरुदेव श्रीविष्णु के रूप में दिव्य रथ में विराजमान हुए । रथ में उनके सामने दाईं ओर उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं बाईं ओर उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी बैठी थीं । श्री गुरु के दिव्य रथ के पीछे साधकों को यह ज्ञात न होते हुए भी कि गुरुदेव रथ में प्रत्यक्ष विराजमान हैं, उनकी बहुत भावजागृति हो रही थी । रथोत्सव में सम्मिलित साधकों के मुख पर भाव एवं आनंद, उन्होंने धारण की हुई सात्त्विक एवं पारंपरिक वेशभूषा, हाथ में लिया भगवा ध्वज, ध्यान आकर्षित करनेवाले फलक, श्रीराम शालीग्राम की पालकी एवं सभी के मुख में श्रीमन्नारायण का जयघोष, ऐसे भक्तिमय वातावरण में इस रथोत्सव का प्रारंभ हुआ ।
भक्त एवं भगवान की भेंट का अद्भुत क्षण !
शंखनाद एवं वेदमंत्रों के घोष में श्री गुरु के रथोत्सव का प्रारंभ हुआ । श्री गुरु का दिव्य रथ आश्रम के प्रवेशद्वार पर स्थित बालकक्ष के सामने आने पर श्रीविष्णु रूप में श्री गुरु को देखकर बालसाधकों का भी भाव जागृत हुआ । आगे धर्मप्रसार की सेवा करनेवाले साधक मार्ग के दोनों ओर खडे थे । श्रीगुरु के रथ का नयनमनोहारी रूप देखकर साधक स्तब्ध हो गए ! निःशब्द हो गए ! साधकों की विलक्षण भावजागृति हुई । गुरु को श्रीविष्णु रूप में देखने का, साधकों के मुखमंडल पर कृतज्ञता का भाव शब्दातीत था ! रामनाथी परिसर में सैकडों साधक एवं जिज्ञासुओं ने रथोत्सव के दिव्य दर्शन का लाभ लिया ।
नृत्याराधना द्वारा श्रीमन्नारायण का गुणगान !
श्रीगुरु का दिव्य रथ श्री रामनाथ मंदिर के निकट आने पर वहां महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के नृत्य विभाग की साधिका ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर की कु. अपाला औंधकर (आयु १५ वर्ष) एवं ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर की कु. शर्वरी कानस्कर (आयु १५ वर्ष) ने ‘जय जनार्दना…’ गीत द्वारा श्रीमन्नारायण की नृत्याराधना की । रथोत्सव के मार्ग में कुल ३ स्थानों पर नृत्याराधना की गई । इस अवसर पर साधिकाओं के मुखमंडल पर उत्कट भाव देखकर सडक के दोनों ओर खडे साधकों की भी भावजागृति हो रही थी ।
नागेशी में भी साधकों ने लिए श्री गुरुवर के भावपूर्ण दर्शन !
नागेशी में साधक सेवा करते हैं, उस दिशा में रथोत्सव मार्गक्रमण करने लगा । वहां सेवा करनेवाले साधक विविध सदनिकाओं के बरामदों में रथोत्सव के दर्शन करने के लिए पहले से ही खडे थे । ‘श्री गुरु हमसे मिलने आए’, केवल इसी विचार से सभी का भाव जागृत हो गया ।
आनंद समारोह की वापसी का मार्ग !
नागेशी के सभी साधकों से विदा लेकर श्री गुरु का रथोत्सव पुन: रामनाथी के सनातन आश्रम की दिशा में निकला । रास्ते के दोनों ओर खडे साधकों को पुन: एक बार श्री गुरु के दर्शन का सौभाग्य मिला । आगे रामनाथी आश्रम के साधक एवं संत रथ की वापसी की प्रतीक्षा में ही थे ! रथोत्सव आश्रम में लौटने पर सभी ने पुन: उनके भावपूर्ण दर्शन किए ।
क्षणिकाएं
१. रथोत्सव के समय श्री देव रामनाथ, श्री शांतादुर्गादेवी, श्री देव नागेश महारुद्र, श्री महालक्ष्मी देवी, श्री दत्तगुरु का भी भावपूर्ण जयघोष किया गया । इस माध्यम से स्थानीय देवी-देवताओं के भी आशीर्वाद लिए ।
२. मार्ग पर अनेक लोगों ने घर से बाहर आकर उत्सुकता से रथोत्सव के दर्शन किए ।
३. अनेक वाहनचालकों ने भी रथोत्सव को आते देख अपने-अपने वाहन दूसरे रास्ते पर मोड लिए और रथोत्सव के लिए पूर्ण सहयोग दिया ।
४. रथोत्सव के लिए रामनाथी से नागेशी, इस रास्ते के दोनों ओर ध्वज लगाए गए थे । रथोत्सव का प्रारंभ होने से पूर्व एक भी ध्वज नहीं फहरा रहा था; परंतु रथोत्सव का प्रारंभ होने से कुछ समय पूर्व हवा न होते हुए भी ध्वज फहराने लगे ।
बिच्छू के रूप में महर्षि विश्वामित्र द्वारा रथ की रक्षा करना
२२ मई को प्रातः ४.२० पर रथ जहां खडा था, वहां एक बिच्छू आया । इस विषय में महर्षिजी से पूछने पर उन्होंने कहा, ‘‘महर्षि विश्वामित्र रथ की रक्षा के लिए बिच्छू के रूप में वहां आए थे । परात्पर गुरुदेवजी को चक्रवर्ती राजा समान ही आध्यात्मिक सिंहासन पर विराजमान किया है ।’’
– श्री. विनायक शानभाग
श्रीविष्णु के वस्त्रालंकार धारण करने के विषय में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के विचार !
कहते हैं ‘बुढापा अर्थात दूसरा बचपन !’ इसकी अनुभूति मैंने ८० वें जन्मदिन पर ली । छोटे बच्चों को ‘राम’ एवं ‘कृष्ण’ समान जैसे सजाया जाता है, वैसे ८० वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में सप्तर्षियों की आज्ञा से साधकों ने मुझे श्रीविष्णु के वेश में सजाया ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (२२.५.२०२२)
संतों द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को अवतार संबोधित करने का कारण !
‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कभी भी स्वयं को अवतार नहीं कहा है । सनातन संस्था भी कभी ऐसा नहीं कहती । ‘नाडीभविष्य’ इस प्राचीन एवं प्रगल्भ ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तर्षियों ने प्रत्येक व्यक्ति का भविष्य लिखकर रखा है । तमिलनाडु के जीवनाडीपट्टिका का वाचन करनेवाले पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से सप्तर्षियों ने जीवनाडी-पट्टिकाओं में लिखकर रखा है कि ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी श्रीविष्णु के अवतार हैं ।’ सप्तर्षियों की आज्ञा एवं नाडीपट्टिका में बताए अनुसार जन्मोत्सव के दिन परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने श्रीविष्णु के रूप में वस्त्रालंकार धारण किए ।
रथोत्सव के विषय में पुलिस अधिकारी द्वारा व्यक्त किया अभिमत
रथयात्रा में आए एक पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘आपका प्रत्येक कार्यक्रम अनुशासनबद्ध होता है । इसलिए हमें अधिक तनाव नहीं आता । ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी १५ वर्षाें से भी अधिक काल से आश्रम से बाहर नहीं निकले । एक स्थान पर रहकर उन्होंने ग्रंथों का लेखन किया । यह आश्चर्यजनक है ।’