‘साधना की (ईश्वर के लिए कुछ किया) तथा उससे हानि हुई’, क्या विश्व में ऐसा एक भी उदाहरण है ?

यदि प्रत्येक व्यक्ति को धर्मशिक्षा दी गई, तो ‘जीवन की सार्थकता का क्या अर्थ है ?’, यह ज्ञात होने पर व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र का उत्थान हो सकता है !

‘कोटिश: कृतज्ञता’ ऐसा क्यों कहा जाता है ?

साधारण मानव को परिवार का पालन करते समय भी परेशानी होती है । परमेश्वर तो सुनियोजित रूप से पूरे ब्रह्मांड का व्यापक कार्य संभाल रहे हैं । उनकी अपार क्षमता की हम कल्पना भी नहीं कर सकते ! ऐसे इस महान परमेश्वर के चरणों में कोटिशः कृतज्ञता !

‘प्रसंग प्रत्यक्ष हो रहा है’, इसकी अनुभूति देने हेतु सजीव हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रथोत्सव के चैतन्यमय छायाचित्र !

जो साक्षात ईश्वर से संबंधित होता है, वह माया से संलग्न न होकर शाश्वत होता है । वह चिरंतन टिकनेवाला और आत्मानंद देनेवाला होता है । इसलिए सात्त्विक घटकों में सजीवता दिखाई देती है ।

गुरुकृपायोगानुसार साधना में स्वभावदोष और अहं-निर्मूलन की प्रक्रिया को ६० प्रतिशत महत्त्व होने का कारण

साधना करनेवाले जीवों की साधना उनका प्रारब्ध और संचित नष्ट करने के लिए उपयोग की जाती है । इसीलिए साधकों की प्रगति की (आध्यात्मिक उन्नति की) गति अल्प होती है ।