ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ८० वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में महर्षि की आज्ञा से उनका मंगलमय रथोत्सव मनाया गया । अत्यंत भावपूर्ण वातावरण में संपन्न इस रथोत्सव के छायाचित्र संगणक पर देखते हुए मुझे उन छायाचित्रों में आगे दिए विविध चरणों के अनुसार सजीवता प्रतीत हुई । किसी घटना के चलचित्र (वीडियो) देखते हुए जिस प्रकार सभी प्रसंग गतिमान होते हैं, उसी प्रकार ये छायाचित्र देखते समय भी ऐसा प्रतीत हुआ मानो ‘प्रत्येक प्रसंग ही वहां हो रहा है ।’ छायाचित्र सजीव दिखाई देने के संदर्भ में अनुभूति एवं उसका अध्यात्मशास्त्रीय आधार यहां दे रहे हैं ।
१. छायाचित्रों में सजीवता प्रतीत होने के संदर्भ में अनुभूति !
१ अ. रथ के आश्रम में आगमन होते समय का छायाचित्र
१ अ १. ‘गुरुदेवजी का दिव्य रथ, उसके पीछे साधक, इस प्रकार सभी लोग आगे-आगे आ रहे हैं’, ऐसा प्रतीत हुआ ।
१ अ २. इस छायाचित्र में ऐसा दिखाई दे रहा है कि परात्पर गुरुदेवजी साधकों के भावपूर्ण जयघोष को प्रतिसाद दे रहे हैं । वह देखकर आगे ऐसा दिखाई दिया कि परात्पर गुरुदेव साधकों से बातें कर रहे हैं । मुझे उनकी आवाज भी सुनाई दी ।
१ अ ३. ‘आश्रम की ओर के पेडों के पत्ते हिल रहे हैं’, ऐसा दिखाई दिया ।
१ आ. नृत्याराधना के छायाचित्र : रथोत्सव में भगवान की नृत्याराधना करनेवाली साधिकाओं के २ छायाचित्र इस पृष्ठ पर हैं । उन दोनों छायाचित्रों को देखकर ऐसा लगा मानो ‘वे छायाचित्र नहीं; अपितु वहां प्रत्यक्ष नृत्य हो रहा है ।’ गीत की धुन पर साधिकाएं नृत्य कर रही हैं ।
१ इ. मंजीरा बजाती साधिकाओं का छायाचित्र : ये छायाचित्र देखते समय ऐसा दिखाई दिया कि वह पथक आगे-आगे बढ रहा है । इसके साथ ही मंजीरों का मंजुल नाद भी सुनाई दिया ।
१ ई. नारायण का नामघोष करनेवाली साधिकाओं का छायाचित्र : यह छायाचित्र देखते समय भी गति ध्यान में आई । ऐसा प्रतीत हुआ जैसे साधिकाओं का पथक श्रीमन्नारायण का नामघोष करते हुए आगे-आगे बढ रहा है । इस प्रकार विविध छायाचित्र देखते हुए ‘वे छायाचित्र सजीव हो गए हैं और वह प्रसंग प्रत्यक्ष में सामने हो रहा है । यह सब कुछ किसी चलचित्र (वीडियो) समान दिखाई दिया ।
२. श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का रथोत्सव ईश्वरीय तत्त्व की अनुभूति देनेवाला होने से उसके छायाचित्र देखते समय पंचमहाभूतों के स्तर की अनुभूति आना
सप्तर्षि बारंबार बता रहे हैं, ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साक्षात श्रीमन्नारायण के अवतार हैं ।’ इसकी अनुभूति साधक भी ले रहे हैं । जो साक्षात ईश्वर से संबंधित होता है, वह माया से संलग्न न होकर शाश्वत होता है । वह चिरंतन टिकनेवाला और आत्मानंद देनेवाला होता है । इसलिए सात्त्विक घटकों में सजीवता दिखाई देती है । साधक, संत द्वारा भक्तिभाव से अनुभव हुआ यह परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का रथोत्सव साधक एवं संतों के मनमंदिर में सदा के लिए उत्कीर्ण हो गया है । इसलिए उस दिव्य रथोत्सव के छायाचित्रों में सजीवता (तेज तत्त्व) दिखाई देती है । इन छायाचित्रों में व्यक्ति की हलचल प्रतीत होना (वायु तत्त्व), मंजीरों का नाद प्रतीत होना (आकाश तत्त्व) इत्यादि पंचमहाभूतों के स्तर की अनुभूतियां हुईं ।
केवल कुछ छायाचित्र देखकर ऐसी उच्च स्तर की अनुभूतियां होती हैं । दिव्य वातावरण में संपन्न रथोत्सव में कितनी मात्रा में ईश्वरीय तत्त्व कार्यरत हुआ होगा, इसकी कल्पना इन छायाचित्रों से कर सकते हैं ! जिनके केवल अस्तित्व से ही छायाचित्रों में सजीवता आने समान विविध उच्च अनुभूतियां होती हैं, उन श्रीमन्नारायण स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के श्री चरणों में अनंत-अनंत कोटि कृतज्ञता ! ‘दिव्य रथोत्सव के चैतन्यमय छायाचित्रों का सभी को आध्यात्मिक स्तर पर लाभ हो’, ऐसी परात्पर गुरुदेवजी के श्रीचरणों में प्रार्थना !
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ (२७.५.२०२२)
व्यष्टि साधना की नींव सुदृढ होनी चाहिए !व्यष्टि साधना अच्छी होगी, सकारात्मकता निर्माण होती है । इससे समष्टि साधना करने के लिए ऊर्जा मिलती है । – (सद्गुरु) श्री. राजेंद्र शिंदे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (२०.१०.२०१९) |