देवतातत्त्व आकृष्ट करनेवाली सनातन-निर्मित सात्त्विक रंगोलियां तथा सात्त्विक चित्रों में देवताओं के यंत्र की भांति सकारात्मक ऊर्जा (चैतन्य) होना

रंगोली ६४ कलाओं में से एक कला है । यह कला आज घर-घर पहुंच गई है । त्योहारों-समारोहों में, देवालयों में तथा घर-घर में रंगोली बनाई जाती है । रंगोली के दो उद्देश्य हैं – सौंदर्य का साक्षात्कार तथा मांगलिक सिद्धि ।

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का छायाचित्रमय (फोटोवाला) जीवनदर्शन’ ग्रंथ में प्रचुर मात्रा में चैतन्य होना

इन ग्रंथों को पढते समय साधक भावविभोर हो जाते हैं तथा भावविश्व में रम जाते हैं । अनेक लोगों ने इन ग्रंथों में प्रकाशित छायाचित्रों एवं लेखों से प्रचुर मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित होने की अनुभूति की है ।

श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा की गई भावपूर्ण पूजा के कारण श्री लक्ष्मीपूजन के घटकों में सकारात्मक ऊर्जा (चैतन्य) अत्यधिक बढ जाना 

दिवाली में लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्त्व है । पुराणों में वर्णन है कि कार्तिक अमावस्या की रात को लक्ष्मीजी सर्वत्र भ्रमण करती हैं तथा अपने निवास के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढने निकल पडती हैं ।

भावसत्संग सुनने से व्यक्ति की सूक्ष्म ऊर्जापर (‘ऑरा’ पर) सकारात्मक परिणाम होते हैं !

भावसत्संगों के कारण अनेक साधकों को साधना में सहायता मिली है । ‘भावसत्संग लेना अथवा उसे सुनना, साधकों में व्याप्त सूक्ष्म ऊर्जा पर (‘ऑरा’ पर) इसके क्या परिणाम होते हैं ?, वैज्ञानिक दृष्टि से इसका अध्ययन करने हेतु एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ उपकरण का उपयोग किया गया ।

सनातन संस्था की ओर से संपूर्ण देश में ७७ स्थानों पर हर्षाेल्लास के साथ मनाया गया ‘गुरुपूर्णिमा महोत्सव’ !

२१ जुलाई २०२४ को सनातन संस्था की ओर से संपूर्ण देश में ७७ स्थानों पर ‘गुरुपूर्णिमा महोत्‍सव’ मनाया गया । इसमें मराठी भाषा में ६४ स्थानों पर, हिन्दी भाषा में ८, तमिल भाषा में २, जबकि गुजराती एवं मलयालम भाषा में एक-एक स्थान पर गुरुपूर्णिमा महोत्सवों का आयोजन किया गया । महोत्‍सव के आरंभ में श्री व्यासपूजन तथा सनातन संस्‍था के प्रेरणास्रोत प.पू. भक्तराज महाराजजी की प्रतिमा का पूजन किया गया ।

पू. भगवंत कुमार मेनरायजी के पार्थिव शरीर से प्रचुर मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित होना तथा उनके अंतिम दर्शन करनेवाले साधकों को आध्यात्मिक लाभ होना

‘संतों के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक दृष्टि से क्या लाभ होता है ?’, इसके संदर्भ में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण तथा लोलक के द्वारा शोध किया गया ।

सनातन के ३ गुरुओं द्वारा ब्रह्मोत्सव में धारण किए वस्त्राभूषणों में विलक्षण चैतन्य उत्पन्न होना !

ब्रह्मोत्सव से पूर्व वस्त्राभूषणों में १.५ से ३.३ सहस्र मीटर तक सकारात्मक ऊर्जा थी । परात्पर गुरु डॉक्टरजी के द्वारा ब्रह्मोत्सव में इन वस्त्राभूषणों को धारण किए जाने के उपरांत उनमें विद्यमान सकारात्मक ऊर्जा ४२ सहस्र से लेकर १ लख मीटर से भी अधिक हुई ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के द्वारा महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के अंतर्गत आरंभ किए गए ‘संगीत के माध्यम से साधना’, इस संकल्प का उत्तरोत्तर बढता हुआ कार्य !

वर्ष २०१७ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के समय उन्होंने बताया था, ‘आज महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के अंतर्गत संगीत के माध्यम से साधना करने हेतु ‘संगीत से संबंधित कार्य आरंभ किया गया है ।’ उनके इस संकल्प के कारण ही यह कार्य अल्पावधि में बढता गया तथा प्रतिदिन बढता ही जा रहा है ।

‘भगवान भाव के भूखे होते हैं’, इस वचन के अनुसार मंदिर में देवता के दर्शन करते समय दर्शन कर रहे व्यक्ति का भगवान के प्रति भाव के अनुसार उसे चैतन्य ग्रहण होता है !

‘व्यक्ति के द्वारा मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करने से पूर्व तथा करने के उपरांत उसकी सूक्ष्म ऊर्जा पर (‘ऑरा’ पर) क्या परिणाम होता है ?’, वैज्ञानिक दृष्टि से इसका अध्ययन करने हेतु एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’, उपकरण का उपयोग किया गया ।

ब्रह्मोत्सव में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की साधिकाओं द्वारा नृत्य के माध्यम से साकारित मनोहारी विष्णुलीला !

श्रीविष्णुरूप सहित इस वर्ष की नृत्य-आराधना की विशेषता थी बालकृष्ण एवं यशोदा मैया की सुंदर लीलाएं ! साधिकाओं ने इतनी तन्मयता से वो लीलाएं साकार कीं कि कार्यस्थल पर मानो गोकुल अवतरित हुआ ।