रामनाथी, १७ जून (वार्ता.) – जिनकी शारीरिक क्षमता है, वह देह से, बौद्धिक क्षमता है वह बुद्धि से, इस प्रकार सभी को स्वयं की क्षमता के अनुसार हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए योगदान देना आवश्यक है । केवल भाषण देकर नहीं, तो प्रत्यक्ष योगदान देकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी । समाज परिवर्तनशील है । अब परिवर्तन का समय आया है । भारत को हिन्दू राष्ट्र बनने से कोई भी नहीं रोक सकता है, ऐसा प्रतिपादन महाराष्ट्र में गोंदिया की तिरखेडी आश्रम के संस्थापक पू. श्रीरामज्ञानीदास महात्यागी जी ने किया । दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में ‘हिन्दू संस्कृति’ के उद्बोधन सत्र में ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य में संतों का योगदान’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने यह वक्तव्य किया ।
इस समय व्यासपीठ पर बंगाल के भारत सेवाश्रम संघ के स्वामी संयुक्तानंद महाराज, अरुणाचल प्रदेश के ‘बांबू संसाधन और विकास संस्था’ के उपाध्यक्ष श्री. कुरु थाई और महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोधकार्य विभाग की सौ. श्वेता शॉन क्लार्क उपस्थित थीं । इस समय हिन्दू जनजागृति समिति के छत्तीसगढ के समन्वयक श्री. हेमंत कानसकर ने पू. श्रीरामज्ञानीदास महाराज जी का सत्कार किया ।
इस समय पू. श्रीरामज्ञानीदास महात्यागी बोले, ‘‘वर्तमान में ‘करो अथवा मरो’, जैसी स्थिति निर्माण हुई है । भारत हिन्दू राष्ट्र था, है और रहेगा; परंतु भारत को संवैधानिक रूप से हिन्दू राष्ट्र घोषित करना चाहिए, इसीलिए हमसब एकत्र हुए हैं । हमने समाज के लिए, धर्म के लिए परिवार छोडा है । कोई क्रोध करे तो भी अपने ध्येय से विचलित न हों । भारत से नैतिकता और संस्कार समाप्त हुए हैं । भारत में जातीवाद, प्रांतवाद आदि निर्माण हुआ है । यह रोकने के लिए भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना अति आवश्यक है । संस्कार ही बिगड गए तो, कार्य कितना भी बडा हो वह बिगडता ही है; परंतु संस्कार हैं तो कितना भी बिगडा हुआ कार्य सुधारा जा सकता है । प्रभु श्रीराम स्वयं धर्म के रूप थे । इसलिए भारत का संविधान ‘श्रीमराचरितमानस’ पर आधारित होना चाहिए ।’’
गोंदिया में धर्मांतरण बंद हुआ !
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ऋषी और कृषी के आधार पर होनी चाहिए । वर्ष १९९७ में मैं गोंदिया आया, तब वहां पर बडे प्रमाण में धर्मांतरण हो रहा था । यह देखकर ‘जब तक गोंदिया का धर्मांतरण रुकता नहीं, तब तक शांति से नहीं बैठूंगा’, यह निश्चय किया । वर्तमान में गोंदिया में धर्मांतरण बंद है ।
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए प्रत्यक्ष योगदान दें !
पू. श्रीरामज्ञानीदास महात्यागी जी ने आवाहन किया कि, ‘वर्षा कब होगी ?’ यह पंचांग से पता चलता है; परंतु पंचाग की पुस्तक को कितना भी निचोडें, तो भी उससे वर्षा नहीं की जा सकती । उसी अनुसार पुस्तक के पन्नों से और व्यासपीठ से वर्षा नहीं की जा सकती । इसलिए पुस्तकों के पन्नों से और व्यासपीठ से परमात्मा को ढूंढते न रहें ।
अपना नाम हिन्दू राष्ट्र स्थापना के योगदान में आने दें !
पू. श्रीरामज्ञानीदास महात्यागी जी ने आगे आवाहन किया कि, ‘जब जंगल में आग लगी तब एक चिडिया चोंच में पानी लाकर आग बुझा रही थी । उस समय किसी ने चिडिया से पूछा, ‘इस पानी से आगे बुझेगी क्या ?’ उसपर चिडिया बोली, ‘‘मैं जो पानी ला रही हूं उससे आग नहीं बुझेगी, यह मुझे निश्चित है; परंतु जब इतिहास लिखा जाएगा, तब मेरा नाम आग लगानेवालों में नहीं, पर आग बुझानेवालों में होगा ।’’ उसी प्रकार अपना नाम हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के योगदान में आने दें ।
साधना एवं गुरुकार्य करने के लिए दैवी बालक उच्च लोकों से पृथ्वी पर जन्म लेते हैं ! – श्रीमती श्वेता शॉन क्लार्क, शोधकार्य विभाग, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा
‘दैवी बालक’ यह सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी की संकल्पना है । उच्च लोकों से साधना और गुरुकार्य करने के लिए पृथ्वी पर जन्म लेनेवाले बालक ही दैवी बालक हैं । इन दैवी बालकों का पृथ्वी पर आना एक दिव्य एवं अद्भूत घटना है । दैवी बालक सुंदर और तेजस्वी होते हैं । अपने हंसने-बोलने से वे सभी के मनों को तुरंत आकर्षित कर लेते हैं । दैवी बालकों में स्वभावदोष और अहं का स्तर अल्प होता है । उनका स्वभाव मूलतः ही सात्त्विक होता है । इनका मन निर्मल और बुद्धि परिपक्व होती है । वे आचारधर्म का पालन करते हैं । ये बालक सात्त्विक व्यक्तियों और संतों की ओर तुरंत आकर्षित होते हैं । उनमें बचपन से ही साधना के लिए आवश्यक आध्यात्मिक गुण (उदा. दृढता, विनम्रता एवं सिखने की वृत्ति) होते हैं । इन बालकों को पंचज्ञानेंद्रियों, मन एवं बुद्धि से परे अर्थात सूक्ष्म की बातें समझ में आती हैं । इन बालकों में आध्यात्मिक उपाय करने की क्षमता होती है । अन्य बालकों की तुलना में ये बालक भिन्न हैं । दैवी बालकों के कारण आध्यात्मिक अनुभूतियां होती हैं । देवी बालकों में ईश्वर के प्रति भाव होता है । इन बालकों के जिज्ञासु होने से वे अनेक प्रश्न पूछते हैं । दैवी बालक मानसिक स्तर पर नहीं, अपितु आध्यात्मिक स्तर पर विचार करते हैं । उनमें सुनने की वृत्ति होती है, साथ ही वे शांत स्वभाव के होते हैं, यह जानकारी गोवा के महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोधकार्य विभाग की श्रीमती श्वेता शॉन क्लार्क ने दी । ‘दैवी बालकों से संबंधित शोधकार्य’, इस विषय पर वे ऐसा बोल रही थीं ।
अरुणाचल प्रदेश के धर्मांतरित हिन्दुओं को पुनः हिन्दू धर्म में लाएंगे ! – कुरु थाई, उपाध्यक्ष, बांस अनुसंधान एवं विकास संस्था, अरुणाचल प्रदेश
नागालैंड में ईसाईयों ने हिन्दुओं का धर्मांतरण किया । उसके उपरांत अब ईसाईयों ने अरुणाचल प्रदेश के हिन्दुओं को धर्मांतरित करने के प्रयास चलाए हैं । ये ईसाई अशिक्षित एवं निर्धन हिन्दुओं और महिलाओं को अपना लक्ष्य बना रहे हैं । सरकार को ईसाईयों द्वारा हो रहा यह धर्मांतरण रोकना चाहिए । पहले महिला का धर्मांतरण कर उसके उपरांत उस संपूर्ण परिवार का ही धर्मांतरण करने का प्रयास किया जाता है । महिला का धर्मांतरण कर उस परिवार में कलह उत्पन्न किया जाता है । मंदिर के पुजारियों को देने के लिए पैसे न होने के कारण पुजारी चर्च जाते हैं । ऐसा कर हमारी संस्कृति पर आघात किया जा रहा है । केंद्रीय गृहमंत्री अमित शहा द्वारा अरुणाचल प्रदेश के परशुराम कुण्ड में भगवान परशुराम की मूर्ति की स्थापना करने पर ईसाईयों और कांग्रेसियों ने उसका विरोध किया जाता है । यह परशुराम कुण्ड प्राचीन काल से होते हुए भी उसका विरोध किया जा रहा है । केंद्र सरकार की ओर से यहां की पुरातन हिन्दू संस्कृति के विकास का प्रयास करने पर ‘अरुणाचल ख्रिश्चन फोरम’की ओर से इसका विरोध किया गया; परंतु हम पीछे नहीं हटेंगे । अरुणाचल प्रदेश में ८० प्रतिशत हिन्दू हैं । हम धर्मांतरण के विरुद्ध आवाज उठाएंगे और अरुणाचल प्रदेश के धर्मांतरित हिन्दुओं को पुनः हिन्दू धर्म में लाएंगे । अरुणाचल प्रदेश सरकार के ‘बांस अनुसंधान एवं विकास संस्था’ के उपाध्यक्ष श्री. कुरु थाई ने ऐसा प्रतिपादन किया । ‘अरुणाचल प्रदेश के हिन्दुओं की समस्याएं और उसके उपायत’ विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे ।