सप्तर्षि की आज्ञा अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी (२२.५.२०२२) को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का ८० वां जन्मोत्सव ‘रथोत्सव’ स्वरूप में मनाया गया । रथोत्सव पूर्ण होने पर सायंकाल में सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका के पाठक पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी ने चल-दूरभाष पर नाडीवाचन किया । उस समय उन्होंने सप्तर्षि की वाणी से बताया कि ‘गुरुदेवजी के रथोत्सव के समय स्थूल एवं सूक्ष्म से क्या-क्या हुआ ?’ इस हेतु सप्तर्षियों के श्रीचरणों में कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, वह अल्प ही है ।’ – श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६६ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रथ से बाहर निकलते ही पृथ्वी के सर्व तीर्थक्षेत्रों के चैतन्य को जागृति मिली !
‘श्रीमन्नारायण के अवतार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का (गुरुदेवजी का) रथ जिस क्षण आश्रम से बाहर निकला, उस क्षण पृथ्वी के सर्व जागृत मंदिर, तीर्थक्षेत्र, ५१ शक्तिपीठ एवं १२ ज्योतिर्लिंग के चैतन्य को नवजागृति मिली ।
१. प्रकृति ही तीनों अवतारी गुरुओं की महिमा बतानेवाली है !
पंचमहाभूतों में पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश, एक-एक कर रथारूढ परात्पर गुरुदेवजी को नमस्कार कर गए । प्रकृति को अत्यधिक आनंद हो रहा था । कलियुग में श्रीमन्नारायण पृथ्वी पर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रूप में आए थे । ये बताने का कार्य सप्तर्षियों ने प्रकृति को दिया था । प्रकृति ही आनेवाले काल में अवतारी गुरु की महिमा सभी को बतानेवाली है ।
२. सूर्यनारायण ने सभी साधकों को भरपूर आशीर्वाद दिया !
२२.५.२०२२ रथोत्सव के दिन सूर्यनारायण ने सर्व साधकों को अनेकानेक आशीर्वाद दिए । (‘रथोत्सव की पिछली रात देर तक वर्षा हो रही थी । सप्तर्षि एवं गुरुदेव की कृपा से २२.५.२०२२ को सवेरे ६ बजे के उपरांत सूर्यकिरण के दर्शन हुए और आकाश निरभ्र था । सभी साधकों ने श्रीमन्नारायण की अवर्णनीय लीला अनुभव की । – संकलनकर्ता)
३. ‘सनातन के तीनों गुरु अवतारी होने से इन तीनों गुरुओं को आशीर्वाद देने के लिए स्वयं प्रकृति आती है, इससे बडी प्रतीति और क्या होगी ?’, ऐसा सप्तर्षियों का कहना
पिछली रात तक आकाश में काले बादल थे, परंतु रथोत्सव के दिन आकाश स्वच्छ था । ‘सनातन के तीनों गुरु अवतारी हैं’, यह मनुष्य की समझ में आए या न आए; परंतु प्रकृति समझ गई है ।’ इसीलिए प्रकृति ने कृपा की । यह अवतारी प्रतीति है । तीनों गुरुओं को आशीर्वाद देने के लिए स्वयं प्रकृति आई थी, इससे बडी प्रतीति और क्या होगी ? रथोत्सव समाप्त होने पर आश्रम के साधक कृतज्ञभाव से आपस में चर्चा कर रहे थे कि ‘परात्पर गुरुदेव रथ से उतरकर कक्ष में जाने पर ही वर्षा हुई ।’
(‘हां । सही है । गुरुदेवजी के कक्ष में जाने तक आकाश से पानी की एक बूंद तक नहीं गिरी । गुरुदेवजी के कक्ष में जाने पर तुरंत वर्षा हुई । इस संदर्भ में अनेक साधक एक-दूसरे से चर्चा कर रहे थे । सभी साधकों को श्रीमन्नारायण रूपी गुरुदेवजी के प्रति कृतज्ञता लग रही थी ।’ – संकलनकर्ता)
४. जहां श्रीकृष्ण हैं, वहीं गरुड आता है !
रथोत्सव के पिछले दिन एवं अगले दिन भी गरुड आया था । जहां श्रीकृष्ण हैं, वहीं गरुड आता है । अतः इसमें कोई संदेह नहीं कि गुरुदेवजी में श्रीकृष्ण तत्त्व है ! (रथोत्सव के पिछले दिन से रामनाथी आश्रम पर २-३ गरुड चक्कर काट रहे थे । अगले दिन शाम को श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी से बात करते समय कुछ कारणवश मैं कक्ष के बरामदे में आया । उस समय ७-८ फुट चौडा (‘सामान्य गरुड २-३ फुट चौडा होता है ।’ – संकलनकर्ता) एक गरुड मेरे अत्यधिक निकट से होकर गया । २०१५ में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के हिमाचल की यात्रा में हमें ऐसे ही गरुड के दर्शन हुए थे । महर्षियों को बताने पर उन्होंने कहा, ‘२०१५ में आया भगवान का गरुड ही आज रामनाथी आश्रम के निकट आया है ।’ – श्री. विनायक शानभाग)
५. श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का अवतारी कार्य !
आनेवाले काल में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का अवतारी कार्य साधकों के भी ध्यान में आएगा । गुरुदेवजी के दो नेत्र अर्थात श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ! आश्रम एवं सर्वत्र के साधकों के आध्यात्मिक पालन-पोषण का कार्य श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी द्वारा होगा । पृथ्वी पर सर्वत्र जाकर गुरुदेवजी की कीर्ति करने का कार्य श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी का है । ये दोनों परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी (गुरुदेवजी) के अनेक साधकों को संतपद तक ले जाएंगी ।
६. सप्तर्षियों की, श्रीविष्णु स्वरूप गुरुदेवजी के श्रीचरणों में प्रार्थना !
‘हे श्रीमन्नारायण, संपूर्ण पृथ्वी पर करोडों-करोडों जीवों में से ऐसे २ जीव हैं जो आपकी कीर्ति कर सकते हैं; उनके नाम हैं ‘श्रीसत्शक्ति’ एवं ‘श्रीचित्शक्ति । गुरुदेवजी की कीर्ति संपूर्ण विश्व में करने के लिए साक्षात श्री महालक्ष्मी देवी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी के रूप में साक्षात श्री सरस्वती देवी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के रूप में पृथ्वी पर आई हैं । ‘श्रीसत्शक्ति’ एवं ‘श्रीचित्शक्ति’ गुरुदेवजी की कीर्ति युगों-युगों से टिकी रहे’, ऐसा वे करेंगी । यह सप्तर्षियों का सत्यवचन है ! ‘सनातन के तीनों अवतारी गुरु ‘सप्त-ऋषियों को’ अपनी छत्रछाया में लें’, ऐसी हम तीन गुरुओं से प्रार्थना करते हैं ।’ – सप्तर्षि (पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से, २२.५.२०२२, रात्रि ८ बजे)
७. ‘सनातन के तीनों गुरु ‘सप्त-ऋषियों’ को अपनी छत्रछाया में लें’, ऐसा सप्तर्षियों के कहने का कारण
परात्पर गुरु डॉ. आठवले : सप्तर्षि के सत्यवचनों का नाडीवाचन पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी करते हैं । वे नाडीवाचन में जो कहते हैं, सनातन के तीनों गुरु वैसा ही करते हैं । ‘सनातन के तीनों अवतारी गुरु ‘सप्त-ऋषियों को अपनी छत्रछाया में लें’, ऐसा नाडीवाचन में पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी कैसे कहते हैं ?
सप्तर्षि : ‘सप्तर्षियों को ये सत्यवचन लिखने के लिए कहनेवाले श्रीमन्नारायण ही हैं । श्रीमन्नारायण ने जो लिखने के लिए बताया है, वह हमने लिखा । सप्तर्षियों द्वारा लिखा हुआ ‘सत्य’ करके दिखानेवाले, अर्थात हमारे लिखे अनुसार कृति करनेवाले भी श्रीमन्नारायण ही हैं । श्रीमन्नारायण का हृदय ही हम सप्तर्षियों का स्थान है । प्रत्येक युग में श्रीदेवी एवं भूदेवी सहित श्रीमन्नारायण का अवतार होता है । तब हम सप्तर्षि श्रीमन्नारायण से प्रार्थना करते हैं कि भगवान हमें सदैव के लिए ही अपने हृदय में धारण कर लें । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, श्रीमन्नारायण के अवतार हैं, वैसे ही श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी भी अनुक्रम में ‘भूदेवी’ एवं ‘श्रीदेवी’ की अवतार हैं; इसलिए हम सप्त-ऋषियों ने प्रार्थना की है कि ‘सनातन के तीनों गुरु हमें अपनी छत्रछाया में, अर्थात तीनों गुरु हमें अपने हृदय में धारण करें ।’
– सप्तर्षि (पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से, २४.५.२०२२, दोपहर १.३५)
बछडा रथोत्सव के एकदम निकट से जाना, शुभसंकेत है !
साधकों के नेत्रों से बहते भावाश्रु ‘भाव मोती’ थे !
रामनाथी आश्रम से श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी का रथ जब आगे जाने लगा, तब दोनों ओर खडे साधकों की समझ में नहीं आया कि वे पृथ्वी पर हैं या देवलोक में ? रथारूढ गुरुदेवजी की ओर देखनेवाले साधकों की आंखों से निकलनेवाला प्रत्येक भावाश्रु ‘भाव मोती’ ही थे । ‘साक्षात ईश्वर के दर्शन देने पर भक्त जैसे अपनी सुध-बुध खो बैठता है’, वैसी अवस्था साधकों की हो गई ।
पशु-पक्षी, प्रकृति एवं पंचमहाभूतों को हुआ अत्यधिक आनंद !
रथोत्सव के समय पक्षियों के रूप में ऋषि-मुनि आए थे । पक्षी, प्रकृति एवं पंचमहाभूत, सभी को अपार आनंद हुआ था । भगवान आज पक्षी एवं गरुड के रूप में आए थे । (‘अनेक स्थानों पर रथ के सामने से पक्षियों के झुंड जा रहे थे ।’ – संकलनकर्ता) परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के रथ में बैठने के पश्चात पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दी । (‘हां । साधकों ने इसकी अनुभूति ली है ।’ – संकलनकर्ता)
– सप्तर्षि (पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से, २४.५.२०२२, दोपहर १.३५)