भारत के शत्रु और उनसे लडने की तैयारी !

‘भारत और पाक के बीच यदि अब कोई भी युद्ध हुआ, तो उसका रूपांतरण परमाणु युद्ध में ही होगा’, यह बात भारतियों को सदैव ध्यान में रखकर उस दृष्टि से निरंतर तैयार रहना चाहिए ।

विश्वयुद्ध के भयावह दुष्परिणाम !

शहर के शहर भस्म हो जाते हैं । उसके कारण उद्ध्वस्त शहर, मार्ग, पुल आदि तथा नष्ट हुई संस्थाओं को खडा करने में बहुत समय लग जाता है । जिससे वहां के विकास की बहुत हानि होती है ।

‘युद्ध के कारण आपातकाल में परिस्थिति कितनी भीषण हो सकती है’, इसके कुछ उदाहरण !

हवाईमार्ग, रेल्वेमार्ग, महामार्ग आदि वाहन-व्यवस्था चरमरा जाने के कारण शासन द्वारा भी सहायता करने में अडचनें आना और जीवनावश्यक वस्तुओं के लिए जानलेवा संघर्ष करना पडना

सनातन के प्रथम अंग्रेजी ‘ई-बुक’ का वाराणसी में लोकार्पण !

चैत्र नवरात्रि के पवित्र पर्वकाल में वाराणसी के ‘अखिल भारतीय धर्मसंघ शिक्षा मंडल’ के महामंत्री श्री. जगजीतन पांडे के शुभहस्तों से ‘इम्पॉर्टन्स ऑफ पर्सनैलिटी डिफेक्ट रिमूवल एंड इन्कलकेटिंग वर्च्यूज्’ इस सनातन के अंग्रेजी भाषा के ‘ई-बुक’ का लोकार्पण किया गया ।

अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के लिए धन के रूप में अर्पण कर हिन्दू राष्ट्र के कार्य में सम्मिलित हों !

गोवा में होनेवाले इस अधिवेशन में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु कार्यरत हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के पदाधिकारी, अधिवक्ता, उद्योगपति और लेखक भाग लेनेवाले हैं । इस अधिवेशन में भारत, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे देश-विदेश से प्रतिनिधि भाग लेनेवाले हैं ।

साधना और भक्ति द्वारा ही आनेवाले भीषण तीसरे विश्वयुद्ध में भक्तों की रक्षा होगी ।

धर्म अधर्म युद्ध में जो ईश्वर की भक्ति करता है, धर्म के पक्ष में खडा रहता है, ईश्वर उसकी रक्षा करते हैं; परंतु उसके लिए हमें भक्त बनना आवश्यक है ।

धर्मकार्य के लिए मिले अर्पण का अपहार (गबन) करनेवालों से सतर्क रहें, साथ ही ऐसी घटनाओं के संदर्भ में हिन्दू जनजागृति समिति को सूचित करें !

समिति के नाम का दुरुपयोग करनेवालों पर रोक लगाने के लिए अर्पणकर्ता उनके पास आनेवाले व्यक्तियों के पास अर्पण की छापी हुए रसीद पुस्तकें हैं अथवा नहीं, इसकी आश्वस्तता कर उनसे अर्पण की रसीद अवश्य मांग लें ।

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के अंतर्गत कार्यान्वित होनेवाले ग्रंथालय से संबंधित सेवा में सम्मिलित हों !

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के ग्रंथभंडार में ३५ सहस्र से अधिक मुद्रित ग्रंथ और १ लाख से अधिक ‘ई-बुक्स’ हैं तथा उसमें प्रतिदिन अनेक ग्रंथों की वृद्धि हो रही है । इसलिए इन ग्रंथों से संबंधित आगे की सेवा करने के लिए रामनाथी, गोवा के आश्रम में मानव संसाधन की आवश्यकता है ।

सनातन के दूसरे बालसंत पू. वामन अनिरुद्ध राजंदेकर (आयु ३ वर्ष) को ज्ञात हुई परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की महानता !

एक बार पू. वामन (सनातन के दूसरे बालसंत पू. वामन अनिरुद्ध राजंदेकर) ने सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी से कहा, ‘‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी नारायण हैं । नारायण एक ‘तत्त्व’ है । वे तेजतत्त्व हैं । मैं उनके साथ बात नहीं कर सकता ।’’

दुःसाध्य रोग की वेदना सहते हुए ‘गुरुस्मरण, गुरुध्यान और गुरुभक्ति’ के त्रिसूत्रों का पालन कर संतपद प्राप्त करनेवाले पू. (स्व.) डॉ. नंदकिशोर वेदजी !

धन्य वे पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी, जिन्होंने ‘अति अस्वस्थ स्थिति में भी साधना कैसे कर सकते हैैं ?’, यह स्वयं के उदाहरण से साधकों को सिखाया और धन्य वे परात्पर गुरु डॉक्टरजी, जिन्होंने पू. डॉ. वेदजी जैसे संतरत्न दिए !