वर्तमान में दक्षिण चीनी समुद्र में चीन द्वारा आरंभ किया गया ‘इलेक्ट्रॉनिक’ युद्ध !
दक्षिण चीनी समुद्र में निर्जन द्वीपों पर चीन ने प्रवेश किया और उनका विकास कर, उनका रूपांतर नौदल केंद्रों में किया । अब चीन हिन्द महासागर में घुसपैठ कर वहां अपनी जडें जमाने की सोच रहा है । चल-दूरभाष अथवा रडार की तरंगों का प्रयोग कर शत्रु के संदेश समझ लेने का नया तंत्रज्ञान चीन ने विकसित किया है । इस ‘इलेक्ट्रॉनिक युद्ध’ के तंत्रज्ञान में चीन जितना सफल होगा, उतना ही आगामी सागरीय युद्ध में चीन लाभान्वित होनेवाला है । इस युद्ध का स्वरूप ‘तरंगों द्वारा जानकारी लेना’ एवं ‘अन्यों के तंत्र विफल करना’ है । दक्षिण चीनी समुद्र में चीन द्वारा कई स्थानों पर ‘इलेक्ट्रॉनिक युद्ध’ के लिए रडार्स और ‘सैटेलाइट ट्रैकिंग स्टेशन’ (उपग्रहों से समन्वय साध्य करने के लिए निर्मित तंत्र) निर्मित किए हैं । उसमें से कुछ सामुद्रिक क्षेत्र अन्य देशों के नियंत्रण में हैं । चीन पर आरोप है कि ‘‘चीन ने ‘लेजर बीम’ किरणें छोडकर अनेकों जहाजों के रडार तंत्र बिगाड दिए है तथा ‘इलेक्ट्रॉनिक आक्रमण कर कुछ लोगों की बुद्धि पर भी परिणाम किया है’’ । युद्ध के समय लाभ हो इसलिए चीन, दक्षिण समुद्र में बढा रहे सत्ताबल से भारत के अन्य देशों में जानेवालें व्यापारी जहाज एवं पनडुब्बियों की जानकारी संग्रहित कर रख सकता है ।
भारत भी चीन के ‘इलेक्ट्रॉनिक युद्ध’ का इलेक्ट्रॉनिक दृष्टि से प्रतिकार कर ‘जैसे को तैसा’ उत्तर दे सकता है ।
– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे
पाक के साथ परमाणु युद्ध का खतरा !
‘भारत और पाक के बीच यदि अब कोई भी युद्ध हुआ, तो उसका रूपांतरण परमाणु युद्ध में ही होगा’, यह बात भारतियों को सदैव ध्यान में रखकर उस दृष्टि से निरंतर तैयार रहना चाहिए । शासनकर्ता, प्रशासन एवं राजनैतिक दल, तथा जनता को परिणामों का विचार कर उस दृष्टि से तैयारी करनी भी आवश्यक ही है । भारत ने इससे पूर्व घोषित किया था कि ‘‘भारत प्रथम परमाणु बम का प्रयोग नहीं करेगा’’; परंतु तदुपरांत उसने स्वयं पर लगाया यह प्रतिबंध निरस्त किया है । फिर भी भारतीय मानसिकता देखी जाए, तो भारत प्रथम परमाणु बम का प्रयोग करने की संभावना ९९ प्रतिशत नहीं है, ऐसा ही कहना पडेगा । तो फिर यदि पाक के साथ युद्ध हुआ, तो प्रथम पाक ही भारत पर परमाणु बम गिरा सकता है ।
– श्री. प्रशांत कोयंडे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
भारत और पाक की परमाणु बम क्षमता !
वर्तमान में पाकिस्तान के पास विद्यमान सर्वोच्च क्षमता के परमाणु बम की क्षमता ४५ किलो टन जितनी है । यह परमाणु बम २८० मीटर का क्षेत्र तहस-नहस करने की और १.१६ कि.मी. क्षेत्र में किरणोत्सर्ग के दुष्परिणाम करने की क्षमता रखता है । यदि यह विस्फोट हवा में हुआ, तो लगभग २.५ किलोमीटर के क्षेत्र पर उसका परिणाम होगा । तथा ३.०५ किलोमीटर के क्षेत्र में रह रहे लोगों को गंभीर पीडा पहुंच सकती है । यदि पाक चंडीगढ, नई देहली अथवा मुंबई पर परमाणु बम गिराएगा, तो चंडीगढ में ढाई लाख से अधिक मृत्यु तथा पौने पांच लाख से अधिक लोग घायल होंगे, नई देहली में साढे तीन लाख से अधिक मृत्यु, तो पौने तेरह लाख लोग घायल हो सकते हैं । मुंबई में पौने छः लाख से अधिक लोगों की मृत्यु होगी, तो २० लाख लोग घायल हो जाएंगे । (यह अनुमान वर्ष २०१५ का होने से अब होनेवाली हानि की मात्रा अधिक होगी । – संकलनकर्ता)
(संदर्भ : लोकसत्ता ६.८.२०१५)
शत्रु के आक्रमण के पूर्व युद्ध की तैयारी न होने से क्या होता है ? इसका उदाहरण !
भारत युद्ध के लिए तैयार न होने से वर्ष १९६२ में चीन ने ८४ सहस्र वर्ग कि.मी. क्षेत्र हडप लिया !
चीन ने वर्ष १९६२ में भारत पर आक्रमण किया । इससे पूर्व ही ‘वह भारत पर आक्रमण करेगा’, ऐसा संरक्षण विशेषज्ञ एवं वीर सावरकरजी ने पहले ही कहा था; क्योंकि यह निश्चित ही था कि ‘उसके द्वारा तिब्बत हडपने के पश्चात वह भारत पर आक्रमण करेगा ।’ परंतु राष्ट्रघाती नहेरु ने इस ओर अनदेखी की और वे ‘हिन्दी-चीनी भाई भाई’ के स्वप्न में खो गए, उसका परिणाम भारत को बडी मात्रा में भुगतना पडा । भारत का ८४ सहस्र वर्ग कि.मी. भूभाग चीन ने हडप लिया । इस पराभव का दाग भारत के माथे पर सदैव के लिए लग गया । वर्ष १९६५ में चीन की सेना मैकमोहन रेखा पार कर अरुणाचल प्रदेश में घुस गई और पश्चिम क्षेत्र में उसने अक्साई चीन पर नियंत्रण स्थापित किया ।
– श्री. प्रशांत कोयंडे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
चीन का भारत की सीमाओं पर युद्ध !
गलवान घाटी में प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा के इस पार भारतीय सीमा में सडकें बनाने का काम चल रहा है । चीन ने इस निर्माणकार्य पर आपत्ति जताई । उससे दोनों देशों में संघर्ष उत्पन्न हुआ । १५ जून २०२० को गलवान घाटी में २० भारतीय सैनिक और जिनकी निश्चितरूप से संख्या बताई नहीं जा सकेगी, इतने चीनी सैनिक मारे गए । भारत और चीन के मध्य लगभग ३ सहस्र ८०० कि.मी. दूरी की सीमारेखा है । अप्रैल २०२० से यह सीमारेखा (विशेषत: पूर्व लद्दाख) अत्यंत तनावपूर्ण बन गई है । चीन ने पूर्व लद्दाख में घुसपैठ कर गलवान के क्षेत्र पर अपना अधिकार बताना आरंभ किया । वहां से उन्हें खदेडने में भारत को सफलता मिली । उसके उपरांत देनों देशों के उपरांत भले ही १२ दौर की सैन्य बातचीत हुई हो; परंतु तब भी चीन भारत-चीन सीमा पर नए गांव बंसाना, अरुणाचल प्रदेश में स्थित गांवों के नाम बदलना, लद्दाख के निकट की सीमा पर ‘रोबो’ सैनिक तैनात करना जैसी गतिविधियां कर ही रहा है । सीमा पर सेना की तैनाती बढाना, क्षेपणास्त्र तैनात करना और युद्धाभ्यास करना, इसके माध्यम से वह भारत पर दबाव बनाता है । अरुणाचल प्रदेश से जुडी सीमारेखा पर चीन ने अनेक नए गांव बंसाकर संभावित युद्धकाल के लिए सैन्यशिविर बनाना आरंभ किया है । सबसे चौंकानेवाली बात यह है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश का नामकरण ‘दक्षिणी तिब्बत’ कर उनमें से १५ प्रदेशों के नाम एकतरफा ही बदल लिए । सैनिकों की वापसी का निर्णय होकर भी चीन ने गलवान में चीनी ध्वज फहराया । चीन के भारत के राजदूत ने अब केंद्र के कौनसे नेता को अरुणाचल प्रदेश में जाना चाहिए, किसको नहीं जाना चाहिए, इस पर अपना मतप्रदर्शन करना आरंभ किया । तिब्बती लोगों के देहली के समारोंहों में जाने से चीन ने सार्वजनिक रूप से आलोचना की । इससे चीन की हिम्मत कहां तक पहुंची है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है । चीन ने लद्दाख की सीमा के निकट रोबो सैनिक तैनात कर दिए हैं ।
धूर्त चीन
चीन को भारत का बढता हुआ अंतरराष्ट्रीय महत्त्व न्यून करना है । सीमा पर तनाव उत्पन्न होने से उस पर भारत की प्रचंड शक्ति और पैसों का व्यय हो रहा है, जो चीन की इच्छा है । वहां के गलवान संघर्ष के उपरांत सेना की तैनाती का प्रतिदिन का खर्चा लगभग ३०० करोड रुपए था । इससे चीन की रणनीति का अनुमान लगाया जा सकता है ।
उपाय
चीन के दबाव के सामने हार न मानते हुए भारत को भी कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाने पडेंगे । चीन के विस्तारवाद को रोकने के लिए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत, इन चार देशों ने मिलकर ‘क्वाड’ नामक संगठन बनाया है । सीमावर्ती क्षेत्र में भारत के लिए भी जो साधनसंपत्ति का विकास और स्थानीय लोगों का सक्षमीकरण करना आवश्यक है, उसे भी भारत ने थोडा-बहुत आरंभ किया है । स्थानीय लोगों से जानकारी मिलने से सेना को बहुत लाभ होता है । सीमा पर साधनसंपत्ति का विकास न करने की वर्ष २००९ तक की भारत की नीति विगत ८ वर्षाें में संपूर्णरूप से बदल गई है ।
(संदर्भ – डॉ. शैलेंद्र देवळाणकर, अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों के अध्येता, ‘विवेक मराठी’, ७.१.२०२२)
चीन का सामना करने के लिए भारत द्वारा निर्मित ‘पिनाक’ शस्त्रप्रणाली !
भारतीय सेना ने ईशान्य की ओर प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर चीन के आक्रमण का प्रत्युत्तर देने के लिए चीन की सीमा के पास ‘पिनाक’ और ‘स्मर्च मल्टिपल रॉकेट लॉन्चर’ तैनात किए हैं । सेना ने अरुणाचल प्रदेश में सीमा के निकट सेना बढाई । पिनाक शस्त्रप्रणाली एक रॉकेट तोपखाना प्रणाली है, जो ३८ कि.मी. तक शत्रु के लक्ष्यों को भेदने में समर्थ है । सेना की क्षमता सशक्त बनाने के उद्देश्य से अधिक ऊंचाईवाले क्षेत्र में उसे तैनात किया गया है । छः पिनाक लाँचर्स की बैटरी ४४ सेकंड में ७२ रॉकेट का ‘सल्वो फायर’ कर सकती है । यह प्रणाली सैकडों मीटर के अंदर शत्रु की टंकियों और अन्य शस्त्रों को नष्ट कर सकती है । पिनाक संपूर्ण स्वदेशी प्रौद्योगिकी से निर्मित है तथा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) ने उसे विकसित किया है । चीनी सीमा पर बोफोर्स तोपें भी तैनात की गई हैं ।
(संदर्भ : ‘वृत्तभारती’, २३.१०.२०२१)
युद्धकाल में भारत में आंतरिक कलह की प्रबल संभावना !
कुछ वर्ष पूर्व पाकिस्तान के तत्कालीन मंत्री मोहम्मद अली ने पाकिस्तान की एक समाचार वाहिनी पर आयोजित परिचर्चा में यह वक्तव्य देते हुए कहा था, ‘‘भारत ने यदि पाकिस्तान पर आक्रमण किया, तो केवल ५ लाख पाकिस्तानी सैनिक ही नहीं, अपितु २२ करोड पाकिस्तानी नागरिक और केवल इतना ही नहीं, अपितु वहां के (भारत के) ३० करोड लोग भी (मुसलमान भी) भारत के विरोध में खडे होंगे और ‘गजवा-ए-हिन्द’ (भारत के काफिरों के (हिन्दुओं के) विरोध में मुसलमानों की ओर से किया जानेवाला युद्ध) करेंगे ।’’ इस चेतावनी भरे वक्तव्य को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है । प्रसारमाध्यमों ने जानबूझकर इस वक्तव्य का समाचार दबा दिया । इसलिए भारतीयों को इस संकट को ध्यान में रखकर सतर्क रहने के साथ ही किसी ने यदि देशद्रोह किया, तो पुलिस और सुरक्षाबलों की सहायता करनी पडेगी । पाकिस्तान के साथ के पिछले ४ युद्धों में ऐसी स्थिति उत्पन्न होने का कोई उदाहरण नहीं है; परंतु आज की स्थिति को देखा जाए, तो कहीं पर ऐसा घटित भी हुआ, तो वहां उसका सामना तो करना पडेगा ही; क्योंकि धर्मांध विभिन्न स्थानों पर दंगे करवाकर जो स्थिति बनाते हैं, उसे देखते हुए ‘क्या पुलिस और अन्य सुरक्षाबल उनके साथ लडने के लिए पर्याप्त होंगे ?’, यह प्रश्न उठता है ।
– श्री. प्रशांत कोयंडे, सनातन आश्रम, रामनाथी.
‘अंतर्गत कलह की स्थिति बन सकती है’, यह बतानेवाले द्रष्टा संत !‘भारत पर जब शत्रुराष्ट्र आक्रमण करेगा, तब भारत के धर्मांध यहां दंगासदृश्य स्थिति बनाकर आंतरिक कलह की स्थिति उत्पन्न कर सकते हैं’, ऐसा परात्पर गुरु पांडे महाराजजी ने कहा था । पाकिस्तान के मंत्री द्वारा दिए गए उक्त वक्तव्य को देखते हुए संतों को भविष्य में उत्पन्न होनेवाली परिस्थिति का पहले ही ज्ञान होता है । इससे ध्यान में आता है कि वे द्रष्टा कैसे होते हैं । – श्रीमती रूपाली वर्तक, पनवेल (२१.४.२०२२) |
चीन की संभावित समुद्री शरारत का मुंहतोड जवाब देने के लिए ‘आई.एन.एस. अरिहंत’ !
चीन की संभावित शरारत का मुंहतोड जवाब देने हेतु भारत ने ‘आई.एन.एस. अरिहंत’ युद्धनौका तैनात की है । चीन ने समुद्री मार्ग से यदि परमाणु आक्रमण कर ही दिया, तो उसका सामना करने के लिए यह रणनीति बनाई गई है, साथ ही सीमा पर ‘अग्नि ५’ यह अंतरखंडीय क्षेपणास्त्र भी सीमा पर तैनात किया गया है । इस क्षेपणास्त्र से भारत चीन के किसी भी शहर पर आक्रमण कर सकता है । – पुलकित मोहन, १६.९.२०२०
‘आई.एन.एस. वागशीर’ पनडुब्बी का २० अप्रैल को जलावतरण किया गया ।
‘परमाणु अस्त्रों का प्रथम प्रयोग नहीं करेंगे‘ (एन.एफ.यू.) की नीति और तब भी आक्रमण किया गया, तो प्रतिआक्रमण का अधिकार बनाए रखने से चीन और भारत में परमाणु युद्ध की संभावना अल्प है । भारत ने परमाणु प्रतिरोध के लिए अभी भी चीन से अधिक पाकिस्तान पर ही अधिक ध्यान केंद्रित किया है । – पुलकित मोहन, १६.९.२०२० |