दुःसाध्य रोग के कारण मरणप्राय वेदना सहते हुए ‘गुरुस्मरण, गुरुध्यान और गुरुभक्ति’ के त्रिसूत्रों का पालन कर गुरुकृपा की अखंड अनुभूति लेकर संतपद प्राप्त करनेवाले पू. (स्व.) डॉ. नंदकिशोर वेदजी !
अयोध्या के सनातन संस्था के १०७ वे संत पू. (स्व.) डॉ. नंदकिशोर वेदजी का ११ मई २०२१ को निधन हुआ । दि. ३० अप्रैल २०२२ (वैशाख अमावस्या) को एक वर्ष पूर्ण होने के निम्मित्त उनकी कुछ गुण-विशेषताएं यहां दे रहे हैं ।
१. वेदजी की परात्पर गुरु डॉक्टर पर रही अनन्य श्रद्धा और उसके कारण सुसह्य हुई बीमारी
१ अ. ‘लहु का कर्करोग (ब्लड कैंसर)’ हुआ है, ऐसा ज्ञात होने पर परात्पर गुरु डॉक्टरजी के बोल स्मरण कर शांत और स्थिर रहना : ‘दिसंबर २०१९ में स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण डॉ. नंदकिशोर वेदजी अयोध्या से रामनाथी आश्रम में रहने के लिए आए । चिकित्सकों द्वारा उनके लहु की जांच करने पर निदान हुआ कि उन्हें ‘लहु का कर्करोग (ब्लड कैंसर)’ हुआ है । उस समय परात्पर गुरु डॉक्टरजी के ‘प्रारब्धभोग समाप्त करने के उपरांत ही जन्म-मृत्यु के फेरों से मुक्त होना है’, इन शब्दों का स्मरण कर वे शांत और स्थिर हुए ।
१ आ. गुरुवचन पर पूर्ण श्रद्धा से युक्त वेदजी द्वारा कर्करोग जैसी दुःसाध्य बीमारी में भी अखंड और भावपूर्ण साधना करना : वेदजी को असह्य वेदना होती थी । यदि व्यक्ति को थोडी सी भी वेदना हो, तो भी वह बेचैन हो जाता है, चिडचिड करता है; परंतु गुरुवचनों पर पूर्ण श्रद्धा रख वेदजी ने बीमारी में भी अखंड और भावपूर्ण साधना की । ‘गुरुस्मरण, गुरुध्यान और गुरुभक्ति’ के बल पर स्थिर रहकर वे प्रारब्धभोग सहने लगे । वे अखंड गुरुदेवजी के आंतरिक सान्निध्य में रहते थे । वे गुरुदेवजी को आर्त्तभाव से एवं शरणागत होकर पुकारते थे । ऐसी आर्त्तता से पुकारने पर वह दयालु गुरुदेवजी तक नहीं पहुंचेगी क्या ? गुरुदेवजी की कृपा से वेदजी को होनेवाली मरणप्राय वेदनाओं की तीव्रता कम होती थी ।
१ इ. मृत्यु सामने होते हुए भी अखंड गुरुस्मरण में रहनेवाले वेदजी की साधना का महत्त्व अनन्य : अध्यात्म की सैद्धांतिक जानकारी होना, स्वास्थ्य ठीक न होकर भी साधना करना, यह बात भिन्न है और तीव्र वेदना सहते हुए, मृत्यु आंखों से दिख रही हो तब साधना एवं श्रीगुरुचरणों का अखंड स्मरण करना भिन्न है ! ऐसी स्थिति में भी वेदजी भिन्न-भिन्न भावप्रयोग कर भावावस्था में रहते थे । उनके मन में निरंतर गुरुदेवजी के प्रति कृतज्ञभाव रहता था । इसीलिए उनकी साधना को महत्त्व अनन्य है । वेदजी इतने आनंद में रहते थे कि उनकी ओर देखने से लगता ही नहीं था कि वे बीमार हैं । मानो गुरुभक्ति के कारण उनके आसपास एक कवच निर्मित हुआ था ।
२. वेदजी का देहत्याग और उनकी देह में और कक्ष में चैतन्य के स्तर पर हुए परिवर्तन
२ अ. अति अस्वस्थ स्थिति में वेदजी को देखते समय ‘वे ईश्वर के आंतरिक सान्निध्य में हैं’, ऐसा लगना : ११.५.२०२१ को वेदजी का स्वास्थ्य ठीक न होने से मैं उनसे मिलने आश्रम के उनके निवासकक्ष में पहुंची । उस समय उन्हें श्वास लेने में कष्ट हो रहा था । कुछ समय पश्चात उनका श्वास एक लय में होने लगा । उनकी ओर देखने से मुझे लगा कि वे ईश्वर के आंतरिक सान्निध्य में हैं । उनके नेत्रों से भावाश्रु बह रहे थे एवं उससे कृतज्ञभाव प्रकट हो रहा था ।
२ आ. ‘मृत्यु के समय वेदजी की देह में चैतन्य के स्तर पर परिवर्तन होना, यह उनका आध्यात्मिक स्तर बढनेका सूचक है’, ऐसा लगना : मृत्यु के समय डॉ. वेदजी के पिंडरी की त्वचा पीले रंगकी हो गई थी, तथा उनकी त्वचा अत्यधिक मृदु एवं पारदर्शक बन गई थी । मृत्यु के समय उनकी देह में चैतन्य के स्तर पर हुए परिवर्तन देखने पर ‘बीमारी में भी उन्होंने अच्छे से साधना करने से उनका आध्यात्मिक स्तर बढ गया होने का यह द्योतक है’, ऐसा मुझे लगा ।
२ इ. डॉ. वेदजी की मृत्यु के उपरांत हुई अनुभूतियां : ११.५.२०२१ को सायं ६.५६ को वेदजी ने देहत्याग किया । कुछ समय पश्चात मैंने उनकी ओर देखा । तब मुझे उनके मुखमंडल पर स्मित हास्य दिखाई दिया । उनके कक्ष में प्रकाश की मात्रा अत्यधिक बढ गई थी एवं वहां सुगंध महक रही थी ।
३. डॉ. नंदकिशोर वेदजी संतपद पर विराजमान होना
३ अ. आश्रम में रहने से प्रारब्धभोग की तीव्रता न्यून होना और वेदजी द्वारा की गई भावपूर्ण साधना से उनकी आध्यात्मिक प्रगति शीघ्र गति से होकर आध्यात्मिक स्तर ७१ प्रतिशत होना : गत डेढ वर्ष से वेदजी रामनाथी आश्रम में निवास कर रहे थे । आश्रम में रहने से उनके प्रारब्धभोग की तीव्रता न्यून हुई एवं उन्होंने अखंड और लगन से साधना करने के कारण उनकी आध्यात्मिक प्रगति भी शीघ्र गति से हुई । संत तुकाराम महाराजजी के दोहों के अनुसार प्रत्येक ईश्वरभक्त की इच्छा होती है कि उसका अंतिम दिन मीठा हो जाए ।’ वेदजी की आयु का अंतिम दिन भी मीठा हो गया । मृत्यु के समय उनका आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत से ६९ प्रतिशत हो गया । मृत्यु के उपरांत भी उनकी शीघ्र प्रगति होकर इन १२ दिनों में उनका आध्यात्मिक स्तर और २ प्रतिशत बढकर आज वे संतपद पर विराजमान हुए हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजी की कृपा से हुई यह एक अलौकिक घटना है ।
वेदजी के संदर्भ में ‘गुरुस्मरण’ ही रामबाण औषधि, करवा ली प्रगति विहंगम ।’, ऐसा कहना पडेगा ।
धन्य वे पू. डॉ. नंदकिशोर वेदजी, जिन्होंने ‘अति अस्वस्थ स्थिति में भी साधना कैसे कर सकते हैैं ?’, यह स्वयं के उदाहरण से साधकों को सिखाया और धन्य वे परात्पर गुरु डॉक्टरजी, जिन्होंने पू. डॉ. वेदजी जैसे संतरत्न दिए !
सनातन को उत्तमोत्तम संतरत्न प्रदान करनेवाले विष्णुस्वरूप परात्पर गुरुदेवजी के श्रीचरणों में शरणागतभाव से नमस्कार और कोटि-कोटि कृतज्ञता !’
– (श्रीसत्शक्ति) श्रीमती बिंदा सिंगबाळ (२१.५.२०२१)